1978 में विमान हाईजैक होने के बाद प्रकाशित एक खबर.
नेटफ्लिक्स पर हाल ही में रिलीज वेब सीरीज IC 814 – The Kandahar Hijack विवादों में फंस गई है. यह सीरीज 1999 में पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन हरकत-उल-मुजाहिदीन द्वारा इंडियन एयरलाइंस के विमान के अपहरण पर आधारित है, जिसके बाद भारत सरकार को तीन खूंखार आतंकियों – मसूद अजहर, अहमद उमर सईद शेख और मुश्ताक अहमद जरगर – को रिहा करने के लिए मजबूर होना पड़ा था. वेब सीरीज के निर्माताओं पर जान-बूझकर विमान का अपहरण करने वालों के नाम बदलकर ‘भोला’ और ‘शंकर’ रखने का आरोप लगाया गया है.
इस घटना की पृष्ठभूमि में हम आपको अतीत की एक ऐसी घटना से रूबरू कराने जा रहे हैं, जब दो लोगों ने ‘खिलौना गन’ और ‘क्रिकेट की गेंद’ के जरिये एक विमान को हाईजैक (Plane Hijack) कर लिया था.
बात 1978 की सर्दियों की है, जब दो लोगों ने मिलकर Indian Airlines के Boeing 737 विमान को हाईजैक कर लिया था. ये दोनों देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के कट्टर समर्थक थे और उनकी गिरफ्तारी के विरोध में उन्होंने इस विमान को हाईजैक कर लिया था.
विमान के दोनों अपहरणकर्ताओं की पहचान भोलानाथ पांडेय (Bholanath Pandey) और उनके दोस्त देवेंद्र पांडेय (Devendra Pandey) के रूप में हुई थी. उस दौर में विमान हाईजैक करने की इस घटना ने उनके जीवन पर कोई बुरा असर नहीं छोड़ा, बल्कि उन्होंने राजनीति के मैदान में अपनी पारी खेलने के साथ गांधी परिवार की आजीवन कृपा पाई. यह हाईजैक उनका कॉलिंग कार्ड बन गया, एक ऐसा उपहार जो उन्हें जीवन भर कुछ न कुछ देता रहा.
दो बार विधायक बने
रिपोर्ट के अनुसार, भोलानाथ पांडेय की पिछले महीने (अगस्त 2024) ही लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. वह 74 वर्ष के थे. उनके निधन के साथ 1970 के दशक के भारत के अशांत राजनीतिक इतिहास का एक दिलचस्प प्रकरण समाप्त हो गया.
युवा कांग्रेस के नेता और संजय गांधी (Sanjay Gandhi) के करीबी सहयोगी भोलानाथ उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की दोआबा विधानसभा सीट से दो बार Congress (I) के विधायक (1980 और 1989) बने. बताया जाता है कि भोलानाथ को इंदिरा गांधी अपने बेटे की तरह मानती थीं.
20 दिसंबर 1978 को क्या हुआ था
20 दिसंबर 1978, हर दिन की तरह एक सामान्य दिन था. कलकत्ता से आ रही इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट ने लखनऊ से शाम करीब 5:45 बजे अपने गंतव्य दिल्ली के लिए उड़ान भरी थी. लखनऊ से ही विमान में सवार हुए दो यात्रियों पर किसी का ध्यान नहीं गया.
दोनों ने उस दौर में प्रचलित ‘नेहरू’ जैकेट पहनी थी. उनमें से एक (भोलानाथ) लंबा और किसी एथलीट की कदकाठी का था, दूसरा (देवेंद्र) छोटा और गठीला था. छोटे कद वाले ने उन दिनों प्रचलित तलवार-कट मूंछें रखी थीं, जबकि लंबे कद वाले ने दाढ़ी रखी थी. दोनों 15वीं पंक्ति में अपनी सीटों पर आराम से बैठे थे.
विमान को ऐसे किया हाईजैक
जब दिल्ली का पालम एयरपोर्ट कुछ ही मिनटों की दूरी पर था, तो भोलानाथ यात्री फ्लाइट पर्सर (Flight Purser) जीवी डे के पास गए और विनम्रता से उनसे पूछा कि क्या वह कॉकपिट में जा सकते हैं. देवेंद्र भी उनके साथ आ गए. उन दिनों इस तरह का अनुरोध आम बात थी, लेकिन जल्द ही दोनों ने कॉकपिट के दरवाजे को जोर से धक्का दिया और उसे जबरन खोल दिया. इसके बाद विमान में एक अजीब सी खामोशी छा गई.
