कला-साहित्य

‘अक्सर एक गंध, मेरे पास से गुजर जाती है…’, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, जिन्‍होंने कविताओं से सिखाया जीने का सलीका

Sarveshwar Dayal Saxena: ‘अक्सर एक गंध, मेरे पास से गुजर जाती है, अक्सर एक नदी मेरे सामने भर जाती है, अक्सर एक नाव आकर तट से टकराती है, अक्सर एक लीक दूर पार से बुलाती है’, ये कविता लिखी थी सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने, जिनकी लेखनी के बिना हिंदी साहित्य की कल्पना करना भी बेईमानी होगी.

उनकी लेखनी का अंदाजा आप इस बात से ही लगा सकते हैं कि जब तक वह जीवित रहे, तब तक उनकी कलम अपना कमाल दिखाती रही. उन्होंने कविता से लेकर, गीत और नाटक से लेकर आलेख तक को अपनी कलम की स्याही से शब्द उकेरे.

“तीसरे सप्तक” ने कवि सर्वेश्वर को दिलाई शोहरत

15 सितंबर 1927 को यूपी के बस्ती में जन्में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने एक छोटे से कस्बे से अपने सफर का आगाज किया. मगर उन्हें शोहरत दिलाई “तीसरे सप्तक” ने. जिन सात कवियों की कविताओं को एक किताब में सम्मिलित किया गया, उनमें से सर्वेश्वर दयाल सक्सेना भी एक थे.

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना अपनी एक कविता में प्रेम को बहुत ही खूबसूरती के साथ बयां करते हैं. वह लिखते हैं, “तुम्हारे साथ रहकर, अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है कि दिशाएं पास आ गई हैं, हर रास्ता छोटा हो गया है, दुनिया सिमटकर, एक आंगन-सी बन गई है जो खचाखच भरा है, कहीं भी एकांत नहीं, न बाहर, न भीतर.”, उन्होंने कविताओं के अलावा नाटक, उपन्यास, यात्रा, बाल-साहित्य के विषयों पर लिखा.

1983 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हुए

यही नहीं, पत्रकार के रूप में उनको खास पहचान दिनमान में पब्लिश ‘चरचे और चरखे’ ने दिलाई. साल 1983 में कविता संग्रह ‘खूंटियों पर टंगे लोग’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया. उन्होंने अपने करियर के दौरान “काठ की घंटियां”, “बांस का पुल”, “एक सूनी नाव”, “गर्म हवाएं”, “कुआनो नदी”, “जंगल का दर्द”, , “क्या कह कर पुकारूं”, “कोई मेरे साथ चले” जैसे कविता-संग्रह भी रचे.

बाल कविता ‘बतूता का जूता’, ‘महंगू की टाई’ भी लिखीं

बच्चों के लिए भी लिखा. उनकी दो बाल कविता संग्रह ‘बतूता का जूता’ और ‘महंगू की टाई’ नाम से प्रकाशित किया गया. 1974 में प्रकाशित हुए उनके लिखे नाटक “बकरी” का सभी भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया. बताया जाता है कि भारत सरकार ने आपातकाल के दौरान इस पर प्रतिबंध लगा दिया था और मॉरिशस में भी इस पर बैन लगाया गया.

सर्वेश्वर दयाल ने अपनी कविताओं से जीने की उम्मीद जगाई. वह लिखते हैं, “तुम्हारे साथ रहकर, अक्सर मुझे महसूस हुआ है कि हर बात का एक मतलब होता है, यहां तक कि घास के हिलने का भी, हवा का खिड़की से आने का और धूप का दीवार पर चढ़कर चले जाने का.”

कविताओं से जीवन जीने का सलीका सिखाने वाले सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने 24 सितंबर 1983 को दुनिया को अलविदा कह दिया.

— भारत एक्सप्रेस

Vijay Ram

ऑनलाइन जर्नलिज्म में रचे-रमे हैं. हिंदी न्यूज वेबसाइट्स के क्रिएटिव प्रेजेंटेशन पर फोकस रहा है. 10 साल से लेखन कर रहे. सनातन धर्म के पुराण, महाभारत-रामायण महाकाव्यों (हिंदी संकलन) में दो दशक से अध्ययनरत. सन् 2000 तक के प्रमुख अखबारों को संग्रहित किया. धर्म-अध्यात्म, देश-विदेश, सैन्य-रणनीति, राजनीति और फिल्मी खबरों में रुचि.

Recent Posts

कॉलेजियम की सिफारिश के बावजूद HC के जजों की नियुक्ति नहीं किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश के बावजूद देश के अलग-अलग हाईकोर्ट में जजों और चीफ…

6 mins ago

सुप्रीम कोर्ट ने DRI को सीमा शुल्क कानून 1962 के तहत दी जाने वाले शक्तियों के मामले में सुनवाई के बाद सुरक्षित रखा फैसला

वर्ष 1977 के बाद से सीमा शुल्क विभाग और डीआरआई दोनों वित्त मंत्रालय का हिस्सा…

7 mins ago

आंध्र प्रदेश: तिरुपति मंदिर में प्रसाद के लड्डू जिस घी में बने, उसमें पशुओं की चर्बी होने का दावा

एक लैब रिपोर्ट ने पुष्टि की है कि वाईएसआरसीपी के सत्ता में रहने के दौरान…

22 mins ago

1951 से 1967 तक देश में एक साथ होते थे लोकसभा और विधानसभा चुनाव, ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के आने से क्या होगा लाभ?

भारत की आजादी के चार साल बाद यानि 1951-52 में पहली बार देश में लोकसभा…

1 hour ago

Haryana Election 2024: BJP के संकल्प पत्र में अग्निवीर को सरकारी नौकरी, महिलाओं को ₹2100 महीने देने का वादा

BJP Election Manifesto : भाजपा ने हरियाणा विधानसभा चुनाव-2024 के लिए संकल्प पत्र घोषित किया…

2 hours ago