इमरान खान और शहबाज शरीफ
दुनिया में जितने भी तरक्की करने वाले मुल्क हैं, उनकी तरक्की के लिए सिर्फ आर्थिक स्थिति या प्राकृतिक संसाधानों का बेहतर मैनेजमेंट और इस्तेमाल जिम्मेदार नहीं है। बल्कि जिम्मेदार है 4 बिंदू, पहला मुल्क के लीडर का रुतबा, दूसरा लीडर की दूरदृष्टि, तीसरा अवाम का साथ और चौथा सुशासन। अब अगर तरक्की को उदाहरण के पैमाने पर समझना हो, तो इसके लिए भारत और पाकिस्तान की पृष्ठभूमि बिल्कुल सटीक है। 1947 के बाद भारत को दूरदृष्टिवान नेता मिले, जनता ने भरोसा भी उन्हीं पर जताया, नतीजतन मजबूत लोकतंत्र के साथ भारत में सुशासन की नींव पड़ी और अब भारत तरक्की के अव्वल पायदान पर है। लेकिन पाकिस्तान की स्थिति ठीक उलट है। क्या पाकिस्तान एक बार फिर तबाही की ओर बढ़ रहा है? इसे सवाल नहीं, बल्कि चेतावनी की तरह देखने की जरूरत है, क्योंकि एक अशांत पाकिस्तान काफी हद तक हमारी शांति में भी खलल डालता है। ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान में जो हो रहा है, वो पहले कभी नहीं हुआ। ऐसा भी नहीं है कि जो कुछ हो रहा है और जिस तरह हो रहा है, वैसा पहले नहीं हुआ। इस बार जो बात अलग है वो हैं पाकिस्तान के हालात। पहले से ही दाने-दाने को मोहताज पाकिस्तान में ऐसा लग रहा है जैसे हर कोई एक-दूसरे के खून का प्यासा है। इमरान खान रोज पाकिस्तानी फौज, आईएसआई और शहबाज सरकार की पोल खोल रहे हैं। बदले में फौज, आईएसआई और सरकार इमरान की बलि चढ़ाने पर आमादा हैं। पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट इमरान के मंसूबों को हवा दे रहा है, तो देश का मौलाना वर्ग सरकार और फौज की शह पर इमरान के पीछे हाथ धोकर पड़ा है। एक तरफ इमरान के पीछे खड़ी देश की लाचार जनता रोज बदहाली के गर्त में धंसती जा रही है, दूसरी तरफ फौज और सरकार के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन के लिए इमरान, उनकी पार्टी पीटीआई के नेताओं और उनके सैकड़ों समर्थकों पर सेना के कड़े कानून के तहत मामला दर्ज किया गया है। पाकिस्तान की संघीय और प्रांतीय सरकारों ने अपनी सेना को इमरान खान और उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं के पीछे छोड़ दिया है, जिन पर हिंसा भड़काने का आरोप है। शुक्रवार को सेना इमरान के इन समर्थकों की तलाश के बहाने इमरान खान के घर भी पहुंच गई। हालांकि उसे वहां से खाली हाथ ही लौटना पड़ा लेकिन अब नेशनल अकाउंटेबिलिटी बोर्ड ने इमरान को भ्रष्टाचार के एक अन्य मामले में 23 जून को तलब कर लिया है। एक तरह से इमरान की चारों तरफ से घेराबंदी की जा रही है।
पाकिस्तान में ऐसी भी चर्चा है कि फौज ने इमरान के सामने दो शर्तें रखी हैं – वो अपने पूर्ववर्ती नवाज शरीफ और परवेज मुशर्रफ की तरह राजनीति छोड़कर लंदन भाग जाएं या पाकिस्तान में ही रहकर आर्मी एक्ट का सामना करें। दोनों ही सूरत में इमरान का करियर खत्म होना तय है। यदि वो पाकिस्तान से बाहर चले जाते हैं और फौज और सरकार उन्हें कायर और भगोड़ा करार दे देती है तो वो घरेलू राजनीति में वैसे ही अप्रासंगिक हो जाएंगे जैसा 2017 में पनामा पेपर्स के भ्रष्टाचार से जुड़े मामले में अयोग्य ठहराए जाने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ लंदन निर्वासित होने के बाद हुआ था। दूसरी तरफ अगर इमरान देश में ही रहकर आर्मी एक्ट का सामना करते हैं तो उनका जेल जाना तय है। तब 70 साल की उम्र में उन्हें अपनी बाकी जिंदगी जेल में रहकर बितानी होगी या उन्हें सजा-ए-मौत भी दी जा सकती है जैसा जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ हुआ था। वैसे इमरान और उनके समर्थकों पर आर्मी एक्ट के तहत मुकदमा चलाया जाना इस बात का एक और सबूत है कि पाकिस्तान में जिसकी लाठी, उसकी भैंस वाले हालात बनते जा रहे हैं वरना पाकिस्तान अगर संविधान से चल रहा है, वहां चुनी हुई सरकार है, कानून बनाने के लिए संसद है, कानूनों को अमल में लाने के लिए अदालतें हैं तो आर्मी एक्ट के तहत किसी पर मुकदमा कैसे चलाया जा सकता है? इसका परोक्ष संदेश तो यही निकलता है कि मौजूदा हालत में पाकिस्तान में संविधान का भी कोई मोल नहीं रह गया है।
