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‘नशा मुक्ति केंद्र में किसी को जबरन हिरासत में नहीं रखा जा सकता’, पति-पत्नी से जुड़े मामले में दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश

आज दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह व न्यायमूर्ति अमित शर्मा की पीठ ने मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम के संबंध में प्रवेश रजिस्टर की जांच करने का निर्देश दिया, ताकि कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा के विरुद्ध नशा मुक्ति केंद्र में न रहे.

delhi high court

दिल्ली हाईकोर्ट

नशा मुक्ति केंद्र में किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध रखने पर दिल्ली हाई कोर्ट ने गंभीरता से लिया है. कोर्ट ने दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस को जांच करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों को समय-समय पर जांच करनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी जबरन हिरासत में न रखा जाए.

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह व न्यायमूर्ति अमित शर्मा की पीठ ने मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम के संबंध में प्रवेश रजिस्टर की जांच करने का निर्देश दिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी रोगी अपनी इच्छा के विरुद्ध नशा मुक्ति केंद्र में न रहे.

पत्नी ने पति को नशा मुक्ति केंद्र भिजवाया था 

न्यायालय ने यह आदेश एक व्यक्ति की याचिका पर विचार करते हुए पारित किया जिसने आरोप लगाया था कि उसके मित्र को उसकी पत्नी ने जबरन नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती कराया है और किसी भी व्यक्ति को उससे मिलने या उसके संपर्क में आने की अनुमति नहीं है.

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि केंद्र में कई व्यक्ति हैं जिन्हें अनैच्छिक आधार पर हिरासत में रखा गया है.

वकील का तर्क – स्वेच्छा से भर्ती किया गया था

केंद्र के वकील ने दावा किया कि याचिकाकर्ता के मित्र को स्वेच्छा से भर्ती कराया गया था. इस स्थिति पर मित्र ने विवाद किया और अदालत को बताया कि भर्ती के समय मरीजों के हस्ताक्षर जबरन लिए गए थे.

अदालत ने 12 अगस्त को पारित अपने आदेश में कहा कि लगाए गए आरोपों पर विचार करते हुए एसएमएचए, आईएचबीएएस, दिल्ली पुलिस और दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग के साथ जांच करेगा और यह सुनिश्चित करने के लिए समय-समय पर यादृच्छिक जांच करेगा कि एसएबीआरआर फाउंडेशन में भर्ती मरीजों को जबरन हिरासत में नहीं रखा जा रहा है.

मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम, 2017 के अनुसार, विशेषकर धारा 89 के अंतर्गत, ‘मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठान में मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों का तीस दिनों तक प्रवेश और उपचार’ शीर्षक से प्रवेश रजिस्टर की भी यादृच्छिक जाँच की जाएगी, जिसके लिए भर्ती होने वाले रोगी की सहमति की आवश्यकता होती है.

वहीं पत्नी ने आरोप लगाया कि उसका पति मादक द्रव्यों के सेवन के लिए जाना जाता था और उसके साथ हिंसा के प्रकरण थे. अदालत ने निर्देश दिया कि पति, जिसे बाद में छुट्टी दे दी गई है का मानव व्यवहार और संबद्ध विज्ञान संस्थान के डॉक्टरों द्वारा चिकित्सकीय परीक्षण किया जाए.

– भारत एक्सप्रेस

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