पीएम नरेंद्र मोदी (फोटो- @narendramodi)
हम दिन में कई ऐसे कथन कहते हैं, जिसमें कटाक्ष, हास्य या निंदा होती है। इन शब्दों का खुद पर या दूसरों पर कितना प्रभाव पड़ता है, हम इसकी कभी चिंता नहीं करते। लेकिन चिंता करना और उस प्रभाव का अध्ययन करना जरूरी है, क्योंकि हमारा एक कथन न सिर्फ हमारे व्यक्तित्व को दर्शाता है, बल्कि हमारे अंतर्देह की अभिव्यक्ति भी करता है जिसके कई उदाहरण स्मृतियों में हैं। जैसे तथागत गौतम बुद्ध ने हर प्राणी के प्रति करुणा का विचार देकर संसार को अहिंसा और शांति का भाव सौंपा। तो स्वामी विवेकानंद ने विश्व समुदाय को एक ऐसा भाव दिया, जिसने संसार को कुटुम्ब बना दिया और अब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विविधता से भरे एक देश को पारिवारिक डोर में पिरो दिया। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी के कथन की अपनी एक परिधि है, लेकिन भाव में स्वामी विवेकानंद के वचनों की अनुभूति है। 1893 में स्वामी विवेकानन्द ने विश्व धर्म सम्मेलन में ‘भाइयो और बहनो’ कहकर उपस्थित जनसमूह को सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या संसार को कुटुंब मानने वाला इससे बेहतर कोई संबोधन हो सकता है? तो वहीं लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी ने ‘देशवासियों’ की जगह ‘परिवारजनों’ के संबोधन से दुनिया भर के देशों को नई दृष्टि दे दी। यह नजरिया है देश को घर और देशवासियों को परिवार के रूप में देखने का जिसके गहरे और दूरगामी मायने हैं। प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन में एक-एक शब्द के मायने होते हैं। स्वामी विवेकानंद से अत्यंत प्रभावित और उनकी शिक्षा को अपने जीवन में आत्मसात करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संबोधन में भी उसकी झलक दिखी।
देश के 77वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर पर लगातार दसवीं बार झंडारोहण करने के बाद जब राष्ट्र के नाम संबोधन दिया तो वही आत्मविश्वास और वाणी में खनक दिखी जो 2014 के उनके पहले भाषण में थी। लाल किले से दिए 90 मिनट के संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने हर उस विषय को छुआ जो आम भारतीय के सपनों और उम्मीदों से जुड़ा है। उन्होंने अपने संबोधन में देश के वर्तमान के साथ साथ उज्जवल भविष्य का विजन सामने रखा। “2047 में, जब देश आजादी के 100 साल मनाएगा, उस समय दुनिया में भारत का तिरंगा विकसित भारत का तिरंगा होना चाहिए।”
मोदी ने जो सबसे महत्वपूर्ण बात कही वह यह है कि विकास की जो गाथा इन दिनों लिखी जा रही है वह भविष्य के हजार साल के लिए बुनियाद है। गुलामी के दिनों ने जिस विरासत को विस्मृत कर दिया, वह विरासत अब और निखरकर सामने आने को तैयार है। दुनिया में मानव संसाधन का हब बना भारत गुणवत्तापूर्ण मानव संसाधन और उत्पादन एवं उत्पादकता के लिए मशहूर होने जा रहा है। संस्कृति का पुनर्जागरण, सभ्यता के अवशेषों से नई सभ्यता का निर्माण और शासन को लोकोपकारी बनाने का अभियान- वास्तव में नए भारत की नींव रखी जा रही है।
