
दिल्ली हाई कोर्ट ने ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के लिए विशेष पाठ्यक्रम की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका का निपटारा कर दिया है. मुख्य न्यायाधीश डी. के उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि यह नीतिगत मामला है. इसमें कोर्ट हस्तक्षेप नही कर सकता है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को संबंधित प्राधिकरण के पास जाने का सुझाव दिया है.
जस्टिस गेडेला ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह जनहित याचिका एक अच्छा प्रयास है, लेकिन इसमें कई कमियां है. इसमें तथ्यों का आभाव है और जरूरी विवरण नही है. यह जनहित याचिका अनीश शर्मा ने दायर की थी. कोर्ट ने अनीस शर्मा को निर्देश दिया कि वह इस मुद्दे पर केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार, सीबीएसई, अन्य शिक्षा बोर्ड और संबंधित प्राधिकरणों के समक्ष इस मुद्दे को उठाए.
कोर्ट ने कही ये बात
कोर्ट ने कहा कि ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों की शिक्षा प्रणाली को सुदृढ करने के लिए एक विशेष पाठ्यक्रम या नीति बनाना एक नीतिगत फैसला हैं. जो सरकार या संबंधित प्राधिकरण बना सकती है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील से कहा कि उसे सीधे कोर्ट आने से पहले इसको लेकर संबंधित प्राधिकरणों के पास जाना चाहिए था. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को इस विषय पर और जानकारी हासिल करने की सलाह दी है. क्योंकि कोर्ट का मानना है कि ऑटिज्म से पीड़ित बच्चें अत्यधिक संवेदनशील होते हैं और हर बच्चे के लिए अलग-अलग पाठ्यक्रम की आवश्यकता होती है.
क्या है ऑटिज्म प्रति?
बता दें कि ऑटिज्म प्रति एक लाख में से एक बच्चे को होता है. इसे मेडिकल भाषा में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर कहते हैं. यह एक मानसिक विकास संबंधी डिसऑर्डर है. इससे बच्चे को बातचीत करने में पढ़ने लिखने में और समाज में मेलजोल बनाने के दिक्कतें आती हैं. ऑटिज्म को लेकर दुनिया भर के आंकडों का मिलना मुश्किल है क्योंकि इस डिसऑर्डर की पहचान और इसके ईलाज के लिए कोई एक।समान तरीका नहीं है.
-भारत एक्सप्रेस
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