दिल्ली हाई कोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि आयुर्वेदिक या यूनानी चिकित्सक के रूप में पंजीकृत होकर लाइसेंस प्राप्त करने का अधिकार केवल उन छात्र को है जिसके पास बीएएमएस या बीयूएमएस की डिग्री है. न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर ने कहा कि ऐसी डिग्री लेने से पहले छात्र को पंजीकृत चिकित्सक के रूप में डाक्टरी करने का कोई अधिकार नहीं है.
न्यायमूर्ति ने कहा कि जो छात्र बीएएमएस/बीयूएमएस की पढ़ाई कर रहा है, वह डाक्टरी करने के अधिकार का दावा नहीं कर सकता है. उनके सभी पेपर पास करने और बीएएमएस या बीयूएमएस की डिग्री प्राप्त करने के बाद ही छात्र पंजीकृत चिकित्सक के रूप में डाक्टरी करने के लिए लाइसेंस लेने का दावा कर सकता है. उन्होंने उक्त टिप्पणी करते हुए कई कालेजों से बीएएमएस और बीयूएमएस की पढ़ाई करने वाले छात्रों की याचिका को खारिज करते हुए की.
छात्रों ने भारतीय चिकित्सा पद्धति आयोग अधिनियम, 2020 की धारा 15(1) को चुनौती दी थी जिसके अनुसार उन्हें डाक्टरी करने के लिए पहले नेशनल एग्जिट टेस्ट परीक्षा पास करना अनिवार्य था. छात्रों का कहना था कि उन्होंने भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1970 के लागू होने के समय बीएएमएस या बीयूएमएस में दाखिला लिया था. इस तरह से उनलोगों को बाद में लागू किसी परीक्षा से गुजरने की जरूरत नहीं है. यह परीक्षा उनपर थोपा नहीं जा सकता.
कोर्ट ने उनकी इस मांग को खारिज करते हुए कहा कि आयुर्वेदिक या यूनानी चिकित्सा व्यवसायी के रूप में डाक्टरी करने का लाइसेंस उनके बीएएमएस या बीयूएमएस पास किए जाने के बाद ही मिलेगा. यह चरण अभी बांकी है. उसने यह कहते हुए नेशनल एग्जिट टेस्ट परीक्षा लेने के फैसले को बरकरार रखा, जो बीएएमएस या बीयूएमएस परीक्षा पास करने के बाद उन्हें लाइसेंस लेने का हकदार बनाता है.
कोर्ट ने कहा कि एग्जिट परीक्षा एनईपी, 2020 के अनुरूप है और यह सार्वजनिक हित में है. इसका उद्देश्य आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सा में डाक्टरी करने वाले लोगों की गुणवत्ता और उत्कृष्टता सुनिश्चित करना है. पंजीकृत चिकित्सक के रूप में डाक्टरी करने के लिए लाइसेंस का अधिकार एक बाद की अवस्था है, जो बीएएमएस या बीयूएमएस की डिग्री प्राप्त करने की शर्त पर है. इसलिए उसे अमान्य नहीं किया जा सकता है.
-भारत एक्सप्रेस
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