प्रधानमंत्री मोदी जिस तरह से अपने अगले कार्यकाल में भारत को तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था बनाने का संकल्प रख रहे हैं, वह उसी विश्वास का प्रकटीकरण है जो बीते 9 साल में दुनिया के फलक पर भारत ने हासिल किया है। विश्व में आज भारत की जो छवि है, ऐसी कभी नहीं थी। दुनिया में सबसे तेज रफ्तार वाली अर्थव्यवस्थाओँ में शुमार भारत, दुनिया की सेवा को तत्पर भारत और हिंसा से दूर शांति के मार्ग पर प्रगति करता भारत- यही है नए भारत की नई तस्वीर। बीते 9 वर्षों में भारत ने 13 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकालने का चमत्कार कर दिखाया है। यह संख्या ऑस्ट्रेलिया की आबादी से साढ़े पांच गुना ज्यादा है।
विपक्ष की धड़कनें बढ़ाईं
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अगस्त के दूसरे हफ्ते में संसद के भीतर विपक्ष को अगले अविश्वास प्रस्ताव की तैयारी करने की सलाह देकर और 15 अगस्त को यह कहकर कि वे अगले साल भी तिरंगा फहराने आने वाले हैं- विपक्ष की धड़कनें बढ़ा दी हैं। विपक्ष के लगभग सभी नेताओं ने प्रधानमंत्री के इस दावे के आलोक में उन्हें डरा हुआ करार दिया। मल्लिकार्जुन खरगे, लालू प्रसाद, जेडीयू प्रवक्ता और दूसरे तमाम ‘इंडिया’ के नेताओं ने प्रधानमंत्री के भाषण को ‘विदाई भाषण’ तक करार दिया।
2024 के आम चुनाव के मद्देनजर प्रधानमंत्री मोदी का भाषण निश्चित रूप से उपलब्धियों का उल्लेख था तो विपक्ष पर राजनीतिक आक्रमण से भी वह नहीं चूके। परिवारवाद, भ्रष्टाचार और तुष्टीकरण मिटाने जैसे नारे मोदी पहले भी दे चुके हैं लेकिन 15 अगस्त 2023 को इन नारों के उल्लेख में 2024 के आम चुनाव की तैयारी साफ नजर आई। विश्लेषक इसे बीजेपी और नरेन्द्र मोदी की आक्रामक सियासी शैली बता रहे हैं तो विपक्ष उम्मीद के अनुरूप इसे नवगठित प्लेटफॉर्म ‘इंडिया’ का खौफ कह रहा है।
मोदी जो बात लगातार कह रहे हैं शायद वो उनका जनता पर बना विश्वास है। 2014 में बीजेपी को 31.1% वोट मिले थे जो 2019 में 37.4% हो गए। वोटों के हिसाब से पौने छह करोड़ वोटों की वृद्धि हुई। मुसलमानों को छोड़कर हर जाति-वर्ग में बीजेपी के वोटों में बढ़ोतरी हुई। बीजेपी के लिए सबसे ज्यादा आकर्षण दलितों में दिखा। जहां 2014 में बीजेपी को 24% दलित वोट मिले थे, वहीं 2019 में यह हिस्सेदारी बढ़कर 34% हो गई। 2024 के लिए बीजेपी ने पसमांदा मुसलमानों को रिझाया है। बीते दो लोकसभा चुनावों में बीजेपी के लिए मुस्लिम वोट 8 फीसदी के करीब स्थिर रहे हैं। बीजेपी की कोशिश इसमें 5 फीसदी वोट का इजाफा करने की है। वास्तव में बीजेपी की कोशिशों पर पलीता लगाने के लिए ही विपक्षी दलों में एकजुटता देखी जा रही है। जो विपक्षी दल 2019 में निश्चिंत थे, उन्हें बीजेपी की हर वर्ग में मजबूत हुई पैठ ने 2024 के लिए बेचैन कर दिया है।
मणिपुर पर अब हर सभा में बोलने लगे हैं मोदी
विपक्ष ने जिस मणिपुर के मुद्दे को प्रधानमंत्री की चुप्पी से जोड़ रखा था उसकी भी हवा निकालने की कोशिश करते दिख रहे हैं प्रधानमंत्री मोदी। संसद की चौखट पर मणिपुर पर पहली बार जुबान खोलने के बाद से पीएम मोदी ने अविश्वास प्रस्ताव और उसके बाद लाल किले से मणिपुर का जिक्र कर इस मुद्दे पर राजनीतिक हमलों का भी जवाब दिया है। साथ ही मणिपुर में लौट रही शांति का श्रेय लेने की स्पष्ट कोशिश भी दिखी है। जाहिर है कि इसका राजनीतिक लाभ भी उन्हें मिलेगा। हालांकि ये भी तय है कि मणिपुर में जातीय हिंसा की घटनाओं के लिए सरकार को जिम्मेदार बनाने की कोशिश विपक्ष इतनी आसानी से नहीं छोड़ने वाला है।
