Jamnalal Bajaj
Jamnalal Bajaj death anniversary: अपने संसाधनों से आज़ादी के नायकों की भरपूर मदद करने वाले एक सेठ ने मुनाफे को तरजीह देने के बजाए बिजनेस को समाज सेवा का एक माध्यम बना डाला तभी तो महात्मा गांधी ने उन्हें अपने पांचवें दत्तक पुत्र से विभूषित किया। महात्मा गांधी के बहुआयामी आंदोलनात्मक अभियानों और स्वाधीनता आंदोलन में जिन भारतीय उमियों ने सक्रिय भूमिका निभाई थीए उनमें सेठ जमनालाल बजाज का नाम अग्रणी है। सेठ जमनालाल बजाज का जन्म 4 नवंबरए1884 को राजस्थान के सीकर, जिला कासीकाबास में हुआ था। वर्धा निवासी सेठ बच्छराज ने उन्हें छोटी उम्र में गोद लिया था। लेकिन 18 वर्ष की युवा उम्र होते होते जमनालाल जी ने 1907 में एक पत्र लिखकर अपनी सारी संपत्ति का त्याग कर दिया। शुरू से ही जमनालाल की रुचि व्यापार से अधिक दान-पुण्य और सामाजिक कार्यो में रही।
1915 में उनकी पहली मुलाकात गांधी जी से तब हुई, जब वे दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे। तब से ही जमनालाल गांधीजी के कार्यक्रमों और गतिविधियों में शामिल होने लगे और उन्हें अपना भरपूर सहयोग देते रहे। 1920 में वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष चुने गए। प्रारंभ से ही जमनालाल जी आध्यात्मिक गुरु की खोज में थे और गांधीजी जैसा व्यक्ति उन्हें मार्गदर्शक के रूप में मिल गया। 1920 में ही उन्होंने गांधीजी से निवेदन किया कि वे उन्हें अपना दत्तक पुत्र मान लें। इस निवेदन को गांधीजी ने बड़ी आत्मीयता से स्वीकार कर लिया। 1920 में जमनालाल जी ने स्वदेशी और छुआछूत निवारण आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिया। इससे पहले 1918 में ही उन्होंने देश में सबसे पहले वर्धा स्थित अपने श्रीलक्ष्मीनारायण मंदिर को आम जनता और विशेषकर हरिजनों के प्रवेश के लिए खोल दिया था। यही नहीं, उन्होंने गांधीजी की रचनात्मक गतिविधियों के लिए वर्धा को केंद्र बना दिया था।
बजाजवाड़ी में पास हुआ भारत छोड़ो का प्रस्ताव
1936 में जब गांधीजी ने सोचा कि ग्रामीण क्षेत्र में चले जाएं तो इसके लिए जमनालाल बजाज ने वर्धा के पास गांव में अपनी जमीन उन्हें सौंप दी। गांधीजी ने इसी गांव का नाम बदलकर सेवाग्राम रख दिया और यहीं वे 1945 तक अपनी रचनात्मक गतिविधियां चलाते रहे। जमनालालजी ने वर्धा का अपना बजाजवाड़ी नामक बंगला गांधीजी से मिलने आने वाले वरिष्ठ राष्ट्रीय नेताओं के ठहरने के लिए सुसज्जित करा दिया था। उन दिनों कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठकें खासकर बजाजवाड़ी में हुआ करती थीं। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि कांग्रेस का प्रसिद्ध भारत छोड़ो प्रस्ताव बजाजवाडी में ही 1942 में पास किया गया था। इस तरह जमनालाल जी गांधीजी की शक्ति का एक आधार-स्तंभ बन गए थे।
जमनालाल बजाज से प्रभावित थे महात्मा गांधी
गांधीजी ने उनके बारे में कहा था, मुझे अपनी प्रवृत्तियों को चलाने के लिए जमनालालजी पर भरोसा रखना बहुत सरल था, क्योंकि उनके जितना मेरी प्रवृत्तियों को दूसरा कोई नहीं जानता था। जमनालाल जी ने अपना कर्तव्य समझकर गांधीजी के सभी कार्यक्रमों व गतिविधियों में तन-मन-धन से मदद की। यदि जमनालाल बजाज के पास अपनी व्यापारिक व औद्योगिक गतिविधियां चलाने के लिए पर्याप्त समय नहीं थाए फिर भी उन्होंने उत्तर प्रदेश के गोला गोकर्णनाथ में 1931 में एक चीनी मिल की स्थापना कीए जिसे आज बजाज हिन्दुस्थान शुगर लिमिटेड के नाम से जाना जाता है। 11 फरवरी 1942 को 53 वर्ष की आयु में अचानक जमनालाल जी का निधन हो गया। उस समय गांधीजी ने उनके बारे में अपने प्रसिद्ध अखबार हरिजन में लिखा थाए जब कभी धनी व्यक्तियों को अपने धन का समाज की भलाई के लिए ट्रस्ट बनाने के लिए मैंने लिखा है, तब इस वणिक शिरोमणि का नाम मेरे दिमाग में रहा है।
