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दिल्ली हाईकोर्ट ने पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता को एनडीपीएस मामले में जमानत दी

कोर्ट ने पंजाब राज्य के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता और वकील विक्रमजीत सिंह को नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 के तहत दर्ज एक मामले में जमानत दे दी है

delhi high court

दिल्ली हाईकोर्ट.

Delhi High Court: दिल्ली हाई कोर्ट ने पिछले साल नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 के तहत दर्ज एक मामले में वकील और पंजाब राज्य के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता को जमानत दे दी है. जस्टिस जसमीत सिंह ने अपने 14 जनवरी के फैसले में विक्रमजीत सिंह को राहत देते हुए कहा कि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 के तहत दी गई दो शर्तें मामले में पूरी है.

12.16 किलोग्राम मेथमफेटामाइन बरामद

अदालत ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता 26 फरवरी, 2024 से हिरासत में है और आरोप पत्र पहले ही दायर किया जा चुका है, जो दर्शाता है कि जांच पूरी हो चुकी है. धारा 37 में कहा गया है कि किसी आरोपी को तब तक जमानत नहीं दी जानी चाहिए जब तक कि आरोपी दो शर्तों को पूरा करने में सक्षम न हो, यानी यह मानने के लिए उचित आधार कि आरोपी ऐसे अपराध का दोषी नहीं है और अगर उसे जमानत दी जाती है तो वह अपराध नहीं करेगा या अपराध करने की संभावना नहीं है.

अदालत ने पाया कि जमानत पर रहते हुए सिंह द्वारा कोई अपराध करने की संभावना नहीं है तथा अभियोक्ता को जमानत का विरोध करने का अवसर दिया गया तथा विधिवत सुनवाई की गई. सिंह के विरुद्ध आरोप यह है कि एक व्यक्ति के घर से एक बैग में 12.16 किलोग्राम मेथमफेटामाइन बरामद किया गया था, जिसे सिंह ने दिल्ली पहुंचाया था. आरोप था कि पैकेज को राष्ट्रीय राजधानी में दो अन्य व्यक्तियों द्वारा वितरित किया गया था.

क्योंकि नहीं है याचिकाकर्ता का नाम?

प्राथमिकी के अनुसार, बैग सिंह के निर्देश पर वितरित किया गया था. मामले में जमानत देते हुए अदालत ने कहा कि जिस व्यक्ति के घर से बैग बरामद किया गया था, उसके प्रकटीकरण कथन में यह नहीं कहा गया था कि सिंह ने कथित बरामद प्रतिबंधित पदार्थ की आपूर्ति की थी. अदालत ने कहा उपर्युक्त तथ्यों से प्रथम दृष्टया, मेरा विचार है कि प्रकटीकरण कथन का उपयोग याचिकाकर्ता के विरुद्ध नहीं किया जा सकता, क्योंकि याचिकाकर्ता का नाम इसमें नहीं है तथा प्रकटीकरण कथन एक ऐसी घटना का उल्लेख करता है जो पहले ही घटित हो चुकी है तथा बरामदगी पहले ही प्रभावित हो चुकी है, इसलिए, कानून की दृष्टि में स्वीकार्य नहीं है.

याचिकाकर्ता है पेशे से वकील

अदालत ने कहा सिंह और संबंधित व्यक्ति के बीच टेलीफोन या अन्य तरीके से कोई संपर्क नहीं था. यह भी देखा गया कि एनसीबी ने अपने ही ज्ञात कारणों से उन दो व्यक्तियों को गिरफ्तार नहीं किया जिन्होंने कथित तौर पर प्रतिबंधित पदार्थ की आपूर्ति की थी. याचिकाकर्ता का पिछला रिकॉर्ड साफ है और वह किसी भी आपराधिक गतिविधि में शामिल नहीं रहा है. याचिकाकर्ता पेशे से वकील है और पंजाब राज्य के लिए अतिरिक्त महाधिवक्ता था.



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