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Gyanvapi Survey: “यह सिर्फ एक रिपोर्ट है, कोई फैसला नहीं…” ज्ञानवापी पर सामने आई ASI रिपोर्ट पर मुस्लिम पक्ष ने किया नया दावा, आगे की ये है प्लानिंग

UP News: ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली समिति के सचिव मोहम्मद यासीन ने कहा, ‘यह सिर्फ एक रिपोर्ट है, कोई फैसला नहीं. कई तरह की रिपोर्ट हैं. यह इस मुद्दे पर अंतिम शब्द नहीं है.’

ज्ञानवापी सर्वे (फोटो-सोशल मीडिया)

Gyanvapi Survey: वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद विवाद के मामले में एएसआई की रिपोर्ट सामने आने के बाद जहां ये पूरी तरह से साफ हो चुका है कि मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाया गया और सर्वे की रिपोर्ट वाराणसी जिला कोर्ट ने हिंदू-मुस्लिम पक्ष को सौंप दी है तो वहीं अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की ओर से बयान सामने आया है, जिसमें कहा गया है कि, वे एएसआई सर्वेक्षण रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद ही इस मामले में कोई टिप्पणी करेंगे, जबकि रिपोर्ट का हवाला देते हुए हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने मीडिया को सम्बोधित करते हुए ये कहा है कि, ASI ने कहा है कि मौजूदा ढांचे के निर्माण से पहले वहां एक बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था. उन्होंने ये भी बताया कि, रिपोर्ट में मंदिर को 17वीं शताब्दी में तोड़े जाने, मंदिर के खंभों और हिंदू देवी-देवताओं के मलबे मिलने का सबूत मिला है. तो दूसरी ओर मुस्लिम पक्ष ने इस रिपोर्ट को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है और ये कहते हुए अभी भी विवादित स्थल पर मस्जिद ही होने का दावा किया कि, “यह सिर्फ एक रिपोर्ट है, कोई फैसला नहीं. ”

मस्जिद का एएसआई सर्वेक्षण सिर्फ एक रिपोर्ट

इस रिपोर्ट के सम्बंध में ज्ञानवापी मस्जिद समिति की ओर से शुक्रवार को बयान सामने आया है, जिसमें कहा गया है कि, मस्जिद का एएसआई सर्वेक्षण सिर्फ एक रिपोर्ट है, कोई फैसला नहीं, जिसके बारे में हिंदू पक्ष के वकीलों का दावा है कि इसे पहले से मौजूद मंदिर के अवशेषों पर बनाया गया था. तो दूसरी ओर अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने कहा कि वह फिलहाल एएसआई सर्वेक्षण रिपोर्ट का अध्ययन कर रहे हैं, इसके बाद ही वह इस रिपोर्ट पर कोई टिप्पणी कर सकेंगे. वहीं मुस्लिम पक्ष के वकील अखलाक अहमद ने इस पूरे मामले को लेकर कहा है कि, इस सर्वे रिपोर्ट में सरसरी निगाह से देखा है कि जो भी फोटो हैं, ये पुराने हैं जो एडवोकेट कमीशन के समय में सामने आ चुके थे. कोई भी नया फोटो नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि, बस अंतर केवल इतना ही है कि पहले केवल फोटो खींचकर द‍िखाए गए थे, अब इनकी नाप-जोख करके लिख दिया गया है. कोई नया सबूत नहीं मिला है.

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नहीं है इस मुद्दे का अंतिम शब्द

तो दूसरी ओर ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली समिति के सचिव मोहम्मद यासीन का एक बयान सामने आया है, ‘यह सिर्फ एक रिपोर्ट है, कोई फैसला नहीं. कई तरह की रिपोर्ट हैं. यह इस मुद्दे पर अंतिम शब्द नहीं है.’ इसके अलावा उन्होंने ये भी कहा कि, उच्चतम न्यायालय जब पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 से संबंधित मामले की सुनवाई करेगा तो वे (समिति) अपने विचार प्रस्तुत करेंगे. वह कहते हैं कि, अधिनियम कहता है कि अयोध्या में राम मंदिर को छोड़कर किसी भी स्थान का ‘धार्मिक चरित्र’ 15 अगस्त, 1947 को मौजूद स्थान से नहीं बदला जा सकता है. तो इसके अलावा उन्होंने खुदाई को लेकर कहा कि, खुदाई के लिए उन्‍हें मना किया गया था. एएसआई के डायरेक्‍टर ने भी हलफनामा दायर करके कहा था कि खुदाई नहीं की जाएगी, लेकिन उन्‍होंने मंदिर के पश्चिमी हिस्‍से में जो मलबा था उसकी सफाई कराई. उन्होंने दावा करते हुए कहा कि, उसे हमें फायदा यह हुआ कि वहां हमारी जमीन पर दो मजारें थीं वह खुल गईं हैं. दक्खिनी तहखाने में कुछ मिट्टी निकाली है जब कुछ नहीं मिला तो उसी तरह मिट्टी छोड़ दी.

