मेधा पाटकर
23 साल के पुराने एक आपराधिक मानहानि के मामले में नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता और कार्यकर्ता मेधा पाटकर को सजा को 5 महीने की सजा और 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने यह फैसला सुनाया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि यह आदेश 30 दिनों तक स्थगित रहेगा। कोर्ट ने कहा कि पाटकर की उम्र और स्वास्थ्य की स्थिति को देखते हुए 1 या 2 साल से अत्यधिक सजा नहीं दी जा रही है। वही मेधा पाटकर ने कोर्ट में ज़मानत अर्ज़ी दाखिल की है।
इस धारा के तहत दोषी मेधा पाटकर
मेधा पाटकर को अदालत ने 24 मई को आईपीसी की धारा 500 के तहत दोषी ठहराया था। उनके खिलाफ दिल्ली के वर्तमान उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने वर्ष 2001 में आपराधिक मानहानि का मुकदमा किया था। उस समय वे अहमदाबाद स्थित एनजीओ नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख थे। मेधा पाटकर को सजा देने के मुद्दे पर सुनवाई के दौरान उपराज्यपाल वी.के सक्सेना के वकील ने उन्हें अधिकतम सजा देने की मांग की।
उन्होंने समाज के लिए बहुत काम किया
वहीं दूसरी ओर पाटकर के वकील ने कहा कि उन्होंने समाज के लिए बहुत काम किया है। उन्हें कई अवार्ड मिले है। उनकी उम्र काफी हो गई है, लिहाजा अच्छे आचरण को देखते हुए उन्हें रिहा कर दिया जाए। सक्सेना ने पाटकर के खिलाफ 25 नवंबर 2000 को अहमदाबाद की एक अदालत में मानहानि का शिकायत किया था और उसमें पाटकर की एक प्रेस नोट का हवाला दिया था। प्रेस नोट देशभक्त का असली चेहरा शीर्षक से था और उसमें कहा गया था कि हवाला लेन देन से दुखी वीके सक्सेना खुद मालेगांव आये। एनबीए की तारीफ की और 40 हजार रुपए का चेक दिया। लेकिन चेक भुनाया नहीं जा सका और बाउंस हो गया।
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जांच करने पर बैंक ने बताया कि खाता मौजूद ही नही है। मेधा पाटकर ने यह भी कहा था कि सक्सेना कायर है, देशभक्त नहीं। अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि मेधा पाटकर की हरकतें जानबूझकर और दुर्भाग्यपूर्ण थी, जिसका उद्देश्य सक्सेना की छबि को धूमिल करना था। इससे उनकी छवि और साख को काफी नुकसान पहुचा है। उनके लगाए गए आरोपी भी न केवल मानहानिकारक है, बल्कि नकारात्मक धारणाओं को भड़काने के लिए भी गढ़े हुए है। इसके अलावा यब आरोप है कि शिकायतकर्ता गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के लिए गिरवी रखा रहा है। यह उनकी ईमानदारी और सार्वजनिक सेवा पर सीधा हमला है।