राजस्थान में पवित्र उपवनों की सुरक्षा से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को निर्देश दिया है कि पवित्र उपवनों के सर्वेक्षण और उसको लेकर अधिसूचनाजारी करें.
कोर्ट ने कहा कि राजस्थान सरकार को जमीनी और उपग्रह आधारित मानचित्र के माध्यम से ओरण, देव और रुंध जैसे पवित्र उपवनों की पहचान करनी होगी. चाहे उनकी आकार और सीमा कुछ भी हो, बशर्ते कि उनका परिस्थितिक और सांस्कृतिक महत्व हो.
पांच सदस्यीय समिति गठित करने का निर्देश
जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एसवीएन भट्टी और जस्टिस संदीप मेहता ने कहा कि स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी, जो ऐतिहासिक रूप से पवित्र उपवनों की रक्षा करते आए है. संरक्षण और प्रबंधन प्रक्रिया में इन समुदायों की सक्रिय भागीदारी आवश्यक होगी.
पवित्र उपवनों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 36 सी के तहत सामुदायिक संरक्षण क्षेत्र घोषित किया जाएगा. केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति की सिफारिशों का पालन किया जाएगा. कोर्ट ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को राजस्थान सरकार के साथ पांच सदस्यीय समिति गठित करने का निर्देश दिया है.
प्रीप्लानेटरी मॉडल की सराहना
इस समिति के अध्यक्षता हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज करेंगे, इस समिति में वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी और विशेषज्ञ शामिल होंगे. कोर्ट राजस्थान सरकार से ने 10 जनवरी 2025 तक अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है. मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राजस्थान के राजसमंद जिले में चल रहे ‘प्रीप्लानेटरी मॉडल’ की सराहना की है.
इस मॉडल के तहत जन्म लेने वाली हर बेटी के लिए 111 पौधे लगाए जाते है. जस्टिस संदीप मेहता ने कहा कि हमें राजस्थान के राजसमंद जिले में तैयार किए गए प्रीप्लानेटरी मॉडलसे प्रेरित होना चाहिए. जस्टिस मेहता ने यह भी कहा कि अत्यधिक खनन के कारण गांव पर्यावरणीय क्षति हुई थी.
बेटी के जन्म पर लगाए जाते हैं 111 पेड़
वहां के सरपंच की दूरदर्शी सोच के कारण हर बेटी के जन्म पर 111 पेड़ लगाए जाते हैं. जस्टिस मेहता ने आगे कहा कि यह बहुत सराहनीय है और अब तक वहां लगभग 14 लाख पेड़ लगाए जा चुके है. इससे लैंगिक नीयबक भी पता चलता है और कन्या भ्रूण हत्या की घटनाओं पर भी रोक लगी है. यह एक बेहतरीन पहल है, क्योंकि अब महिलाओं की आबादी अन्य लिंगों की तुलना में अधिक है.
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-भारत एक्सप्रेस
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