हालात किस ओर जा रहे हैं इसका इल्म इमरान खान को भी है। तभी तो 1971 की जंग में पाकिस्तानी फौज के सरेंडर को देश का सबसे शर्मनाक वाकया और पूर्वी पाकिस्तान में फौज के जुल्मों को पाकिस्तान के बंटवारे का जिम्मेदार बताने के बाद अब इमरान के सुर बदल गए हैं। अब इमरान कहने लगे हैं कि सेना से लड़ने का उनका कोई इरादा नहीं है लेकिन देश का सत्तारूढ़ गठबंधन पीडीएम उन्हें सेना के खिलाफ खड़ा कर सेना के जरिए पीटीआई को खत्म करना चाहता है। सेना को लेकर इमरान का ये यू-टर्न बताता है कि इमरान अब राजनीति के कच्चे खिलाड़ी बिल्कुल नहीं रहे। इस विवाद में शुरू में पाकिस्तान की सेना का एक धड़ा इमरान के पीछे खड़ा दिखाई दे रहा था लेकिन 9 मई की हिंसा के बाद अब हालात बदल गए हैं। अब पाकिस्तानी सेना का कोई भी अफसर अपने आर्मी चीफ के खिलाफ खड़ा नहीं दिखना चाहता और इमरान को भी ये बात अच्छी तरह समझ आ चुकी है।
इसलिए अब वो शहबाज सरकार पर आक्रामक रवैया बरकरार रखते हुए सियासी लड़ाई को सियासी तरीके से लड़ते हुए विक्टिम कार्ड खेल रहे हैं। सत्तारुढ़ गठबंधन में शामिल पीपीपी जुल्फिकार अली भुट्टो को अपनी विरासत के रूप में पेश करती है। ऐसे में इमरान अपने सामने भुट्टो की फांसी वाले हालात होने के बावजूद खुद की तुलना मुजीब-उर-रहमान से करते हुए भुट्टो को कटघरे में खड़ा कर पीपीपी और शहबाज सरकार पर निशाना साध रहे हैं। अपने जुबानी हमलों में इमरान जुल्फिकार अली भुट्टो को एक ऐसा शातिर नेता बता रहे हैं जिसने सत्ता के लालच में तत्कालीन चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनी मुजीब-उर-रहमान की अवामी लीग के खिलाफ सशस्त्र बलों को खड़ा किया जो आगे चलकर देश के बंटवारे की वजह बना। इतिहास को वर्तमान से जोड़ते हुए इमरान अब अपने विरोधियों को अवाम के सामने भुट्टो वाली भूमिका में पेश कर रहे हैं और आरोप लगा रहे हैं कि पीटीआई की सत्ता में वापसी को रोकने के लिए शहबाज सरकार रोज नई-नई साजिशें रच रही है। इमरान इसे लंदन प्लान का नाम देकर पाकिस्तानी अवाम के बीच देश के एक और बंटवारे के हालात पैदा हो जाने का डर फैला रहे हैं।
बेशक निकट भविष्य में पाकिस्तान का कोई दूसरा विभाजन नहीं होने जा रहा है, लेकिन उसका तेज पतन निश्चित है क्योंकि बदली परिस्थितियों में पाकिस्तान के पहले से ही बिगड़े हालात और बदहाल होंगे तो गरीब भूखे मरेंगे, शहर रहने लायक नहीं रह जाएंगे और जो अमीर हैं वो अपना पैसा बटोरकर पश्चिमी देशों में पलायन कर जाएंगे। लेकिन मौजूदा सरकार की दिलचस्पी देश में फैल रहे तनाव को खत्म करने से ज्यादा इमरान और उनकी पार्टी पीटीआई को खत्म करने में है क्योंकि यह एकदम साफ है कि अगर पाकिस्तान में आज चुनाव होते हैं तो सत्ता में इमरान की वापसी तय है। इसलिए भी इमरान की पार्टी पीटीआई का पूरा जोर पाकिस्तान में जल्द आम चुनाव करवाने का है। पाकिस्तान में चुनाव हों या न हों, इमरान खान वापसी कर पाएं या नहीं – इन बातों से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। पाकिस्तान के लिए फिलहाल जरूरी ये है कि बीते साढ़े सात दशकों में जो गलत हुआ है उसे ठीक किया जाए।
-भारत एक्सप्रेस