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जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाए जाने वाले महाभियोग प्रस्ताव को आगे बढ़ना या अंतिम नतीजे तक पहुंचाना आसान नहीं

जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव की चर्चा जोरों पर है. जानें महाभियोग की प्रक्रिया, अब तक किन जजों पर प्रस्ताव लाया गया और क्यों कोई मामला अंतिम नतीजे तक नहीं पहुंच सका.

Justice Yashwant Verma

जस्टिस यसवंत वर्मा

Edited by Akansha

आगामी मानसून सत्र में जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने को लेकर प्रस्ताव लाने की चर्चा जोड़ो पर है. लेकिन अभी तक जिन न्यायधीशों के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया और उन लोगों के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव की कार्यवाही आगे नही बढ़ सकी, उसको देखकर कहा जा सकता है कि वर्मा के खिलाफ लाए जाने वाले महाभियोग का प्रस्ताव को आगे बढ़ना या अंतिम नतीजे तक पहुचाना आसान नही होगा. अब सवाल यह है कि महाभियोग क्या है, इसका इस्तेमाल कौन कर सकता है और इसकी प्रक्रिया क्या होगी. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के किसी भी जज के खिलाफ महाभियोग चलाने की प्रक्रिया समान है. यह प्रस्ताव एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है, जिसे चलाने की की शुरुआत अनुच्छेद 124 (4), 218 से होती है. और जजेल इंक्वायरी एक्ट-19868 से गुजरना होता है.

जहां राष्ट्रपति इन-हाउस कमेटी की रिपोर्ट पर अंतिम मुहर लगाकर अंजाम तक पहुचाते हैं. हालांकि अभी तक भारत में किसी जज के खिलाफ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव अंतिम अंजाम तक नहीं पहुंच पाया है. सुप्रीम कोर्ट के किसी जज के खिलाफ महाभियोग चलाने की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 124 (4) में निर्धारित की गई है. जबकि संविधान का अनुच्छेद 218 कहता है कि यही प्रावधान हाई कोर्ट के जज पर भी लागू होता है.

अनुच्छेद 124 (बी) के मुताबिक किसी जज को संसद की ओर से निर्धारित प्रक्रिया के जरिए केवल प्रमाणित कदाचार और अक्षमता के आधार पर ही हटाया जा सकता है. न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए महाभियोग का आधार और प्रक्रिया का स्तर काफी उच्च रखा गया है. किसी जज पर महाभियोग चलाने के लिए इसे लोकसभा में कम से कम 100 सदस्यों और राज्य सभा में कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन जरूरी हैं. महाभियोग शुरू करने की यह सबसे पहली प्रक्रिया हैं, सदस्यों का हस्ताक्षर लेकर समर्थन जुटाना.

बता दें कि भारत के मुख्य न्यायाधीश की ओर से यदि किसी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश राष्ट्रपति या सरकार द्वारा की जाती है तो राष्ट्रपति के अनुमोदन या स्वतः सरकार इसे आगे ले जाने या नहीं ले जाने पर फैसला लेती हैं. राज्यसभा या लोकसभा, दोनों में से किसी एक सदन का सत्ताधारी दल का मंत्री या सदस्य संबंधित सदन के संबंध में अन्य सदस्यों का प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कराता हैं.

सदन के स्पीकर महाभियोग प्रस्ताव पर तीन सदस्यीय समिति का गठन करते हैं, एक सदस्य ज्यूरिस्ट, एक सदस्य भारत के मुख्य न्यायाधीश या न्यायाधीश और एक हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश रहेगा. यह समिति निर्धारित प्रक्रिया के तहत आरोप तय करेगी और फिर हर आरोप की जांच भी करेगी. जांच पूरी होने पर सदन के स्पीकर को रिपोर्ट सौंपी जाएगी. समिति के समक्ष संबंधित जज जिसके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया गया है वह अपना पक्ष रख सकता है. समिति की रिपोर्ट आने के बाद उस पर सदन में चर्चा की जाएगी और फिर प्रस्ताव को पारित करने के लिए सदन की संख्या के बहुमत का दो तिहाई मत पक्ष में पड़ना चाहिए. महाभियोग प्रस्ताव के संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा, जहां से संबंधित जज को पद से हटने का आदेश जारी होगा.