कमलनयन बजाज ने ऐसे की उद्यमियों की मदद
जमनालाल बजाज का जिक्र हो तो भला इस लेख मे उनके होनहार पुत्र एक आइडियल उद्योगपति कमल नयन बजाज का जिक्र किए बिना यह अधूरा सा लगता है जमनालाल बजाज के ज्येष्ठ पुत्र थे कमलनयन बजाज जिन्होंने युवावस्था से ही पारिवारिक जिम्मेदारियों को अपने कंधे पर उठा रखा था। इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविालय में अपनी शिक्षा पूर्ण करके वे भारत वापस लौटे और तभी से अपने पिता के व्यापारिक व सामाजिक कार्यो में सहयोग देने लगे। यह भी दिलचस्प बात है कि उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जेल जाना ठीक नहीं समझा इसके पीछे उनका उद्देश्य था कि स्वतंत्रता सेनानियों की मदद करने के लिए स्वयं को मुक्त रखा जाए। अपने प्रतिष्ठित परिवार की परंपरा के प्रति वे पूर्णतया जाग्रत थे और उसे और भी अग्रसर करना चाहते थे।
कपड़ा मिलों की जगह खादी उद्योग को दिया बढ़ावा
इसी दृष्टि से कमलनयन ने एक बार अपने पिताजी को लिखा थाए एक प्रसिद्ध पिता का पुत्र होना कोई मजाक की बात नहीं है। कमलनयन बजाज एक दृढ़ सिद्धांतवादी व्यक्ति थे, जो अपने पथ से कभी विचलित नहीं हुए। उन्होंने अपने पारिवारिक उम्र व्यापार की आमदनी से एक बड़ा हिस्सा जनहित व समाज सेवा कायक्रमों के लिए अलग निर्धारित कर रखा था। यह सद्विचार उन्हें अपने पिता से विरासत में मिला था। उनका हमेशा अभिप्राय रहा कि व्यापारिक सिद्धांतों और मुनाफे से ऊपर उठकर सामाजिक हितों की ओर विशेष ध्यान दिया जाए। एक कुशल व्यापारी के नाते हालांकि कमलनयन जी को मिल निर्मित वस्त्र उोग में भारी मुनाफा दिखता थाए फिर भी उन्होंने केवल लाभ की दृष्टि से इस क्षेत्र में जाना उचित नहीं समझा, क्योंकि बजाज परिवार महात्मा गांधी द्वारा प्रोत्साहित खादी उद्योग के प्रति वचनबद्ध था। इस बारे में कमलनयन जी ने अपना नजरिया स्पष्ट करते हुए कहा थाए सभी लोग जिनके साथ मैं संलग्न हूं, अवश्य लाभ अर्जित करें। लेकिन हमारा कोई प्रयास देशहित के खिलाफ जाता है तो मैं उसे दोषपूर्ण समझूंगा और उसमें भागीदार नहीं होऊंगा, भले ही उस सौदे में मुझे नुकसान क्यों न उठाना पड़े।
बीमार उद्योगों को दिया जीवनदान
सभी नए उद्योगों में, जिसमें कमलनयन जी ने हाथ डाला उनकी पारंपरिक व्यापार कुशलता सिद्ध हुई। अपनी दूरदर्शिता व उत्साहपूर्ण उमशीलता के साथ कमलनयनजी ने बीमार उद्योगों का अधिग्रहण किया और उन्हें अद्भुत ढंग से कुछ ही समय में जीवंत बना दिया। एक तरफ पिता जिन्होने समाज सेवा और आज़ादी के लिए अपना सब कुछ लगा दिया वहीं पिता की राह का अनुसरण कर पुत्र ने समाज सेवा के साथ राष्ट्र को मजबूत करने का काम किया। इन्हीं विभूतियों के बल पर आज देश आज़ादी की खुली हवा मे अडिग सीना तानकर खड़ा है। आज़ादी के नायकों का जब जब जिक्र आएगा तब तब जमनालाल जीए सरीखे व्यक्तियों का जो एक व्यक्ति ही नहीं थे अपितु एक विशाल व्यक्तित्व से परिपूर्ण महामानव थे की स्मृतियां सदैव अमर रहेंगी।