आखिर क्यों सृष्टि के रचयिता ब्रह्मदेव की पूजा नहीं होती है? यहां जानिए इसकी वजह
Bhagwan Shri Rama 108 Names List: इन दिनों जोर-शोर से अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियां चल रही हैं. वहीं, 22 जनवरी को श्रीराम मंदिर में भक्तों को राम जी का अद्भुत नजारा देखने का अवसर प्राप्त होगा. लोग अपने रामलला के दर्शन कर पाएंगे. उनसे अपनी इच्छाओं के लिए प्रार्थना कर सकेंगे. साथ ही राम की आशीर्वाद भी ले पाएंगे. ऐसा माना जाता है कि जो भक्त अंतिम समय तक अपने मुंह से भगवान राम का नाम लेता है वो भवसागर से पार हो जाता है. हर रोज राम जी के नाम का जाप करने से जीवन में शुख, शांति और समृद्धि आती है. ऐसे में आइए जानते हैं भगवान राम के 108 नाम के बारे में अर्थ सहित.
1.जिनमें योगीजन रमण करते हैं, ऐसे सच्चिदानन्दघंस्वरूप श्री राम अथवा सीता-सहित राम
2.शा श्वत: :- सना तन रा म
3.रा जी वलो चन:- कमल के समा न नेत्रों वा ले
4.रा मभद्र: – कल्या णमय रा म
5.रा मचन्द्र: – चंद्रमा के समा न आनन्दमयी एवं मनो हर रा म
6.जा नकी वल्लभ:- जनककि शो री सी ता के प्रि यतम
7.श्री मा न् रा जेन्द्र:- श्री सम्पन्न रा जा ओं के भी रा जा , चक्रवर्ती सम्रा ट
8.जैत्र: – वि जयशी ल
9.रघुपुङ्गव:- रघुकुल में श्रेष्ठ
10. वि श्वा मि त्रप्रि य:-वि श्वा मि त्रजी के प्रि यतम
11. जना र्दन:- सम्पूर्ण मनुष्यों द्वा रा या चना करने यो ग्य
12. जि ता मि त्र:- शत्रुओं को जी तनेवा ला
13. बा लि प्रमथन:- बा लि ना मक वा नर को मा रनेवा ले
14. शरण्यत्रा णतत्पर:- शरणा गतों के रक्षा में तत्पर
15. दां त:- जि तेंद्रि य
16. वा ग्मी- अच्छे वक्ता
17. सत्यवा क्- सत्यवा दी
18. सदा हनुमदा श्रय:- नि रंतरं र हनुमा न जी के आश्रय अथवा हनुमा नजी के ह्रदयकमल में नि वा स
करनेवा ले
19. सत्यव्रत:- सत्य का दृढ़ता पूर्वक पा लन करनेवा ले
20. व्रतफल:- सम्पूर्ण व्रतों के प्रा प्त हो ने यो ग्य फलस्वरूप
21. सत्यवि क्रम:- सत्य परा क्रमी
22. कौ सलेय:- कौ सल्या जी के पुत्र
23. खरध्वंसी :- खर ना मक रा क्षस का ना श करनेवा ले
24. वि रा धवध-पण्डि त:- वि रा ध ना मक दैत्य का वध करने में कुशल
25. वि भी षण-परि त्रा ता – वि भी षण के रक्षक
26. दशग्री वशि रो हर:- दशशी श रा वण के मस्तक का टनेवा ले
27. सप्तता लप्रभेता – सा त ता ल वृक्षों को एक ही बा ण से बीं ध डा लनेवा ले
28. हरको दण्ड- खण्डन:- जनकपुर में शि वजी के धनुष को तो ड़नेवा ले
29. जा मदग्न्यमहा दर्पदलन:- परशुरा मजी के महा न अभि मा न को चूर्ण करनेवा ले
30. ता डका न्तकृत- ता ड़का ना मवा ली रा क्षसी का वध करनेवा ले
