Bharat Express

सियासी किस्से

31 मई 1964 को लाल बहादुर शास्त्री के रूप में देश को दूसरा प्रधानमंत्री मिल गया. हालांकि इन सब चर्चाओं के बीच शास्त्री ने कभी खुद को पीएम पद का दावेदार नहीं माना.

देश भर के तीन हजार सिनेमाघरों में मतदान प्रक्रिया पर एक डॉक्युमेंट्री का प्रदर्शन भी किया गया था जिसमें न सिर्फ वोट डालने के बारे में बताया जाता था बल्कि मतदाताओं के भी कर्तव्य बताए जाते थे.

सियासत में अदावत की रवायत सदियों पुरानी है. राजनीति की बुलंदियों पर पहुंचने वाले हर शख्स के अतीत की कहानियां ऐसी अदावतों से भरी होती हैं.

"13 महीने में हमने ऐसी रेखाएं खींची हैं, जो काल के कपाल पर अमिट रहेंगी, जिन्हें बदला नहीं जा सकता." ये बातें तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उस दौरान कही थीं.

23 दिसंबर 2004, ये दिन कांग्रेस के समर्पित कार्यकर्ताओं के लिए किसी काले दिन से कम नहीं था...ये वो तारीख थी जब राजनीति के एक अध्याय का अंत हो गया.

आजादी के बाद देश का ये पहला ऐसा चुनाव हुआ था, जब देश की जनता को पता चला था कि बूथ कैप्चरिंग या फिर बूथ लूट क्या होती है.