प्रतीकात्मक चित्र
हर दिन लाखों लोग भारतीय रेल से यात्रा करते हैं, जो सुरंगों, पुलों और खूबसूरत इलाकों से गुजरती है. लेकिन शायद कोई भी मार्ग कालका-शिमला रेलवे से ज्यादा अद्भुत नहीं है. यह रेलमार्ग हिमालय की कठिन पहाड़ियों के बीच से गुजरता है और दूर-दराज के इलाकों को जोड़ता है.
क्या आप जानते हैं कि कालका-शिमला नैरो-गेज रेलवे की ढलान सबसे ज्यादा है? यह मार्ग 102 सुरंगों से होकर गुजरता है, जिनमें से सबसे लंबी सुरंग 1,000 मीटर से भी ज्यादा लंबी है. यूनेस्को द्वारा घोषित हेरिटेज टॉय ट्रेन, हरे-भरे मेपल, देवदार और चीड़ के जंगलों के बीच से होकर 864 पुलों को पार करती है.
सुरंग बनाने में आ रही थी समस्या
कर्नल बरोग ने अपनी टीम को सुरंग के दोनों छोर से खुदाई करने का निर्देश दिया, लेकिन उन्होंने संरेखण (Alignment) की गणना में बड़ी गलती कर दी. इस कारण ब्रिटिश सरकार ने उन्हें फटकार लगाई और एक रुपये का जुर्माना भी लगाया. अपमानित महसूस कर कर्नल बरोग ने आत्महत्या कर ली. माना जाता है कि उन्हें अधूरी सुरंग के पास ही दफनाया गया था.
बरोग की मौत के बाद, नए मुख्य अभियंता एचएस हैरिंगटन को भी वही समस्या आई. तभी चैल के पास झाझा गांव के एक साधारण चरवाहे, भलकू राम, ने हैरिंगटन की मदद की पेशकश की. भलकू राम ने अपनी अनूठी विधि से अंग्रेज़ों को सुरंग बनाने में मदद की.
बाबा भलकू ने की सुरंग बनाने में मदद
बहुत कम लोग जानते हैं कि इस असाधारण रेलमार्ग को बनाने में एक साधारण चरवाहा, भलकू राम, की महत्वपूर्ण भूमिका थी. उनकी कहानी 1903 में शुरू होती है, जब शिमला-कालका रेलवे ट्रैक का निर्माण हो रहा था.
स्थानीय लोगों के लिए भलकू राम एक सम्मानित व्यक्ति थे. ‘बाबा भलकू’ के नाम से मशहूर, वे अपनी लकड़ी की छड़ी से पहाड़ों की दीवारों पर थपथपाते थे. छड़ी से उत्पन्न होने वाली आवाजों को सुनकर, वे खुदाई के सही बिंदु चिह्नित करते थे. उनके मार्गदर्शन में, अंग्रेज़ 1143.61 मीटर लंबी सुरंग बनाने में सफल रहे, जिसे आज ‘बरोग सुरंग (नंबर 33)’ के नाम से जाना जाता है.
ब्रिटिश वायसराय ने किया था सम्मानित
भलकू राम के अद्वितीय योगदान के लिए, ब्रिटिश वायसराय ने उन्हें एक पदक और पगड़ी भेंट की, जिसे आज भी उनके परिवार ने संभाल कर रखा है. शिमला में स्थित बाबा भलकू रेल संग्रहालय भी उनके नाम पर ही है, जो इस गुमनाम नायक को श्रद्धांजलि देता है.
-भारत एक्सप्रेस