देशवासियों को किए अपने संबोधन में विकास के पथ पर भारत को तेजी से अग्रसर बनाने की पहल का दावा करते हुए पीएम मोदी ने एक से बढ़कर एक लोकलुभावन कल्याणकारी योजनाओं का भी जिक्र किया। इनमें उल्लेखनीय हैं-
13 हजार करोड़ की विश्वकर्मा योजना
गांव में 2 करोड़ लखपति दीदी योजना
शहर में बेघरों को सस्ते होम लोन
इन घोषणाओं को सिर्फ चुनावी इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि ऐसी घोषणाएं लगातार होती रही हैं। आगे भी लोकसभा चुनाव से पहले पीएम मोदी ऐसी लोकलुभावन घोषणाएं लेकर आते रहने वाले हैं।
फॉर्म, रिफॉर्म और परफॉर्म
फॉर्म, रिफॉर्म और परफॉर्म का नारा देकर प्रधानमंत्री ने विकास की गाड़ी को ट्रिपल एक्सलरेशन देने की कोशिश दिखलाई है। वैश्विक स्तर पर भारत और चीन विकास दर के मामले में सकारात्मक बने हुए हैं। जबकि, यूरोपीय यूनियन और जापान जैसे देशों में विकास की रफ्तार सुस्त है। आईएमएफ ने आशा जताई है कि 2027 में भारत की अर्थव्यवस्था तीसरे नंबर की हो जाएगी। भारत अगर वर्तमान में 6.5 फीसदी के विकास दर की रफ्तार को जारी रखता है तो फॉर्म, रिफॉर्म और परफॉर्म के नारे की इसमें महती भूमिका रहेगी।
एक और महत्वपूर्ण घोषणा जो नरेन्द्र मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री लाल किले से की वह है देश के राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण। विश्वमंगल से इस राष्ट्रीय चरित्र को जोड़ते हुए पीएम मोदी ने भारत को ‘विश्वमित्र’ बनाने का लक्ष्य सामने रखा। अब तक ‘विश्वगुरू’ से हटकर इस नये आह्वान को भी बड़े बदलाव के तौर पर देखा जा सकता है। निश्चित रूप से विपक्ष की आलोचना भरी नजर यहां भी है कि मोदी ‘विश्वगुरू’ के दावे से पीछे हट रहे हैं लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि ‘विश्वमित्र’ बनकर भारत खुद को और प्रासंगिक बना सकता है। वास्तव में दुनिया को जब कभी जरूरत पड़ी है तो भारत इस रूप में हमेशा अपनी बड़ी भूमिका के साथ खड़ा दिखा है। सबसे बड़ा उदाहरण कोरोना काल में सौ से भी अधिक देशों को वैक्सीन देने के तौर पर देखा जा सकता है।
नायक की भूमिका में मोदी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह भरोसा दिलाकर कि भारत की एकता को आंच आए, न ऐसी मेरी भाषा होगी, न कोई कदम होगा- बड़ी बात कह दी है। यह उन लोगों के लिए भी संदेश है जो लगातार भाषा के स्तर पर निम्नस्तरीय प्रदर्शन कर रहे हैं और जिसके बुरे नतीजे आम जनता के बीच अप्रिय घटनाओं के रूप में देखने को मिल रहे हैं। हर पल देश को जोड़ने का प्रयास करने का वादा कर मोदी ने एक बार फिर स्वयं को समर्पित राष्ट्रवादी नायक के रूप में पेश किया है।
विपक्ष को नरेन्द्र मोदी की नायक वाली छवि से ही डर लगता है। मगर, इस डर का गलत जवाब लेकर अक्सर विपक्ष के नेता सामने आ जाते हैं और गलती कर बैठते हैं। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की पार्टी बीजेपी का विरोध करते-करते कांग्रेस के प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला उन मतदाताओं को भी राक्षस बता बैठे जो उन्हें वोट देते हैं। इससे वास्तव में मोदी की नायक वाली छवि और मजबूत होती जाती है और स्वयं आक्रमणकारी नेता ही संदेह के घेरे में आ खड़े हो जाते हैं। सवाल यही है कि मोदी जिस नायकत्व की रचना अपने कार्यों और सम्मोहन कला से कर रहे हैं, क्या उसका तिलिस्म विपक्ष खत्म कर पाएगा?