
भारत और बौद्ध धर्म
Next Dalai Lama And India: हमारा पड़ोसी मुल्क चीन अपने कम्युनिस्ट शासन के लिए दुनिया में जाना जाता है. वो दावा करता है कि धर्म को लेकर उनकी सरकार में कोई स्थान नहीं है. हालांकि, जब बात अगले बौद्ध धर्मगुरु और तिब्बत के नेता के चयन की आती है को वो खुद को इनका का सबसे बड़ा पुरोधा बताने लगता है. वह अब दलाई लामा के चुनाव पर अपना एकाधिकार भी जमाना चाहता है. हालांकि, दलाई लामा ने चीन के इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया है. उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि उनके उत्तराधिकारी की पहचान केवल पारंपरिक प्रक्रिया से होगी और इसमें चीन या किसी बाहरी शक्ति का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा. यह बयान चीन के लिए एक बड़ा झटका है, खासकर जब अगले लामा के भारत से होने की संभावनाओं पर गरमा-गरम बहस छिड़ी हुई है.
दलाई लामा के हालिया बयान ने 15वें धर्मगुरु के चयन को लेकर अटकलों का बाजार गर्म कर दिया है. 6 जुलाई को 90 वर्ष के होने जा रहे वर्तमान लामा तेनज़िन ग्यात्सो ने साफ कर दिया है कि उनके उत्तराधिकारी का चुनाव उनके भारत स्थित कार्यालय गदेन फोड्रांग ट्रस्ट द्वारा किया जाएगा. आइये जानें इस पूरे मामले में भारत कैसे केंद्र में आता है और हमारे लिए अगले लामा का चुनाव क्यों खास है?
दलाई लामा के बयान से शुरू हुई चर्चा
बौद्धों के आध्यात्मिक प्रमुख दलाई लामा ने 2 जुलाई दिन बुधवार को एक आधिकारिक बयान जारी कर स्पष्ट किया कि उनके पुनर्जन्म की परंपरा जारी रहेगी. इसी आधार पर दुनिया को 15वां दलाई लामा मिलेगा. उन्होंने वरिष्ठ भिक्षुओं की बैठक के बाद स्पष्ट किया है कि भविष्य में दलाई लामा की संस्था जारी रहेगी. उनके उत्तराधिकारी की पहचान केवल उनकी तय पारंपरिक प्रक्रिया के तहत ही होगी. इसमें चीन या किसी भी बाहरी शक्ति का कोई दखल नहीं होगा.
भारत-चीन-तिब्बत विवाद क्या है?
इस विवाद की जड़ें कई दशकों पुरानी हैं. 1950 के दशक से चीन ने तिब्बत पर अपना नियंत्रण स्थापित करना शुरू किया. चीन ने कहा कि तिब्बत प्राचीन काल से उसका अंग रहा है. जबकि, तिब्बती लोग विशेषकर दलाई लामा के अनुयायी तिब्बत को एक स्वतंत्र राष्ट्र मानते हैं. वे चीन के कब्जे को अवैध मानते हैं और सांस्कृतिक दमन का आरोप लगाते आ रहे हैं.
साल 1959 में तिब्बत में चीनी शासन के खिलाफ बड़े पैमाने पर विद्रोह हुआ था. इसे चीन ने बेरहमी से कुचल दिया. इसके बाद 14वें दलाई लामा (तेनज़िन ग्यात्सो) हजारों तिब्बतियों के साथ भारत की शरण में आ गए. इसके बाद से ही चीन उनके खिलाफ प्रपंच करता रहा है.
केंद्र में क्यों आ जाता है भारत?
भारत दलाई लामा को आध्यात्मिक गुरु और नेता के रूप में सम्मान देता है. उन्हें हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला से निर्वासित सरकार चलाने की अनुमति दी गई है. जबकि, चीन दलाई लामा को अलगाववादी मानता है. इसी कारण तिब्बती शरणार्थियों और दलाई लामा को समर्थन देना चीन को हमेशा खटकता है.
दलाई लामा को दुनिया भर के कई देशों और मानवाधिकार संगठनों से समर्थन मिलता रहा है. इसका आधार धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों ही होता है. इसके केंद्र में भारत इसलिए आ जाता है क्योंकि, यहां 14वें दलाई लामा तेनज़िन ग्यात्सो और उनके समर्थकों को शरण दी गई है. इसी कारण दलाई लामा दलाई लामा के नाम को लेकर भारत केंद्र में आ जाता है.
चीन के खिलाफ क्यों हैं बौद्ध?
