Bharat Express

क्या आप जानते हैं गांधी जी को सबसे पहले राष्ट्रपिता कहकर किसने पुकारा था? यहां जान लीजिए

155 साल पहले महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) जैसी महान शख्सियत का जन्म हुआ, जो पूरे विश्व के लिए प्रेरणा स्रोत बने. जिसने अंग्रेजों के पसीने छुड़वाए और भारत को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई.

महात्मा गांधी.

गांधी जी को दुनिया का सबसे बड़ा अहिंसावादी व्यक्ति कहा जाए तो गलत नहीं होगा. वर्तमान में अहिंसा और गांधी जी एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं. गांधी जी की इस नीति को दुनिया भर में आज भी लोग बड़े आदर भाव से देखते हैं. उनके प्रति सम्मान को और बढ़ाने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा में 15 जून 2007 को एक प्रस्ताव पारित कर गांधी जयंती के दिन अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस (International Day of Non-Violence) मनाए जाने की घोषणा की.

अहिंसा दिवस पर शांति और अहिंसा के लिए दुनिया भर में गांधी जी की अहमियत को रेखांकित किया जाता है. यूएन (United Nations) महासभा के प्रस्ताव में ‘अहिंसा के सिद्धांत की सार्वभौमिक प्रासंगिकता’ और ‘शांति, सहिष्णुता, समझ और अहिंसा की संस्कृति कायम करने’ की इच्छा की भी पुष्टि की गई है.

महामानव बनने की गाथा

155 साल पहले महात्मा गांधी जैसी महान शख्सियत का जन्म हुआ, जो पूरे विश्व के लिए प्रेरणा स्रोत बने. जिसने अंग्रेजों (British) के पसीने छुड़वाए और भारत को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई. खास बात यह है कि उन्होंने दुश्मनों के सामने कभी हथियार नहीं उठाया. दांडी मार्च (Dandi March) और भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) के जरिये ही अंग्रेजी हुकूमत (British Empire) को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया.

एक वकील, स्वतंत्रता सेनानी होने के अलावा बापू समाज सुधारक भी थे. दुबली काया, साधारण कपड़े और हाथ में लाठी, बापू की यही पहचान थी. लेकिन, इस आम इंसान के अंदर एक महामानव निवास करता था, जिसने दुनिया को सत्य और अहिंसा की सीख दी.

बापू के प्रसिद्ध नारे

महात्मा गांधी के बारे में सिर्फ भारत ही नहीं, दुनिया के कई देशों में पढ़ाया जाता है. इन देशों में ‘Gandhi Studies’ विषय के रूप में पढ़ाया जाता है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपना पूरा जीवन सत्य, अहिंसा, ग्राम स्वराज और सर्वधर्म समभाव जैसे सिद्धांतों पर जिया. ‘करो या मरो’, ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’, ‘बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलो’, ‘पाप से घृणा करो, पापी से नहीं’, ‘अहिंसा परमो धर्म’, बापू के वो नारे थे, जिन्होंने भारतीयों के दिलों में ऐसा जोश भर दिया था कि अंग्रेजी हुकूमत तक हिल गई थी.


ये भी पढ़ें: जब Mahatma Gandhi ने थिएटर में देखी थी अपनी जिंदगी की ये पहली और आखिरी फिल्म, उसे भी बीच में छोड़ गए बापू


इन्होंने राष्ट्रपिता की उपाधि दी

क्या आप जानते हैं कि महात्मा गांधी को पहली बार किसने ‘राष्ट्रपिता’ (Father of Nation) कहकर संबोधित किया था और किसने यह उपाधि दी. सिंगापुर में एक रेडियो संदेश देते हुए नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ कहकर संबोधित किया था. जिसके बाद भारत सरकार ने भी उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ के रूप में मान्यता दी.

पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था. उनके पिता का नाम करमचंद गांधी और मां का नाम पुतलीबाई था. महज 13 साल की आयु में गांधी जी का कस्तूरबा गांधी के साथ विवाह कर दिया गया था. उनकी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई पोरबंदर और राजकोट में हुई. साल 1888 में महात्मा गांधी लॉ की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड (England) गए थे. वहां University College of London से उन्होंने बैरिस्टर की डिग्री ली.

रंगभेद के खिलाफ संघर्ष

महात्मा गांधी की जिंदगी में उस वक्त नया मोड़ आया, जब वकालत करने के बाद साल 1893 में वह कानूनी मामले के लिए दक्षिण अफ्रीका (South Africa) पहुंचे. यहां उन्हें नस्लभेदी टिप्पणियों और भेदभाव का सामना करना पड़ा था. इसके बाद अफ्रीका में रह रहे भारतीय लोगों को उनके रंग रूप के कारण संघर्ष करता देख, उन्होंने उनका साथ दिया और उनकी लड़ाई लड़ने का निर्णय किया. यहीं से उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया और उन्होंने सत्याग्रह का सिद्धांत विकसित किया.

1915 में स्वदेश लौटे

कुछ साल अफ्रीका में रहने के बाद साल 1915 में महात्मा गांधी स्वदेश लौटे. भारत आते ही बापू आजादी की लड़ाई से जुड़े. उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ असहयोग आंदोलन (1920), दांडी यात्रा (1930), भारत छोड़ो आंदोलन (1942) का नेतृत्व किया. महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता सेनानी (Freedom Fighter) के अलावा स्वच्छता अभियान, छुआछूत, महिला सशक्तीकरण जैसे समाज सुधारक के रूप में भी काफी काम किया.

जीवन का प्रकाश चला गया

दुर्भाग्य से देश को आजादी मिलने के 5 महीने बाद ही 30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की नाथूराम गोडसे ने दिल्ली में गोली मारकर हत्या कर दी. उनकी मृत्यु न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए शोक लेकर आई. उनके निधन पर जवाहर लाल नेहरू ने कहा था, ‘हमारे जीवन से प्रकाश चला गया है और हर जगह अंधेरा छा गया है.’

-भारत एक्सप्रेस



इस तरह की अन्य खबरें पढ़ने के लिए भारत एक्सप्रेस न्यूज़ ऐप डाउनलोड करें.

Also Read