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हिंडनबर्ग रिपोर्ट, विदेशी साजिश या खुफिया सोर्स?

हिंडनबर्ग से पहले फिच ग्रुप की क्रेडिट साइट्स ने भी अगस्त 2022 में रिपोर्ट जारी कर बताया था कि अडानी ग्रुप पर भारी कर्ज का बोझ है।

March 5, 2023
adani hindenburg row

अडानी-हिंडनबर्ग विवाद

अमेरिका की शॉर्ट सेलिंग रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग को 24 जनवरी, 2023 से पहले कम ही लोग जानते होंगे। लेकिन भारत में ये अब जाना पहचाना नाम है। वजह है देश के नंबर एक उद्योग समूह अडानी ग्रुप के वित्तीय प्रबंधन को लेकर छापी गई इसकी एक रिपोर्ट जिसने भारतीय शेयर मार्केट में भूचाल ला दिया। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट का ऐसा असर हुआ कि देखते ही देखते निवेशकों के करीब 12 लाख करोड़ रुपए डूब गए। अडानी ग्रुप को 140 अरब डॉलर का भारी भरकम नुकसान हुआ। सितंबर, 2022 तक दुनिया के अरबपतियों की सूची में 156.3 अरब डॉलर नेटवर्थ के साथ दूसरे नंबर पर रहे अडानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडानी की नेटवर्थ 60 अरब डॉलर से नीचे चली गई और वो फोर्ब्स की सूची में खिसककर 38वें नंबर पर पहुंच गए।

हालांकि ऐसा भी नहीं है कि गौतम अडानी इतने कम समय में सौ अरब डॉलर से ज्यादा का नुकसान झेलने वाले दुनिया के इकलौते अरबपति हैं। हांगकांग में बिल्कुल गौतम अडानी जैसा ही मामला सामने आया है जिसमें टेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्रीज को दो दिनों में ही 670 मिलियन डॉलर का फटका लगा जबकि एक हफ्ते के अंदर ही कंपनी के 4 अरब डॉलर डूब गए। यहां भी कहानी अडानी जैसी ही रही। एक अनजान सी शॉर्ट सेलर कंपनी जेहोशफाट रिसर्च ने 60 पन्नों की रिपोर्ट छापी जिसमें टेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्रीज पर आरोप लगाया कि वो पिछले दस साल से अकाउंट में हेराफेरी कर मुनाफे को बढ़ा चढ़ाकर दिखा रही है। रिपोर्ट आते ही टेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्रीज के शेयर करीब 19 फीसदी टूट गए। हिंडनबर्ग ने भी अडानी ग्रुप पर मार्केट में हेरफेर और अकाउंट में धोखाधड़ी का आरोप लगाया था। गौतम अडानी की तरह टेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्रीज़ के को-फाउंडर होर्स्ट जूलियस पुडविल ने भी रिपोर्ट को गलत बताया और उसके खिलाफ कानूनी कदम उठाने की बात कही है।

हिंडनबर्ग रिपोर्ट से उठे बवंडर और निवेशकों को हुए भारी नुकसान के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचे मामले में शीर्ष अदालत ने बाजार में पैदा हुई उथल-पुथल की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एएम सप्रे की अध्यक्षता में 6 सदस्यीय समिति बना दी है, जिसमें प्रख्यात बैंकर केवी कामथ, इंफोसिस के को-फाउंडर नंदन नीलेकणि जैसे लोगों को रखा गया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने सेबी को भी दो महीने के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश दिया है। अडानी समूह ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। शेयर बाजार ने भी अडानी समूह के शेयरों के प्रति सकारात्मक रुझान दिखाया है। लगातार तीन कारोबारी सत्र में ही समूह के शेयरों में डेढ़ लाख करोड़ का मार्केट कैप बढ़ गया। 2 मार्च को गौतम अडानी फोर्ब्स के टॉप मिलियनायर्स की सूची में अपनी स्थिति में सुधार करते हुए 28वें स्थान पर पहुंच गए हैं।

फिलहाल हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से पैदा हुए झंझावात से उबरने की कोशिश निवेशक और अडानी ग्रुप दोनों ही कर रहे हैं जो आसान नहीं है। लेकिन हिंडनबर्ग और जेहोशफाट जैसी कंपनियों की रिपोर्ट कई सवाल खड़े करती है, खासतौर से उनकी मंशा पर।

