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महाराष्ट्र भूमि अधिग्रहण मामले में SC ने सरकार को लगाई कड़ी फटकार, राजस्व एवं वन विभाग के Additional Chief Secretary को किया तलब

जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा, ऐसा लगता है कि आपके मुख्य सचिव कुछ समय से दिल्ली नहीं आए हैं.

supreme court

सुप्रीम कोर्ट.

छह दशक पुराने महाराष्ट्र भूमि अधिग्रहण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र राजस्व एवं वन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजेश कुमार को अवमानना नोटिस जारी किया है. अतिरिक्त मुख्य सचिव को 9 सितंबर को कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया है. इस मामले में महाराष्ट्र सरकार की ओर से दायर हलफनामे पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है.ॉ

महाराष्ट्र सरकार को फटकार

हलफनामे में कहा गया था कि अदालत ने कानून का पालन नहीं किया है जबकि राज्य सरकार ने किया है. जिसपर जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा, ऐसा लगता है कि आपके मुख्य सचिव कुछ समय से दिल्ली नहीं आए हैं. आपको अपने ग्राहकों का डाकिया नहीं, बल्कि अदालत का अधिकारी बनकर निष्पक्ष रहना होगा. अपने हलफनामे में हमें संवैधानिक नैतिकता की याद दिलाने के लिए हम आपको धन्यवाद देते हैं. अधिकारियों से निर्देश लें, आप हमेशा समय नहीं मांगते रह सकते. हम सब कुछ ध्वस्त करने के बाद संपत्ति वापस कर सकते हैं.

“मुफ्त योजनाओं पर रोक लगा देंगे, वरना…”

कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा, क्या आप लुटियंस जोन से किसी की जमीन लेकर उसे मेरठ में दे सकते हैं? क्या यह राज्य सरकार की तार्किकता की कसौटी है. पिछली सुनवाई में कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से कहा था कि वो दशकों से लंबित भूमि मुआवजे का शीघ्र निपटारा करें. वरना लाडली बहन योजना सहित मुफ्त वाली कई योजनाओं पर रोक लगा देंगे. कोर्ट ने कहा था कि हम आदेश पारित कर देंगे कि उक्त जमीन पर बनाई गई बिल्डिंग को गिरा दिया जाए.

जस्टिस गवई ने सरकार से पूछा था कि आपने 37 करोड़ रुपए के ऑफर के बाद अब तक सिर्फ 16 लाख रुपए ही क्यों अदा किए है? कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि आपके पास सरकारी खजाने से मुफ्त में पैसा बांटने के लिए हज़ारों करोड़ रुपये है, लेकिन आपके पास उस व्यक्ति को देने के लिए पैसा नही है. जिसकी जमीन को कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना छीन लिया गया है.

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महाराष्ट्र सरकार ने दावा किया है कि बताई गई भूमि पर आयुध अनुसंधान विकास प्रतिष्ठान संस्थान का कब्जा था, जो केंद्र के रक्षा विभाग की एक इकाई थी. सरकार ने कहा था कि बाद में ARDEI के कब्जे वाली जमीन के बदले निजी पक्ष को दूसरी जमीन अलॉट कर दी गई. हालांकि बाद में पता चला कि निजी पक्ष को दी गई अधिग्रहित जमीन को वन भूमि के रूप में अधिसूचित किया गया है. बता दें कि याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि उसके पूर्वजों ने 1950 में पुणे में 24 एकड़ जमीन खरीदी थी, जो राज्य सरकार ने 1963 में अधिग्रहण कर लिया था.

-भारत एक्सप्रेस



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