संसद में महाभियोग के प्रस्ताव के बाद जांच समिति अपनी रिपोर्ट पूरी करके लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति को सौंपती है. इसके बाद दोनों सदनों में रिपोर्ट पर बहस होती है. अगर जांच रिपोर्ट में लगाए गए आरोपी सही नहीं पाए जाते हैं तो प्रस्ताव वहीं खारिज हो जाता है. लेकिन अगर सही पाया जाता है तो फिर दोनों सदनों की ओर से राष्ट्रपति को आरोपी जज को हटाने की सिफारिश की जाती हैं. महाभियोग की प्रक्रिया केवल पद से हटाने तक ही सीमित होती है. यदि किसी जज पर भ्रष्टाचार या आपराधिक मामला भी बनता है, तो उसे लेकर अलग से जांच और मुकदमा चलाया जा सकता है. जेल की सजा तभी हो सकती है, जब आपराधिक अदालत में दोष सिद्ध हो जाए। इसलिए जस्टिस वर्मा के मामले में भ्रष्टाचार का जो आरोप लगा है अगर वह साबित हो जाता हैं, तो सीबीआई या ईडी जैसी एजेंसियां जांच कर सकती है और मामला अदालत में जा सकता है.

संविधान के अनुच्छेद-124 (4), 217 और 218 में न्यायाधीशों को हटाने का प्रावधान है. संविधान के उल्लंधन और गलत व्यवहार और अक्षमता से संबंधित मामले में जस्टिस को हटाने का प्रस्ताव लाने का प्रावधान है. यह प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में आ सकता है. अगर इसे लोक सभा में पेश किया गया तो इसके लिए कम से कम 100 सांसद के दस्तखत होने जरूरी हैं. वहीं राज्यसभा में प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 50 सांसदों का दस्तखत होना जरूरी है.

हालांकि जस्टिस यशवंत वर्मा से पहले 6 ऐसे ऐसे मामले हुए हैं, जब किसी जज के खिलाफ प्रस्ताव रखा गया है-पहला- जस्टिस जेवी रामास्वामी पहले न्यायाधीश थे जिनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू की गई थी, वर्ष 1993 में लोकसभा में प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन आवश्यक दो तिहाई बहुमत हासिल नही होने के कारण यह विफल रहा. दूसरा- कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व जज सौमित्र सेन स्वतंत्र भारत के ऐसे पहले न्यायाधीश थे, जिनके खिलाफ राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया और पास हो गया. लेकिन लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाने से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया. जिस कारण महाभियोग की प्रक्रिया पूरी नही हो पाई थी.

जस्टिस सौमित्र सेन पर वित्तीय अनियमितता का आरोप था. जांच मेंसेन के खिलाफ लगे आरोप सही पाया गया था. तीसरा-वर्ष 2015 में गुजरात हाई कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला को लेकर राज्यसभा के 58 सदस्यों ने प्रस्ताव का नोटिस दिया था. उनपर आरक्षण को लेकर विवादित टिप्पणी करने का आरोप लगा था. हालांकि बाद में इस टिप्पणी को हटा लिया गया था. जिसके बाद मामले को आगे नही बढ़ाया गया। चौथा- वर्ष 2015 में ही जस्टिस एस के गांगुली को हटाने के लिए राज्यसभा के 50 से अधिक सदस्यों ने एक प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए थे.

जस्टिस एसके गांगुली पर ग्वालियर के एक पूर्व जिला और सत्र न्यायाधीश द्वारा यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था. हालांकि जांच अधिनियम 1968 के तहत गठित जांच समिति ने यौन उत्पीड़न के आरोप को साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर लाई गई सामग्री को अपर्याप्त पाया. जिसके चलते बाद में महाभियोग प्रस्ताव को छोड़ दिया गया.

पांचवा- वर्ष 2017 में आंध्रप्रदेश और तेलंगाना हाई कोर्ट के जस्टिस सीवी नागार्जुन रेड्डी के खिलाफ राज्यसभा के सांसदों द्वारा महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया गया, लेकिन यह आगे नही बढ़ सका. छठा- वर्ष 2018 में विपक्षी दलों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश करने के लिए एक मसौदा प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए, लेकिन इस प्रस्ताव की भी आगे नही बढ़ाया गया. बता दें कि दिसंबर 2024 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ भी महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए सांसदों ने नोटिस दिया था.

-भारत एक्सप्रेस 



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