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कांग्रेस के लिए क्यों जरूरी है अमेठी? दांव पर राहुल गांधी की साख

अमेठी और रायबरेली संसदीय क्षेत्रों को आजादी के बाद से ही नेहरू-गांधी परिवार की राजनीतिक विरासत की थाती माना जाता है और इन दोनों क्षेत्रों में आने वाली 10 विधानसभा सीटों के परिणाम राहुल के ‘मिशन-2024’ की सफलता के लिहाज से न सिर्फ महत्वपूर्ण हैं, बल्कि उनके नतीजे कांग्रेस में उनके सियासी कद को भी तय भी तय करेंगे.

राहुल गांधी

राहुल गांधी

Lok Sabha Elections: राहुल गांधी 2024 का लोकसभा चुनाव अमेठी से लड़ेंगे. इस बात पर मुहर लग गई है. यूपी के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने ऐलान किया है कि राहुल अमेठी से तो प्रियंका वाराणसी से चुनाव लड़ेंगी? इसमें कोई दो राय नहीं है कि अमेठी कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है. आजाद भारत में गांधी परिवार का अमेठी लोकसभा सीट पर कब्जा रहा है. हालांकि, साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की स्मृति ईरानी ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को पटखनी दे दी थी. आइये जानते हैं कि कांग्रेस के लिए अमेठी कितना जरूरी है.

अमेठी से ही पहली बार सांसद बने राहुल गांधी

लेकिन उससे पहले थोड़ा फ्लैशबैक में चलते हैं. साल 2004 में राहुल गांधी पहली बार इसी सीट से सांसद बने थे. अमेठी की जनता ने 2009 और 2014 में भी राहुल पर भरोसा जताया. लेकिन साल 2019 में स्मृति ईरानी की कांग्रेस विरोधी अभियान कहें या ‘मोदी लहर’ राहुल को अमेठी की जनता ने बाय-बाय कह दिया. शायद इस बात का अंदाजा राहुल को पहले से ही था. इसलिए वो वायनाड चले गए.

‘मोदी लहर’ में अमेठी भी ‘हाथ’ से गई

साल 2019 में गौरीगंज के दिवारों पर लिखा गया था. “अमेठी का सांसद 2019 का पीएम”. लेकिन जब 23 मई को चुनाव परिणाम घोषित हुई तो राहुल गांधी चुनाव हार चुके थे. 1967 के बाद से कांग्रेस की इस परंपरागत सीट पर केवल दो गैर-कांग्रेसी सांसद देखे गए थे. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने सिर्फ एक सीट जीती, वो भी गांधी परिवार का गढ़ रायबरेली. कम से कम 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में, कांग्रेस एक भी सीट जीतने में विफल रही.

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अमेठी लोकसभा सीट का इतिहास

अमेठी लोकसभा क्षेत्र में पहली बार 1967 में चुनाव हुआ. पहली बार सांसद बने कांग्रेस के विध्याधर वाजपेयी. 1980 के चुनाव में इस सीट पर गांधी परिवार की एंट्री हुई. संजय गांधी चुनाव में भारी मतों के अंतर से विजय हुए. लेकिन अगले ही साल संजय गांधी की मौत के बाद साल 1981 में हुए उपचुनाव में राजीव गांधी ने यहां से जीत दर्ज की. इसके बाद वो लगातार 1984, 1989 और 1991 में जीतते गए. जब राजीव गांधी की मौत हुई तो अमेठी से कांग्रेस ने सतीश शर्मा को मौका दिया. उन्होंने भी यहां से दो बार जीत दर्ज की. साल 1999 में सोनिया गांधी खुद यहां से सांसद चुनी गईं. इसके बाद राहुल 2019 तक सांसद रहे. इस लिहाज से भी कांग्रेस के लिए यह सीट काफी अहम है.

राहुल की स्मृति से तीसरी बार होगी भिड़ंत!

अमेठी लोकसभा सीट पर राहुल गांधी और स्मृति ईरानी 2 बार आमने-सामने हुए हैं. 2014 में राहुल ने स्मृति को हराया तो 2019 में स्मृति ने राहुल को. आम चुनाव 2024 में अब बस 9 महीने शेष है. एक बार फिर से दोनों नेताओं की चुनावी मैदान में भिड़ंत हो सकती है.

बताते चलें कि अमेठी और रायबरेली संसदीय क्षेत्रों को आजादी के बाद से ही नेहरू-गांधी परिवार की राजनीतिक विरासत की थाती माना जाता है और इन दोनों क्षेत्रों में आने वाली 10 विधानसभा सीटों के परिणाम राहुल के ‘मिशन-2024’ की सफलता के लिहाज से न सिर्फ महत्वपूर्ण हैं, बल्कि उनके नतीजे कांग्रेस में उनके सियासी कद को भी तय भी तय करेंगे. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि अमेठी में राहुल का साख दांव पर है.

-भारत एक्सप्रेस

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