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मऊ, मुसलमान, मऊवाली साड़ी और चुनाव

मऊ की राजनीति में विकास से कहीं अधिक महत्व राजनीतिक समीकरण और घरों तक अपनी पहुंच का रहा है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में स्थित मऊ (Mau) जिले की राजनीति देश एवं प्रदेश की राजनीति से हमेशा से इतर रही है, इसका प्रमाण मऊ की जनता ने हमेशा दिया है. 2019 में भाजपा की लहर में भी घोसी से बसपा के प्रत्याशी अतुल राय (Atul Rai) सांसद निर्वाचित हुए. जब 1989 में देश में जनता दल की लहर चल रही थी उस समय भी तत्कालीन सांसद एवं जनता दल के प्रत्याशी राजकुमार राय (Rajkumar Rai) को कांग्रेस के प्रत्याशी कल्पनाथ राय ने शिकस्त दी थी.

मऊ फैक्टर (Mau Factor)

मऊ 1988 से पहले उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले का एक हिस्सा हुआ करता था. इसको जिला बनाने की मांग वर्षों से चली आ रही थी लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी. 19 नवंबर 1988 को पूर्व केंद्रीय मंत्री कल्पनाथ राय के प्रयासों से मऊ को उत्तर प्रदेश के एक जिले के रूप में पहचान मिली. कल्पनाथ राय (Kalpnath Rai) विकासवादी सोच के नेता थे जिसका नतीजा यह हुआ कि मऊ में उन्होंने जितने संस्थान बनवा दिए उसका लाभ तो स्थानीय जनता को मिल रहा है लेकिन कल्पनाथ राय के निधन के बाद से कोई भी जनप्रतिनिधि आजतक उन संस्थानों का रंग रोगन तक नहीं करा पाया है.

मऊ की राजनीति को अगर नजदीक से देखा जाए तो यहां आजादी के पहले से ही तीन फैक्टर बहुत प्रभावी तौर पर काम करते हैं और वह फैक्टर हैं मऊ, मुसलमान, मऊवाली साड़ी. मऊ शहर में आजादी के बाद पहले सांसद अलगू राय शास्त्री (Algu Rai Shastri) ने विद्युत उत्पादन केन्द्र की स्थापना तो कराई थी लेकिन उनके निधन के साथ ही वह भी बन्द हो गया. बाद के दिनों में पूर्व केन्द्रीय मंत्री कल्पनाथ राय ने स्वदेशी कॉटन मील और परदहा मील की स्थापना तो कराई लेकिन बाद में यह मीलें भी बन्द हो गईं.

मऊवाली साड़ी फैक्टर (Mauwali Sari Factor)

मऊ बुनकर बाहुल्य क्षेत्र है और मऊ की मऊवाली साड़ी दक्षिण भारत समेत कई देशों में बहुत पसंद की जाती है, यहां तक की बड़े संस्थानों एवं व्यवसायियों द्वारा मऊ की ही निर्मित साड़ियों को बनारसी साड़ी बता कर मार्केट में बेचा जाता है. साड़ियों को बनाने वाले लूम का स्थान अब पॉवरलूम ने ले लिया है और इन्हें चलाने के लिए चाहिए दक्षिण भारत में जाने वाली डायरेक्ट ट्रेने और सस्ती बिजली क्योंकि पॉवरलूम अधिक ऊर्जा का खपत करते हैं. उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री ए के शर्मा (A K Sharma) ने बुनकरों की समस्या को देखते हुए फ्लैट रेट पर बिजली उपलब्ध कराने का प्रबन्ध किया है और ट्रेन भी चलवाया है.

मऊ नगर पालिका (Mau Nagar Palika)

अगर मऊ जनपद की एकमात्र नगर पालिका के चुनावी समीकरण को देखा जाए तो आजादी के बाद से मात्र दो बार ही हिन्दू वर्ग का व्यक्ति चेयरमैन बन पाया है जबकि अन्य सभी चुनावों में मुस्लिम वर्ग चेयरमैन के पद पर काबिज रहा है.