गलत है पश्चिम दीवार की बात

वहीं अखलाक अहमद ने हिंदू पक्ष के उस दावे, जिसमें कहा गया है कि, पश्चिमी दीवार मंदिर की दीवार है, को लेकर कहा है कि, ऐसा गलत है. पश्चिमी दीवार में ऐसी कोई मूर्ति नहीं लगी है जिससे कहा जा सके कि वह मंदिर की दीवार है. तो वहीं उन्होंने मुस्लिम पक्ष की आगे की प्लानिंग को लेकर कहा कि, पूरी रिपोर्ट पढ़ने पर देखेंगे कि इसमें क्या गलत रिपोर्ट दी गई है. उस पर हम लोग ऑब्‍जेक्‍शन दाखिल करेंगे. इसी के साथ ही जो मूर्तियों और शिवलिंग पाए गए हैं और फोटो सामने आई तो इस पर अखलाक अहमद ने कहा कि, ये कोई बड़ी बात नहीं है. हमारी एक इमारत थी, जिसे हम नॉर्थ गेट या छत्‍ता द्वार कहते थे उसमें हमारे पांच किराएदार थे. वे लोग मूर्तियां बनाते थे, जो मलबा था वह पीछे की तरफ फेंक देते थे. वही मलबे में मिले हैं, यह कोई अहम सबूत नहीं है. सारी मूर्तियां खंड‍ित हैं, टूटी हुई हैं. कोई ऐसी मूर्ति नहीं मिली जिसे कहा जाए कि भगवान शिव की मूर्ति है. या शिवलिंग मिला हो जिसके आधार पर कहा जा सके कि यह मंदिर है.

ASI सर्वे की रिपोर्ट ने लगाई है मंदिर पर मुहर?

मालूम हो कि ASI ने सर्वे की 839 पेज की रिपोर्ट कोर्ट में पेश की है. इस रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि, मस्जिद से पहले वहां हिंदू मंदिर था और इसे तोड़कर मंदिर बनाया गया. एएसआई ने रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया है और पाया है कि हिन्दू मंदिर का स्ट्रक्चर 17वीं शताब्दी में तोड़ा गया है और मस्जिद बनाने में मलबे का उपयोग किया गया है. तो इसी के साथ ही रिपोर्ट में दो तहखानों में हिन्दू देवी-देवताओं का मलबा मिलने की भी बात कही गई है. रिपोर्ट में मस्जिद की पश्चिमी दीवार को भी एक हिन्दू मंदिर का हिस्सा बताया गया है. साथ ही पत्थर पर फारसी में मंदिर तोड़ने में आदेश और तारीख मिली है. महामुक्ति मंडप लिखा पत्थर भी मिला है. तो वहीं अब हिंदू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा है कि वजू खाने के सर्वे के लिए मांग की जाएगी.

ASI रिपोर्ट में ये बातें आई है सामने

एएसआई रिपोर्ट में कहा गया है कि, 2 सितंबर 1669 में मंदिर तोड़ा गया था. हिन्दू मन्दिर के भग्नावशेष के उपयोग करके मस्ज़िद बनाई गई. इसी के साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है, मंदिर होने के 32 से ज्यादा सबूत मिले हैं. देवनागरी, कन्नड़ और तेलुगु ग्रन्थों के सबूत मिले हैं. जनार्दन रुद्र और उमेश्वर के नाम से इंक्रिप्सन मिले. तो साथ ही पिलर और प्लास्टर भी प्राचीन हिन्दू मंदिर के ही रियूज किए गए हैं. तो साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि, मस्जिद को मंदिर के पिलर पर बनाया गया है.

-भारत एक्सप्रेस



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