31. वेदा न्तपा र:- वेदा न्त के पा रंगरं त वि द्वा न अथवा वेदां त से भी अती त
32. वेदा त्मा :- वेदस्वरूप
33. भवबन्धैकभेषज:- संसा र बन्धन से मुक्त करने के लि ये एकमा त्र औषधरूप
34. दूषदू णप्रि शि रो sरि :- दूषदू ण और त्रि शि रा ना मक रा क्षसों के शत्रु
35. त्रि मूर्ति :- ब्रह्मा ,वि ष्णु और शि व- ती न रूप धा रण करनेवा ले
36. त्रि गुण:- त्रि गुणस्वरूप अथवा ती नों गुणों के आश्रय
37. त्रयी – ती न वेदस्वरूप
38. त्रि वि क्रम:- वा मन अवता र में ती न पगों से समस्त त्रि लो की को ना प लेनेवा ले
39. त्रि लो का त्मा – ती नों लो कों के आत्मा
40. पुण्यचा रि त्रकी र्तन:- जि नकी ली ला ओं का की र्तन परम पवि त्र हैं, ऐसे
41. त्रि लो करक्षक:- ती नों लो कों की रक्षा करनेवा ले
42. धन्वी – धनुष धा रण करनेवा ले
43. दण्डका रण्यवा सकृत्- दण्डका रण्य में नि वा स करनेवा ले
44. अहल्या पा वन:- अहल्या को पवि त्र करनेवा ले
45. पि तृभक्त:- पि ता के भक्त
46. वरप्रद:- वर देनेवा ले
47. जि तेन्द्रि य:- इन्द्रि यों को का बू में रखनेवा ले
48. जि तक्रो ध:- क्रो ध को जी तनेवा ले
49. जि तलो भ:- लो भ की वृत्ति को परा स्त करनेवा ले
50. जगद्गुरुद्गु :- अपने आदर्श चरि त्रों से सम्पूर्ण जगत् को शि क्षा देनेके का रण सबके गुरु
51. ऋक्षवा नरसंघा ती :- वा नर और भा लुओं की सेना का संगठन करनेवा ले
52. चि त्रकूट – समा श्रय:- वनवा स के समय चि त्रकूट पर्वत पर नि वा स करनेवा ले
53. जयन्तत्रा णवरद:- जयन्त के प्रा णों की रक्षा करके उसे वर देनेवा ले
54. सुमि त्रा पुत्र- सेवि त:-सुमि त्रा नन्दन लक्ष्मण के द्वा रा सेवि त
55. सर्वदेवा धि देव:- सम्पूर्ण देवता ओं के भी अधि देवता
56. मृतवा नरजी वन:- मरे हुए वा नरों को जी वि त करनेवा ले
57. मा या मा री चहन्ता – मा या मय मृग का रूप धा रण करके आये हुए मा री च ना मक रा क्षस का वध
करनेवा ले
58. महा भा ग:- महा न सौ भा ग्यशा ली
59. महा भुज:- बड़ी – बड़ी बाँ हों वा ले
60. सर्वदेवस्तुत:- सम्पूर्ण देवता जि नकी स्तुति करते हैं, ऐसे
61. सौ म्य:- शां तस्वभा व
62. ब्रह्मण्य:- ब्रा ह्मणों के हि तैषी
63. मुनि सत्तम:- मुनि यों मे श्रेष्ठ
64. महा यो गी – सम्पूर्ण यो गों के अधी ष्ठा न हो ने के का रण महा न यो गी
65. महो दर:- परम उदा र
66. सुग्री वस्थि र-रा ज्यपद:- सुग्री व को स्थि र रा ज्य प्रदा न करनेवा ले
67. सर्वपुण्या धि कफलप्रद:-सम्स्त पुण्यों के उत्कृष्ट फलरूप
68. स्मृतसर्वा घना शन:- स्मरण करनेमा त्र से ही सम्पूर्ण पा पों का ना श करनेवा ले
69. आदि पुरुष: – ब्रह्मा जी को भी उत्पन्न करनेके का रण सब के आदि भूत अन्तर्या मी परमा त्मा