तिब्बत की पहचान, संस्कृति और सामाजिक ताना-बाना बौद्ध धर्म से गहराई से जुड़ा हुआ है। तिब्बत में शताब्दियों से बौद्ध धर्म ही जीवन का आधार रहा है. तिब्बती समाज का अधिकांश हिस्सा बौद्ध भिक्षुओं और मठों पर केंद्रित था. दलाई लामा आध्यात्मिक और राजनीतिक दोनों नेता थे. 1950 के दशक में यहां चीन के कब्जे के बाद मठों का विनाश, भिक्षुओं और ननों पर प्रतिबंध, धार्मिक शिक्षाओं पर नियंत्रण और धार्मिक स्वतंत्रता पर रोक लगाई गई. इसे तिब्बत के लोगों ने अपने पहचान पर हमला माना और चीन के खिलाफ हो गए.
क्या अगला दलाई लामा भारत से होगा?
6 जुलाई को वर्तमान दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो 90 साल के हो रहे हैं. इसी के साथ इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि वो इस मौके पर अगले धर्म प्रमुख को लेकर कोई ऐलान कर सकते हैं. इससे पहले उन्होंने इसमें चीन की भूमिका को नकार दिया है. ऐसे में यह भी कहा जा रहा है कि अगला दलाई लामा भारत से हो सकता है. इसके लिए कई तर्कों को आधार बताया जाता है.
- भारत से बौद्ध धर्म का नाता
- दलाई लामा को दी गई भारत में शरण
- भारत में बौद्ध धर्म के केंद्र
- दलाई लामा का बयान
भारत और बौद्ध धर्म का नाता
बौद्ध धर्म का उदय भारत से ही हुआ था. तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक बौद्ध धर्म के सबसे बड़े संरक्षक थे. उन्होंने बौद्ध धर्म को राजकीय धर्म का दर्जा दिया और इसे भारत से बाहर दुनिया भर में फैलाया. इसके बाद कुषाण काल और गुप्त काल में भी बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया गया था. अभी भी दलाई लामा के रूप में भारत ने इस धर्म को संरक्षण दिया है.
- सिद्धार्थ गौतम यानी भगवान बुद्ध को बोधगया ज्ञान प्राप्त हुआ था.
- सारनाथ में भगवान बुद्ध ने पहला उपदेश दिया था.
- कुशीनगर में उनका महापरिनिर्वाण हुआ था.
- मुख्य तीर्थ स्थान भारत में (बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर) हैं.
- सम्राट अशोक के काल बौद्ध धर्म अखंड भारत का राजधर्म था.
- बुद्ध ने भारत में ही भिक्षुओं और भिक्षुणियों के ‘संघ’ की स्थापना की थी.
- बौद्ध धर्म के प्रारंभिक ग्रंथ पाली और संस्कृत भाषाओं में लिखे गए थे.
- बौद्ध साहित्य का एक बड़ा हिस्सा भारत में रचा गया.
दलाई लामा के बयान से शुरू हुई चर्चा
बौद्धों के आध्यात्मिक प्रमुख दलाई लामा ने 2 जुलाई दिन बुधवार को एक आधिकारिक बयान जारी कर स्पष्ट किया कि उनके पुनर्जन्म की परंपरा जारी रहेगी. इसी आधार पर दुनिया को 15वां दलाई लामा मिलेगा. उन्होंने वरिष्ठ भिक्षुओं की बैठक के बाद स्पष्ट किया है कि भविष्य में दलाई लामा की संस्था जारी रहेगी. उनके उत्तराधिकारी की पहचान केवल उनकी तय पारंपरिक प्रक्रिया के तहत ही होगी. इसमें चीन या किसी भी बाहरी शक्ति का कोई दखल नहीं होगा.
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दलाई लामा साफ कहा है कि भारत स्थित उनके कार्यालय “गदेन फोड्रांग ट्रस्ट” के पास उनके उत्तराधिकारी के चुनाव का अधिकार है. उनका यह बयान सीधे तौर पर चीन दावे को चुनौती देता है. क्योंकि, चीन हमेशा से यह कहता रहा है कि अगले दलाई लामा का चयन वो खुद करेगा. उसने 1989 में चुने गए असली पंचेन लामा को अगवा कर लिया था. अब उनका कोई पता नहीं है. पंचेन लामा दलाई लामा के बाद सबसे बड़े तिब्बती आध्यात्मिक नेता होते हैं.
क्या है दलाई लामा के चयन की प्रक्रिया?
पारंपरिक रूप से दलाई लामा का चयन पुनर्जन्म की मान्यता के आधार पर होता आया है. हालांकि, तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद से इसे लेकर गहरा विवाद है. आज भी बड़ी संख्या में बौद्ध धर्म के अनुयायी अपनी पुरानी प्रक्रिया को मानते हैं. हालांकि, 2004 में चीनी सरकार ने दलाई लामा के चयन की प्रक्रिया के नियमों को समाप्त कर दिया था. इसके बाद 2007 में आदेश कहा गया था कि कोई भी समूह या व्यक्ति आत्मा की खोज और पहचान नहीं कर सकता है. चीनी सरकार ने दलाई लामा का चयन के लिए गोल्डन अर्न विधि नामक लॉटरी की व्यवस्था चालू की थी. वहां के नेता लगातार वर्तमान दलाई लामा का विरोध करते रहे हैं.
