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पीएम गति शक्ति मास्टर प्लान ने भारत की लॉजिस्टिक्स लागत को GDP के 5 प्रतिशत तक घटाया

पीएम गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान भारत की सबसे महत्वाकांक्षी बुनियादी ढांचा समन्वय पहल है, जो देश के कनेक्टिविटी और आर्थिक विकास के दृष्टिकोण को तेजी से बदल रही है.

नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) द्वारा की गई स्टडी के अनुसार भारत की लॉजिस्टिक्स लागत जीडीपी के 7.8-8.9 प्रतिशत के बीच रह गई है, जो पहले अनुमानित 13-14 प्रतिशत के आंकड़ों से काफी कम है. यह बुनियादी ढांचे के विकास के लिए लाए गए पीएम गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान की सफलता को दर्शाता है. यह जानकारी गुरुवार को जारी ‘गति से प्रगति’ नामक एक रिपोर्ट में दी गई.

हालांकि, देश की लॉजिस्टिक्स लागत अभी भी विकसित अर्थव्यवस्थाओं के 6-8 प्रतिशत के वैश्विक बेंचमार्क से ऊपर है. रिपोर्ट में बताया गया कि विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स परफॉरमेंस इंडेक्स में भारत का 2023 में 44वें स्थान से 38वें स्थान पर पहुंचना सकारात्मक गति को दर्शाता है, हालांकि आगे और प्रगति की पर्याप्त गुंजाइश है.

पीएम गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान भारत की सबसे महत्वाकांक्षी बुनियादी ढांचा समन्वय पहल है, जो देश के कनेक्टिविटी और आर्थिक विकास के दृष्टिकोण को तेजी से बदल रही है.

इस रिपोर्ट के अनुसार, इस योजना ने मजबूत संस्थागत ढांचे स्थापित किए हैं और शुरुआती समन्वय सफलताएं हासिल की हैं, लेकिन इसके सात बुनियादी ढांचे के इंजनों में लक्षित हस्तक्षेपों के माध्यम से भारत के आर्थिक परिवर्तन को गति देने के लिए पर्याप्त अवसर बने हुए हैं.

सात इंजन फ्रेमवर्क सड़क, रेलवे, हवाई अड्डे, बंदरगाह, जलमार्ग, जन परिवहन और लॉजिस्टिक्स बुनियादी ढांचे को शामिल करते हुए एक समग्र दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है, जिनमें से प्रत्येक भारत के कनेक्टिविटी इकोसिस्टम में अलग-अलग मूल्य का योगदान देता है.

200 से अधिक एयरपोर्ट बनाने का लक्ष्य

रिपोर्ट में बताया गया कि इस योजना का लक्ष्य महत्वाकांक्षी हैं, जिसमें राष्ट्रीय राजमार्गों को 2,00,000 किलोमीटर तक विस्तारित करना, रेलवे माल ढुलाई क्षमता को 1,600 मिलियन टन तक बढ़ाना, 200-220 नए हवाई अड्डे स्थापित करना और व्यापक मल्टी-मॉडल एकीकरण करना शामिल है. रिपोर्ट में बताया गया कि सभी सात इंजनों में कार्यान्वयन चुनौतियां बनी हुई हैं, जिनमें फंडिंग अंतराल, नियामक जटिलताएं, भूमि अधिग्रहण में देरी और केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी शामिल है.

विश्लेषण से पता चलता है कि संस्थागत ढांचा मौजूद होने के बावजूद समन्वय तंत्र को त्वरित परियोजना वितरण में बदलने के लिए प्रौद्योगिकी अपनाने, निजी क्षेत्र की भागीदारी और सुव्यवस्थित अनुमोदन प्रक्रियाओं पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि पीएम गति शक्ति की सफलता अंततः निरंतर राजनीतिक प्रतिबद्धता, पर्याप्त संसाधन आवंटन और उभरती चुनौतियों और अवसरों के लिए समन्वय तंत्र के निरंतर अनुकूलन पर निर्भर करती है.


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-भारत एक्सप्रेस



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