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केंद्र सरकार की Fact Check Unit पर रोक, Supreme Court ने ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का हवाला दिया

केंद्र सरकार द्वारा ‘फर्जी समाचार की चुनौती से निपटने के लिए’ प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) के तहत Fact Check Unit को अधिसूचित करने के एक दिन बाद सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (21 मार्च) को इस अधिसूचना (Notification) पर रोक लगा दी और सरकार के कदम को बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा मिली हरी झंडी को खारिज कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा इस मामले में नागरिकों की अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़े बड़े संवैधानिक सवाल शामिल हैं, जिन पर विचार जरूरी है. भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित है. हालांकि, अदालत ने मामले की योग्यता पर कोई टिप्पणी नहीं की.

पीठ ने कहा, ‘हमारा मानना है कि हाईकोर्ट के समक्ष आने वाले प्रश्न संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के मूल प्रश्नों से संबंधित हैं. हमारा विचार है कि अंतरिम राहत के आवेदन की अस्वीकृति के बाद 20 मार्च, 2024 की अधिसूचना पर रोक लगाने की जरूरत है.’

स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें केंद्र को फैक्ट चेक यूनिट बनाने से रोकने का निर्देश देने की मांग की गई थी.

फैक्ट चेक यूनिट का पिछले साल किया गया था प्रावधान

फैक्ट चेक यूनिट का प्रावधान पिछले साल केंद्र द्वारा लाए गए सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 (IT Rules) में संशोधन का हिस्सा था.

नियमों के तहत अगर इस यूनिट को ऐसी कोई पोस्ट मिलती है या उसके बारे में सूचित किया जाता है जो फर्जी, झूठी और जिसमें सरकार के काम के बारे में भ्रामक तथ्य हैं, तो यह उन्हें सोशल मीडिया मध्यस्थों (Social Media Intermediaries) के लिए चिह्नित कर देगी. एक बार ऐसी पोस्ट को चिह्नित कर दिए जाने के बाद मध्यस्थ (Intermediary) के पास इसे हटाने या अस्वीकरण लगाने का विकल्प होता है. दूसरा विकल्प अपनाने पर मध्यस्थ के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का जोखिम होता है.

याचिकाकर्ताओं ने सेंसरशिप की चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि नए नियम यूजर्स को सोशल मीडिया पर खुद को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने से प्रतिबंधित करेंगे. उन्होंने कहा था कि सोशल मीडिया मध्यस्थ कानूनी परेशानियों से बचने के लिए सरकार की फैक्ट चेक यूनिट द्वारा चिह्नित पोस्ट को आसानी से हटा देंगे.

आईटी नियमों को चुनौती

कुणाल कामरा ने राजनीतिक व्यंग्यकार के रूप में काम करने के अपने अधिकार का उल्लंघन करने के लिए नए आईटी नियमों को भी चुनौती दी और अगर उनके कंटेंट को फैक्ट चेक यूनिट द्वारा चिह्नित किया गया तो उन्‍होंने अपनी सोशल मीडिया पहुंच खोने का डर व्यक्त किया था. उन्होंने कहा कि नियम सरकार को अपनी नीतियों की आलोचना करने वाले किसी भी कंटेंट को चिह्नित करने की अनुमति देंगे.

केंद्र ने जवाब दिया था कि फर्जी खबरों पर नकेल कसने के लिए आईटी नियम जनहित में जारी किए गए थे. इसने यह भी कहा था कि फैक्‍ट चेक सबूतों पर आधारित होगी और ऐसे फैसलों को अदालतों में चुनौती दी जा सकती है. केंद्र ने यह भी कहा कि राजनीतिक राय, व्यंग्य और कॉमेडी सरकारी काम से जुड़े नहीं हैं. इस पर याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि ‘केंद्र सरकार का व्यवसाय’ एक ‘अस्पष्ट’ क्षेत्र है.

बॉम्‍बे हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली थी

बीते 11 मार्च को बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि इससे कोई गंभीर और अपूरणीय क्षति नहीं होगी, फैक्ट-चेक यूनिट की स्थापना पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था.

एकल-न्यायाधीश पीठ ने कहा था कि याचिकाकर्ताओं को डर है कि अगर फैक्ट चेक यूनिट को अधिसूचित किया जाता है तो राजनीतिक प्रवचन या टिप्पणियों, राजनीतिक व्यंग्य आदि के रूप में सूचनाओं के आदान-प्रदान को निशाना बनाया जा सकता है.

हालांकि, सॉलिसीटर जनरल ने कहा है कि फैक्‍ट चेक यूनिट का इरादा केवल सरकारी काम को उसके सख्त अर्थों में निपटाने का है और इसका उद्देश्य राजनीतिक विचारों, व्यंग्य या कटाक्ष को दबाना नहीं है.

खंडित फैसला आया था

जनवरी में एक खंडपीठ के खंडित फैसले के बाद नए आईटी नियमों के खिलाफ याचिकाएं एकल-न्यायाधीश पीठ को भेज दी गई थीं, जहां खंडपीठ के एक न्यायाधीश ने नियमों को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था, वहीं दूसरे ने उन्हें बरकरार रखा था.

पिछले साल केंद्र ने अदालत को आश्वासन दिया था कि वह आईटी नियमों पर अंतिम फैसला आने तक फैक्ट चेक यूनिट को अधिसूचित नहीं करेगा, लेकिन खंडित फैसले के बाद केंद्र ने कहा कि मौखिक आश्वासन केवल तीसरे न्यायाधीश द्वारा मामले की सुनवाई तक ही बढ़ाया जा सकता है.

याचिकाकर्ताओं ने तब अंतरिम आवेदन दायर किया था, जिसमें फैक्ट चेक यूनिट को अधिसूचित करने पर रोक लगाने की मांग की गई थी. बॉम्बे हाईकोर्ट से कोई राहत नहीं मिलने के बाद याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

-भारत एक्‍सप्रेस

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