भारत में बौद्ध जनसंख्या
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में बौद्ध धर्म को मानने वालों की संख्या 84 लाख है. ये देश की कुल आबादी का 0.7 फीसदी है. देश में कुल बौद्ध जनसंख्या का सबसे बड़ा हिस्सा यानी लगभग 77.36% महाराष्ट्र में रहता है. ये महाराष्ट्र की कुल आबादी का 5.81% है. इसके अलावा उत्तर-पूर्वी राज्यों और हिमालयी क्षेत्रों में इनकी अधिक जनसंख्या रहती है.
बौद्ध धर्म का जन्म भारत में हुआ. हालांकि, यहां प्रतिशत के हिसाब से यहां उनकी जनसंख्या अन्य एशियाई देशों जैसे थाईलैंड, म्यांमार, कंबोडिया, श्रीलंका, लाओस या भूटान की तुलना में बहुत कम है. इन देशों में बौद्ध धर्म प्रमुख धर्म है और आबादी का एक बड़ा हिस्सा इसे मानता है. भले ही प्रतिशत कम हो लेकिन भारत में बौद्ध एक महत्वपूर्ण अल्पसंख्यक समुदाय हैं.
बौद्ध बहुल देशों की लिस्ट
संख्या की बात करें तो सबसे अधिक बौद्ध चीन में रहते हैं. यहां उनकी जनसंख्या 20 करोड़ से अधिक बताई जाती है. वहीं थाईलैंड में 6.4 करोड़, म्यांमार (बर्मा) में 4.9 करोड़, जापान में लगभग 4.3 करोड़, वियतनाम में 1.4 करोड़, कंबोडिया में 1.4 करोड़, श्रीलंका में 1.6 करोड़, दक्षिण कोरिया में 2.4 करोड़ ताइवान में 2.2 करोड़, लाओस में 62 लाख, मंगोलिया में 30 लाख भूटान में 21 लाख, मलेशिया में 63 लाख, नेपाल में 62 लाख, इंडोनेशिया में 80 लाख के करीब उनकी जनसंख्या है. जबकि भारत में इनकी संख्या 84 लाख के आसपास है.
- कंबोडिया: 98% बौद्ध आबादी
- थाईलैंड: 95% बौद्ध आबादी
- भूटान: 84-95% बौद्ध आबादी
- म्यांमार: 90% बौद्ध आबादी
- श्रीलंका: 70.2% बौद्ध आबादी
- लाओस: 66-97% बौद्ध आबादी
- मंगोलिया: 93% बौद्ध आबादी
- जापान: 67-96% बौद्ध आबादी
- वियतनाम: 75-85% बौद्ध आबादी
- चीन: 50-80% बौद्ध आबादी
- आधिकारिक बौद्ध राष्ट्र
भूटान का संविधान बौद्ध धर्म को देश की आध्यात्मिक विरासत के रूप में परिभाषित करता है. वहीं कंबोडिया का संविधान बौद्ध धर्म को देश का आधिकारिक धर्म बताता है. इसके साथ ही श्रीलंका, थाईलैंड, लाओस और म्यांमार का संविधान बौद्ध धर्म को विशेषाधिकार देता है. हालांकि, खुद को बौद्ध का पुरोधा बताने वाले चीन में इस तरह का कोई अधिकार इस धर्म के लोगों को नहीं मिला है.
भारत की होगी बड़ी बढ़त
भले ही भारत में संख्यात्मक रूप से बौद्ध धर्म अल्पसंख्यक है लेकिन भारत की कला, दर्शन, साहित्य और सांस्कृतिक विरासत पर उसने अमिट छाप छोड़ी है. भारत बौद्ध धर्म की जन्मभूमि, विकास भूमि और प्रसार भूमि रहा है. यह धर्म भारत की पहचान और इतिहास का अभिन्न अंग है. अब अगर अगले दलाई लामा भारत से बनते हैं तो ये न केवल हमारे लिए एक सांस्कृतिक विजय होगी बल्कि, यह चीन के खिलाफ एक रणनीतिक बढ़त भी होगी. यह विश्व मंच पर बुद्ध की धरती भारत की सॉफ्ट पावर को और मजबूत करेगा और धार्मिक स्वतंत्रता के प्रतीक को मजबूत करेगा. इसके साथ ही यह चीन के मंसूबों पर पानी फेर देगा.
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