आजादी से पहले ही मऊ नगर पालिका का गठन 1944 में ही कर दिया गया था, हालांकि नगर पालिका परिषद मऊ का पहला चुनाव वर्ष 1953 में हुआ. मऊ नगर पालिका के पहले चेयरमैन बनने का रिकॉर्ड इश्तेयाक अहमद आब्दी (Isteyak Ahmad Aabdi) के नाम दर्ज है. गठन के बाद से अबतक कुल चार बार नगर पालिका के सीमा का विस्तार हो चुका है. 1953 में पहली बार चुनाव के समय नगर पालिका परिषद मऊ में सिर्फ 7.5 किमी का ही दायरा समाहित था और आबादी महज 25 हजार की थी. नगर पालिका परिषद मऊ का अंतिम विस्तार साल 2022 में हुआ था, जिसमें कुल 54 राजस्व गांवों को जोड़ा गया. इन गांवों के जुड़ने से नगर पालिका परिषद की कुल आबादी 3 लाख 45 हजार और सीमा विस्तार 115 किलोमीटर में हो गया. वर्तमान समय में मऊ नगर पालिका परिषद में वार्डों की कुल संख्या 45 है.

क्या है मुसलमान फैक्टर?

मऊ नगर पालिका परिषद के गठन के बाद से अब तक कुल 18 चेयरमैन निर्वाचित हुए हैं. इसमें से मात्र 2 हिंदू और 16 मुस्लिम वर्ग के लोग चेयरमैन बने हैं. वर्तमान समय में अरशद जमाल मऊ नगर पालिका परिषद के 18वें चेयरमैन हैं. हिन्दू वर्ग के रामगोपाल खंडेलवाल (Ramgopal Khandelwal) साल 1959 में और 1961 में बृजबिहारी लाल टंडन (BrijBihari Lal Tandan) नगर पालिका परिषद मऊ के चेयरमैन पद पर काबिज हुए थे. मुसलमान मतदाता मऊ नगर पालिका में बहुत प्रभावी स्थिति में हैं, इसलिए ही यहां की सदर विधानसभा क्षेत्र से मुख्तार अब्बास नकवी (Mukhtar Abbas Naqbi) समेत कई बड़े नेता अपनी किस्मत आजमा चुके हैं. मऊ नगर पालिका परिषद में तकरीबन 1 लाख 26 हजार के आस-पास मुस्लिम मतदाता हैं, जो प्रत्येक चुनाव में प्रमुख भूमिका निभाते हैं.

1985 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपराधियों का आगमन विधानसभा में होने लगा था, 1996 में मऊ जिले की सदर विधानसभा क्षेत्र से तत्कालीन हिस्ट्री सीटर मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) ने बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर पहली बार विधानसभा में दस्तक दी. उसके बाद से मुख्तार मऊ की राजनीति में प्रभावी होता चला गया और मुसलमान वोटो के साथ – साथ ठेकेदारों के वोटो पर भी मुख्तार का हुक्म चलने लगा.

मुख्तार, मुस्लिम और ठेकेदार कनेक्शन वर्तमान समय में भी मऊ की राजनीति में काफी प्रभावी है. मुख्तार अंसारी के लोग हर दल में मौजूद हैं और सत्ता का संरक्षण लेकर अपनी और मुख्तार अंसारी की मजबूती के लिए यथासम्भव प्रयास करते नज़र आते हैं. मऊ, मुसलमान और मऊवाली साड़ी के कम्बिनेशन में विकास बहुत पीछे रह जाता है. मऊ की राजनीति में विकास से कहीं अधिक महत्व राजनीतिक समीकरण और घरों तक अपनी पहुंच का रहा है. मऊ के लोगों को विकास से कहीं अधिक अपनी कौम के प्रति लगाव और अपना व्यक्तिगत हित नज़र आता है और इस बात की पुष्टि लगभग हर चुनाव और तत्कालीन निकाय चुनाव करता नज़र आता है कि जब देश एवं प्रदेश में भाजपा की सरकार है और विकास के लिए बजट भी वहीं से स्वीकृत होना है उसके बावजूद मऊ नगर पालिका के मतदाताओं ने बसपा का चेयरमैन चुना है.

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