कहते हैं आप जितनी तेजी से तरक्की करते हैं उतनी ही तेजी से आपके विरोधी भी बढ़ते हैं। केवल तीस साल में जिस तरह अडानी ग्रुप ने आसमान की बुलंदियां छुई हैं, उसने देश विदेश में उसके विरोधियों की संख्या भी बढ़ाई होगी इसमें संदेह नहीं है। आज पोर्ट, एयरपोर्ट, बिजली, खनन से लेकर रिटेल जैसे तमाम सेक्टर में अडानी ग्रुप की मौजूदगी है। तो क्या हिंडनबर्ग की रिपोर्ट अडानी ग्रुप के खिलाफ सोची समझी साज़िश है? मोदी सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने और 2047 तक देश को विकसित राष्ट्र का दर्जा दिलाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है। इस लक्ष्य को हासिल करने में अडानी, अंबानी, टाटा, बिड़ला जैसे औद्योगिक घरानों का महत्वपूर्ण योगदान होगा। तो क्या कुछ विदेशी ताकतें नहीं चाहतीं कि भारत इतनी तेजी से विकास करे? क्या वो नहीं चाहते कि भारत उनके समक्ष खड़ा हो सके?

सवाल यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में विशेषज्ञों की जांच के बाद भी विदेशी साजिश वाले पहलू का जवाब मिल सकेगा? हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर संदेह करने के अनेकानेक कारणों में सबसे बड़ा कारण है हितों का टकराव। हिंडनबर्ग शॉर्ट सेलिंग के जरिए शेयर बाज़ार से फायदा कमाने वाली कंपनी है। शॉर्ट सेलिंग का मतलब होता है कि संभावना के आधार पर एक निश्चित सीमा तक गिरने वाले शेयर को छद्म रूप में खरीदना और फिर उस सीमा पर शेयर गिरते ही उन्हें बेचकर मुनाफा कमाना। इस अंतर को ही शॉर्ट सेल का लाभ कहते हैं। हिंडनबर्ग ने खुद अडानी समूह के शेयरों में शॉर्ट सेलिंग से भारी मुनाफा कमाया है।

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद जितनी तेज गिरावट अडानी समूह के शेयरों में हुई है उससे संदेह होता है कि कहीं पूर्व नियोजित योजना के तहत इस गिरावट का अनुमान लगाते हुए अकूत फायदा पहुंचाना तो इस रिपोर्ट का मकसद नहीं था?  इससे भी बड़ा संदेह हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को जारी करने की तारीख को लेकर पैदा होता है। हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट ऐसे समय में आई  जब 27 जनवरी को अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड कंपनी का एफपीओ यानी फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर आने वाला था। फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर के जरिए किसी कंपनी के कुछ शेयर फिर से मार्केट में लाए जाते हैं। अडानी एंटरप्राइजेज की योजना एफपीओ के जरिए मार्केट से 20,000 करोड़ रुपए एकत्र करने की थी। एफपीओ पूरा सब्सक्राइब हुआ लेकिन इसे वापस ले लिया गया और निवेशकों के पैसे लौटा दिए गए। गौतम अडानी ने कहा कि शेयर बाजार में जारी हलचल और निवेशकों के हितों को ध्यान में रखते हुए ये फैसला लिया गया है। तो क्या गौतम अडानी का एफपीओ भी निशाने पर था?

हिंडनबर्ग ने 32 हजार पन्नों की अपनी रिपोर्ट में अडानी समूह पर 88 सवाल उठाए हैं जिसके जवाब में अडानी ग्रुप का कहना है कि 21 सवालों के जवाब तो पहले से ही सार्वजनिक डोमेन में हैं। इसके अलावा जिन नतीजों पर रिपोर्ट पहुंची है उस बारे में स्वयं अडानी समूह ने समय-समय पर सार्वजनिक घोषणाएं की हैं। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में अडानी समूह की कुछ कंपनियों पर वास्तविक आय को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाने और बैलेंसशीट में हेरफेर करने के आरोप लगाए गए हैं। इसके अलावा रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रोमोटर्स ने शेयरों को गिरवी रखकर उधार लिया है। रिपोर्ट के मुताबिक अडानी ग्रुप पर कर्ज का भारी बोझ है। जवाब में अडानी समूह का कहना है कि ग्रुप पर कर्ज उसकी संपत्ति की तुलना में बहुत कम है इसलिए कंपनी पर किसी तरह का दबाव नहीं है।

