
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPF) को संगठित समूह ‘ए’ सेवा (OGAS) का दर्जा सभी कार्यों में लागू करने का आदेश दिया है. जस्टिस अभय एस. ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने सरकार को इसे लागू करने के लिए छह महीने का समय दिया है.
आईपीएस अधिकारियों की भूमिका महत्वपूर्ण
फैसले में कोर्ट ने कहा कि केंद्रीय बलों में आईपीएस अधिकारियों की मौजूदगी नीतिगत दृष्टिकोण से जरूरी है. ये अधिकारी सरकार के फैसलों के तहत प्रतिनियुक्ति पर रहते हैं, जिससे बलों की कार्यप्रणाली पर सकारात्मक असर होता है.
एनएफएफयू के साथ OGAS की पूर्ण व्यवस्था जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि OGAS का लाभ सिर्फ गैर-कार्यात्मक वित्तीय उन्नयन (NFFU) तक सीमित नहीं रहना चाहिए. यह सभी कार्यक्षेत्रों पर लागू होना चाहिए. कोर्ट ने सरकार से समय-सीमा तय कर NFFU देने की प्रक्रिया सुनिश्चित करने को कहा है. पीठ ने कहा कि सीएपीएफ कैडर में अधिकारियों की सेवा में गतिशीलता होनी चाहिए. सेवा में ठहराव को खत्म करने की आवश्यकता है. कोर्ट ने सुझाव दिया कि दो वर्षों के भीतर एसएजी स्तर तक प्रतिनियुक्त पदों की संख्या कम की जाए.
दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला बहाल
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 5 फरवरी 2019 को दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय को बहाल कर दिया. यह निर्णय CAPF अधिकारियों के करियर को नई दिशा देने वाला साबित हो सकता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि यह केवल सेवा शर्तों का मामला नहीं है, बल्कि यह संस्थागत गरिमा, अधिकारी morale और राष्ट्रीय सुरक्षा में समान नेतृत्व अवसरों से जुड़ा हुआ है.
कैबिनेट की मंजूरी और RPF को लाभ
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 3 जुलाई 2019 को CAPF को संगठित सेवा का दर्जा देने की मंजूरी दे दी थी. इसके बाद अधिकारियों को उम्मीद थी कि उन्हें NFFU के लाभ मिलेंगे. इसी केस में रेलवे सुरक्षा बल (RPF) भी सह-याचिकाकर्ता था. रेल मंत्रालय ने फैसले को तुरंत लागू करते हुए RPF को संगठित सेवा का दर्जा दे दिया और NFFU लाभ भी दिए.
अब CAPF अधिकारियों की बारी
अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी, सीआईएसएफ और एसएसबी के हजारों अधिकारियों के लिए भी समान लाभ का रास्ता साफ हो गया है. यह फैसला सेवा न्याय, सम्मान और करियर ग्रोथ की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है.
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