
दिल्ली हाईकोर्ट ने ऋण वसूली के मामले में मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट (सीएमएम) के भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के खिलाफ की गई प्रतिकूल टिप्पणियों को हटाने से इनकार कर दिया. साथ ही बैंक के आधारहीन याचिका दाखिल करने के लिए उसकी आलोचना की. जस्टिस धम्रेश शर्मा ने इसके साथ ही एबीसीआई की दो याचिकाओं को खारिज कर दिया.
जस्टिस ने कहा कि बैंक एक अहानिकर आदेश को चुनौती दिया है जिसकी वजह से उसकी प्रतिष्ठा में कोई क्षति नहीं हुई है. अर्थात वर्तमान मुकदमा गलत तरीके से तैयार किया गया है. इसके दाखिल करने में दो साल से ज्यादा की देरी की गई है. उन्होंने यह टिप्पणी पीपी ज्वैलर्स प्राइवेट लिमिटेड के मामले में की, जो एसबीआई और उसकी पूर्ववर्ती सहायक कंपनियों से लिए गए ऋण सुविधाओं से संबंधित है.
कंपनी का ऋण खाता अनियमित हो गया था और 31 मार्च, 2016 को इसे गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) के रूप में वर्गीकृत किया गया था. एसबीआई ने 8 सितंबर, 2016 को बकाया राशि वापस लेने के लिए मांग नोटिस भेजा. उसके बाद जनवरी 2018 में 145 करोड़ रुपए का एकमुश्त निपटान (ओटीएस) प्रस्ताव स्वीकार किया गया.
बैंक ने 2022 में बंधक रखे गए संपत्तियों पर कब्जा के लिए अदालत में आवेदन किया. पेश नहीं होने की वजह से आवेदन 4 जून, 2022 को खारिज हो गया. इसी को देखते हुए सीएमएम ने बैंक के खिलाफ सही मायने में आगे नहीं बढ़ने एवं कंपनी के साथ संभावित मिलीभगत के लिए प्रतिकूल टिप्पणी की थी. एसबीआई ने उस प्रतिकूल टिप्पणियों को ही हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. उसने कहा था कि उससे उसके प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है. साथ ही धन की वसूली में बाधा उत्पन्न हुई है.
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-भारत एक्सप्रेस
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