थोड़ी देर बाद एक आवाज उभरी, ‘यह आपका कमांडर बोल रहा है… हमें हाईजैक कर लिया गया है.’ फिर पायलट की आवाज गूंजी, ‘यह आपका कमांडर बोल रहा है. हमें हाईजैक कर लिया गया है और अब हम पटना के लिए उड़ान भरेंगे.’ हालांकि इसके कुछ देर बाद कैप्टन एमएन बत्तीवाला ने की आवाज आई कि विमान को वाराणसी ले जाया जा रहा है. बाद में एक इंटरव्यू के दौरान कैप्टन ने बताया था कि दोनों में से एक ने उनके सिर पर पिस्तौल तान दी थी और बांग्लादेश जाने की मांग की थी.
इंदिरा गांधी के कट्टर समर्थक
देवेंद्र और भोलानाथ दोनों ग्रेजुएट थे. आगे चलकर भोलानाथ ने BHU से हिंदी में पीएचडी भी की थी. दोनों 1976 में संजय गांधी के माध्यम से एक-दूसरे के संपर्क में आए और दोस्त बन गए थे.
बताया जाता है कि अपहरणकर्ताओं ने खुद को ‘अहिंसक गांधीवादी’ बताया था. विमान में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी की निंदा करते हुए जोशीले भाषण दिए थे, जिन्हें आपातकाल (Emergency) के बाद 1977 के लोकसभा चुनावों में सत्ता से बाहर कर दिया गया था.
कहते हैं कि उन्होंने इंदिरा गांधी और तत्कालीन युवा कांग्रेस सुप्रीमो संजय गांधी की प्रशंसा में नारे भी लगाए, जिसके लिए विमान में सवार कुछ कांग्रेस समर्थकों ने उनकी खूब सराहना की थी. एक दैनिक अखबार में प्रकाशित हुआ था कि दोनों अपहरणकर्ताओं ने जनता पार्टी (Janata Party) को अपशब्द कहने के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई (Morarji Desai) पर राजनीतिक प्रतिशोध लेने का आरोप लगाया था.
इंदिरा गांधी को जेल हुई थी
दरअसल 19 दिसंबर, 1978 को लोकसभा ने इंदिरा गांधी को ‘विशेषाधिकार उल्लंघन और सदन की अवमानना’ के लिए सांसद के रूप में निष्कासित कर जेल भेज दिया था. जेल की अवधि संसद के तत्कालीन शीतकालीन सत्र के सत्रावसान तक जारी रही. तिहाड़ जेल जाने से पहले पार्टी के लोगों को दिए गए संदेश में इंदिरा गांधी ने लिखा था, ‘यह क्षण दुख या गुस्से का नहीं है. हमें इसे शांति से पूरा करना चाहिए, क्योंकि यह हमारी परंपरा है और आगे भी रहेगी.’
इसके एक दिन बाद 25 वर्षीय भोलानाथ लखनऊ में इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट 410 में सवार हुए. अपनी युवावस्था में ही वह कांग्रेस में शामिल हो गए थे. पांडेय के साथ एक और कांग्रेस नेता देवेंद्र पांडे (28 वर्ष) भी थे.
वाराणसी में उतारा गया था विमान
बहरहाल हाईजैक होने के बाद अपहरणकर्ताओं के निर्देश पर पायलट ने विमान को वाराणसी हवाई अड्डे के एक कोने में ले जाकर खड़ा कर दिया. दोनों अपहरणकर्ता उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री राम नरेश यादव (Ram Naresh Yadav) से फोन पर बात करना चाहते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया. दोनों ने जोर देकर कहा था कि मुख्यमंत्री बातचीत के लिए तैयार हों या फिर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें.
तब तक इस घटनाक्रम पर प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) की भी नजर पड़ चुकी थी. कहा जाता है कि फिर पीएमओ ने मुख्यमंत्री को निर्देश जारी कर दिए थे. तत्कालीन पीएम मोरारजी देसाई ने व्यक्तिगत रूप से सीएम राम नरेश यादव से बात की थी, जिसके बाद मुख्यमंत्री विशेष विमान से आधी रात के आसपास वाराणसी पहुंचे थे.
ये थी मांग
बातचीत रात करीब 1:30 बजे शुरू हुई. इंदिरा गांधी की रिहाई की मांग के अलावा दोनों अपहरणकर्ता प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के इस्तीफे की मांग कर रहे थे. दोनों एयरपोर्ट लाउंज में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित भी करना चाहते थे.