70. महा पुरुष:- समस्त पुरुषों मे महा न
71. परम: पुरुष:- सर्वो त्कृष्ट पुरुष
72. पुण्यो दय:- पुण्य को प्रकट करनेवा ले
73. महा सा र:- सर्वश्रेष्ठ सा रभूत परमा त्मा
74. पुरा णपुरुषो त्तम:- पुरा णप्रसि द्ध क्षर-अक्षर पुरुषों से श्रेष्ठ ली ला पुरुषो त्तम
75. स्मि तवक्त्र:- जि नके मुखपर सदा मुस्का नकी छटा छा यी रहती है, ऐसे
76. मि तभा षी – कम बो लनेवा ले
77. पूर्वभा षी – पूर्ववक्ता
78. रा घव:- रघुकुल में अवती र्ण
79. अनन्तगुण गम्भी र:- अनन्त कल्या णमय गुणों से युक्त एवं गम्भी र
80. धी रो दा त्तगुणो त्तर:- धी रो दा त्त ना यकके लो को तर गुणों से युक्त
81. मा या मा नुषचा रि त्र:- अपनी मा या का आश्रय लेकर मनुष्यों की -सी ली ला एँ करनी वा ले
82. महा देवा भि पूजि त:- भगवा न शंकर के द्वा रा नि रन्तर पूजि त
83. सेतुकृत- समुद्रपर पुल बाँ धनेवा ले
84. जि तवा री श:- समुद्रको जी तनेवा ले
85. सर्वती र्थमय:- सर्वती र्थस्वरूप
86. हरि :- पा प-ता प को हरनेवा ले
87. श्यामा ङ्ग:- श्याम वि ग्रहवा ले
88. सुन्दर:- परम मनो हर
89. शूर:- अनुपम शौ र्यसे सम्पन्न वी र
90. पी तवा सा :- पी ता म्बरधा री
91. धनुर्धर:- धनुष धा रण करनेवा ले
92. सर्वयज्ञा धि प:- सम्पूर्ण यज्ञों के स्वा मी
93. यज्ञ:- यज्ञ स्वरूप
94. जरा मरणवर्जि त:- बुढ़ा पा और मृत्यु से रहि त
95. शि वलिं गप्रति ष्ठा ता – रा मेश्वर ना मक ज्यो ति र्लिं ग की स्था पना करनेवा ले
96. सर्वा घगणवर्जि त: – समस्त पा प-रा शि यों से रहि त
97. परमा त्मा – परमश्रेष्ठ, नि त्यशुद्ध-बुद्ध –मुक्तस्वरूपा
98. परं ब्रह्म- सर्वो त्कृष्ट, सर्वव्या पी एवं सर्वा धि ष्ठा न परमेश्वर
99. सच्चि दा नन्दवि ग्रह:- सत्, चि त् और आनन्द ही जि नके स्वरूप का नि र्देश करा नेवा ला है, ऐसे
परमा त्मा अथवा सच्चि दा नन्दमयदि व्यवि ग्रह
100. परं ज्यो ति :- परम प्रका शमय,परम ज्ञा नमय
101. परं धा म- सर्वो त्कृष्ट तेज अथवा सा केतधा मस्वरूप
102. परा का श:- त्रि पा द वि भूति में स्थि त परमव्यो म ना मक वैकुण्ठधा मरूप, महा का शस्वरूप ब्रह्म
103. परा त्पर:- पर- इन्द्रि य, मन, बुद्धि आदि से भी परे परमेश्वर
104. परेशरे :- सर्वो त्कृष्ट शा सक
105. पा रग:- सबको पा र लगा नेवा ले अथवा मा या मय जगत की सी मा से बा हर रहनेवा ले
106. पा र:- सबसे परे वि द्यमा न अथवा भवसा गर से पा र जा ने की इच्छा रखनेवा ले प्रा णि यों के
प्रा प्तव्य परमा त्मा
107. सर्वभूता त्मक:- सर्वभूतस्वरूप
108. शि व:- परम कल्या णम
-भारत एक्सप्रेस
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