अडानी समूह की दलील अपनी जगह है लेकिन खुद समूह और देश को हुआ नुकसान एक सच्चाई है। भारतीय शेयर बाजार में अडानी ग्रुप के 10 शेयरों का कंबाइंड मार्केट कैप 24 जनवरी 2023 को (हिंडनबर्ग रिपोर्ट सार्वजनिक होने वाले दिन) 19.19 लाख करोड़ रुपये था। 22 फरवरी को यह घटकर 7.5 लाख करोड़ रह गया। इस तरह भारतीय बाजार की गिरावट में 60 फीसदी योगदान गौतम अडानी ग्रुप का है। इसका मतलब साफ है कि हिंडनबर्ग रिसर्च के तूफान से अडानी समूह के साथ-साथ भारतीय शेयर बाजार भी हलकान हुआ है।

इसका नतीजा यह हुआ कि ग्लोबल एम-कैप में भारत का योगदान जो अक्टूबर 2022 में 4 प्रतिशत था, अब घटकर 3 प्रतिशत से नीचे हो गया है। 31 जनवरी को फ्रांस ने भारत को ग्लोबल शेयर मार्केट के टॉप फाइव से बेदखल किया था। 22 फरवरी को ब्रिटेन ने एक और स्थान पीछे धकेलते हुए भारत को सातवें स्थान पर पहुंचा दिया है।

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटिश इक्विटी मार्केट की वैल्यू भारत की तुलना में 5.1 बिलियन डॉलर ज्यादा हो गई है। ब्रिटिश इक्विटी मार्केट की कुल वैल्यू 3.11 ट्रिलियन डॉलर पहुंच गई है। 29 मई 2022 के बाद एक बार फिर ब्रिटेन का शेयर बाजार भारत से बड़ा हो गया है।

हिंडनबर्ग से पहले फिच ग्रुप की क्रेडिट साइट्स ने भी अगस्त 2022 में रिपोर्ट जारी कर बताया था कि अडानी ग्रुप पर भारी कर्ज का बोझ है। रिपोर्ट में अडानी समूह को ‘डीपली ओवरलीवरेज्ड’ बताया गया था। इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद अडानी समूह की कई कंपनियों के शेयर औंधे मुंह गिर गए थे। मगर, तब अडानी समूह के प्रबंधन ने फिच ग्रुप से बातचीत कर उन्हें आश्वस्त कर दिया था और महीने भर के भीतर ही संशोधित रिपोर्ट जारी कर दी गई।

लेकिन, हिंडनबर्ग और अडानी समूह का टकराव खत्म होने के आसार नहीं दिखते। इससे भी हिंडनबर्ग रिपोर्ट के पीछे छिपे हुए एजेंडे की बात गंभीर हो जाती है। विदेशी प्रचार माध्यम इस मामले को लगातार तूल दे रहे हैं। देश की सरकार को भी इसमें बेवजह घसीटा जा रहा है। फोर्ब्स ने तो गौतम अडानी के प्रोफाइल पेज पर आपत्तिजनक बातें लिखकर मामले को और तूल देने की भरपूर कोशिश की है।

अगर वाकई इसके पीछे विदेशी साज़िश है तो वह बहुत ओछी कही जाएगी, क्योंकि अडानी जैसे ग्रुप से हजारों लोगों का रोजगार जुड़ा है। देश विदेश में 20 हजार से ज्यादा कर्मचारी अडानी ग्रुप के साथ जुड़े हैं। अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ने वालों की संख्या लाखों में है। जाहिर है अडानी जैसे ग्रुप पर अगर आंच आती है तो हजारों लोगों के घरों तक उसकी तपिश पहुंचती है। एक भ्रामक रिपोर्ट से शेयर मार्केट में छोटे निवेशकों को हुआ नुकसान अलग है।

दुर्भाग्य से भारतीय राजनीति भी अक्सर सत्ता पक्ष पर हमला करने को बेताब नजर आती है और इसके लिए गलत अवसर तक को भुनाने का मौका नहीं छोड़ती। हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर शक करने के बजाए उसे सही मानते हुए अपने देश के होनहार उद्योगपति पर सवाल उठाकर भारतीय विपक्ष ने वास्तव में खुद पर ही सवाल उठाया है। देश हित के सामने राजनीतिक हितों को आगे कर देश का जितना नुकसान इन दिनों किया जा रहा है ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। उम्मीद की जा सकती है कि जेपीसी की मांग पर अड़े विपक्ष को सुप्रीम कोर्ट की बनाई गई कमेटी पर विश्वास होगा। ये जांच साजिश की परतें खोलेगी और उम्मीद की जाती है कि भविष्य में ऐसी नापाक कोशिश से बचाने की तरकीब भी सुझाएगी।

-भारत एक्सप्रेस

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