बताया जाता है कि उस समय तक विमान में पानी खत्म हो गया. बच्चे रोते रहे, लेकिन उनके लिए दूध नहीं था. सुबह 6 बजे के आसपास कुछ यात्रियों ने शिकायत की कि विमान में असहनीय घुटन हो रही है और उन्होंने अपहरणकर्ताओं से पीछे के दरवाजे खोलने का अनुरोध किया. इस बीच, कैप्टन ने आपातकालीन लीवर को खींच लिया. इसका फायदा उठाते हुए आधे यात्री टारमैक से नीचे उतर गए और लगभग 60 लोग बंधक बने रहे.
कहानी का आखिरी मोड़
बताया जाता है कि इस समय तक स्थानीय प्रशासन ने देवेंद्र पांडेय के पिता डॉ. जेडी पांडे को एक अपील जारी करने के लिए मना लिया था. वह एक सरकारी डॉक्टर थे. प्रशासन का यह कदम कारगर साबित हुआ. 21 दिसंबर 1978 की सुबह 6:40 बजे के आसपास दोनों अपहरणकर्ताओं ने आत्मसमर्पण कर दिया.
फिर इस हाईवोल्टेज ड्रामा में आखिरी मोड़ आया. यात्रियों और फ्लाइट के क्रू को डराने के लिए अपहरणकर्ताओं ने जिस बम की बात कही थी, दरअसल वह काले कपड़े में लिपटा एक क्रिकेट बॉल (Cricket Ball) था. इतना ही नहीं जिस गन का इस्तेमाल विमान को हाईजैक करने के लिए किया गया, वह महज एक खिलौना (Toy Gun) था.
कांग्रेस नेताओं ने दिए थे पैसे
पूछताछ के दौरान दोनों अपहरणकर्ताओं ने दावा किया था कि उन्हें इस काम के लिए कांग्रेस नेताओं से पैसे मिले थे. एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘उन्होंने राज्य कांग्रेस (आई) कमेटी के दो पदाधिकारियों के नाम बताए थे, जिन्होंने उन्हें 400 और 200 रुपये दिए थे. उन्होंने इस रकम से 350 रुपये में लखनऊ से दिल्ली तक के हवाई टिकट खरीदे थे.’
राजनीति में आ गए अपहरणकर्ता
भोलानाथ और देवेंद्र दोनों के लिए विमान का हाईजैक उनके करिअर के लिए बहुत बड़ा कदम साबित हुआ. अपहरण के पांच दिन बाद 26 दिसंबर 1978 को इंदिरा गांधी को रिहा कर दिया गया. 1980 में जब वह सत्ता में लौटीं तो दोनों अपहरणकर्ताओं के खिलाफ सभी मामले हटा दिए गए.
कांग्रेस ने बलिया जिले की दोआबा विधानसभा सीट से भोलानाथ को टिकट दिया. 1980 में महज 27 साल की उम्र में भोलानाथ पहली बार विधायक बने। 1989 में भी उन्होंने इसी सीट से जीत दर्ज की.
कहा जाता है कि जब भोलानाथ पांडेय अपना नामांकन दाखिल करने के लिए दोआबा पहुंचे तो हजारों लोगों ने उनका जोरदार स्वागत किया थी. उसी साल (1980) संजय की मौत हो गई. दो बार विधायक रहे भोलानाथ को राजीव गांधी का भी भरोसा हासिल था. वह राहुल गांधी के भी संपर्क में थे.
लोकसभा चुनाव भी लड़े थे भोलानाथ
2014 में जब कांग्रेस यूपी में लगभग खत्म हो चुकी थी, तब भोलानाथ ने फिर से चुनावी मैदान में किस्मत आजमाई. इससे पहले 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने सलेमपुर सीट से BSP के विजयी प्रत्याशी को कड़ी टक्कर दी थी, लेकिन 2019 में नरेंद्र मोदी की लहर के बीच भोलानाथ इस सीट पर पांचवें स्थान पर रहे. 25 अक्टूबर 1953 को बलिया जिले के बैरिया क्षेत्र के मून छपरा गांव में भोलानाथ पांडेय का जन्म हुआ था. उनके परिवार में चार बेटे और दो बेटियां हैं.
देवेंद्र पांडेय को हिमाचल प्रदेश की जयसिंहपुर विधानसभा सीट से टिकट दिया गया था, जहां से उन्होंने 1980 और 1985 में जीत हासिल की थी. 23 सितंबर 2017 को 67 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया था.
-भारत एक्सप्रेस