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Vikram-S Prarambh Mission: देश के पहले प्राइवेट रॉकेट विक्रम-S की लॉन्चिंग सफल, जानिए क्यों है यह बड़ी उपलब्धि

Vikram-S Prarambh Mission: इस रॉकेट की लॉन्चिंग श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से की गई. इस मिशन को ‘प्रारंभ’ नाम दिया गया है.

mission prarambh

मिशन प्रारंभ

Vikram-S Prarambh Mission: अंतरिक्ष में आज भारत ने नए युग की शुरुआत की है. इसरो ने आज देश का पहला प्राइवेट रॉकेट विक्रम-S (Vikram-S) लॉन्च कर दिया है. इसे हैदराबाद स्थित स्काईरूट एयरोस्पेस (Skyroot Aerospace) कंपनी ने बनाया है. इस रॉकेट की लॉन्चिंग श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से की गई. इस मिशन को ‘प्रारंभ’ नाम दिया गया है. इसके साथ ही भारत उन चंद देशों के क्लब में शामिल हो गया है जहां निजी कंपनियां भी अपने रॉकेट लॉन्च करती हैं.

स्पेस सेंटर से शुक्रवार की सुबह 11.30 बजे अंतरिक्ष की दुनिया में नया इतिहास लिखा गया जब स्काईरूट एयरोस्पेस के रॉकेट Vikram-S ने उड़ान भरी. रॉकेट साउंड की स्पीड से पांच गुना ज्यादा स्पीड से स्पेस की ओर गया. स्काईरूट एयरोस्पेस चार साल पुरानी कंपनी है. कंपनी के सीईओ और सह-संस्थापक पवन कुमार चांदना ने एक न्यूज चैनल से बात करते हुए कहा कि यह एक टेस्ट फ्लाइट है. इसरो ने इसकी उड़ान के लिए लॉन्च विंडो तय की थी.

रॉकेट पूरी तरह से कार्बन फाइबर से बना

पवन चांदना के मुताबिक, विक्रम-एस एक सब-ऑर्बिटल उड़ान भरेगा. इस सफलता के साथ ही भारत निजी स्पेस कंपनी के रॉकेट लॉन्चिंग के मामले में दुनिया के चुनिंदा देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है. जानकारी के मुताबिक, यह रॉकेट पूरी तरह से कार्बन फाइबर से बना है.

विक्रम साराभाई की याद में रॉकेट को ‘विक्रम-एस’ नाम दिया गया

इसरो के संस्थापक डॉ. विक्रम साराभाई की याद में इस रॉकेट को ‘विक्रम-एस’ नाम दिया गया है. विक्रम सीरीज में तीन तरह के रॉकेट लॉन्च किए जाने हैं, जिन्हें छोटे साइज के सैटेलाइट ले जाने के मुताबिक विकसित किया गया है. विक्रम-1 इस सिरीज का पहला रॉकेट है. जानकारी के मुताबिक, विक्रम-एस तीन सैटेलाइट को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कर सकता है. इन तीन में से एक विदेशी कंपनी का सैटेलाइट है जबकि दो भारतीय कंपनियों के सैटेलाइट हैं. स्काईरूट के बयान के मुताबिक, रॉकेट की लॉन्चिंग 12-16 नवंबर के बीच होनी थी लेकिन खराब मौसम के कारण इसे 18 नवंबर को लॉन्च करने का फैसला लिया गया. स्काईरूट को भरोसा है कि अत्याधुनिक तकनीक की मदद से और बड़ी संख्या में और किफायती रॉकेट बना सकेगी.

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