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सियासी किस्से

राजीव गांधी ने अमिताभ को 1984 के आम चुनाव में पूरी रणनीति के साथ इलाहाबाद सीट से उतारा और अमिताभ की लोकप्रियता के बीच हेमवती नन्दन बहुगुणा को हार का मुंह देखना पड़ गया था.

वह साल 1984 था, जब देश की सियासत में भूचाल आ गया था. इस दौरान प्रधानमंत्री गांधी (Indira Gandhi) की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी ने कांग्रेस पार्टी के साथ ही देश की कमान अपने हाथ में थामी थी.

उस जमाने में तमाम ऐसे नेता रहे हैं, जिनके राजनीति में आने की बाद उनकी संपत्ति नहीं बढ़ी, न ही उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों के लिए राजनीति तक पहुंच को आसान बनाया. यही नहीं तमाम ऐसे भी रहे, जिनके पास अपना कोई घर नहीं रहा, बल्कि वे ताउम्र किराये के मकानों में गुजर-बसर करते रहे.

चुनाव आयोग के आंकड़ों की मानें तो 1951-52 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में करीब 17.32 करोड़ मतदाता देश में थे, जिसमें से 85 फीसदी मतदाता साक्षर नहीं थे.

यूपी के मैनपुरी संसदीय क्षेत्र में करीब ढाई दशक से भी अधिक समय से सपा का राज रहा है. इसे मुलायम सिंह का गढ़ कहा जाता है. इसके चलते यह हर चुनाव में सुर्खियों में रहता है.

Lok Sabha Elections: 2024 के लोकसभा चुनावों की मतदान अवधि दूसरी सबसे लंबी अवधि है. इस बार के चुनाव 44 दिनों और 7 चरणों में संपन्न होंगे.

Siyasi Kissa: टीएन शेषन अक्सर कहा करते थे कि "मैं नाश्ते में नेताओं को खाता हूं." उनके बारे में एक और बात कही जाती थी कि नेता या तो भगवान से डरते हैं या फिर शेषन से.

31 मई 1964 को लाल बहादुर शास्त्री के रूप में देश को दूसरा प्रधानमंत्री मिल गया. हालांकि इन सब चर्चाओं के बीच शास्त्री ने कभी खुद को पीएम पद का दावेदार नहीं माना.

देश भर के तीन हजार सिनेमाघरों में मतदान प्रक्रिया पर एक डॉक्युमेंट्री का प्रदर्शन भी किया गया था जिसमें न सिर्फ वोट डालने के बारे में बताया जाता था बल्कि मतदाताओं के भी कर्तव्य बताए जाते थे.

सियासत में अदावत की रवायत सदियों पुरानी है. राजनीति की बुलंदियों पर पहुंचने वाले हर शख्स के अतीत की कहानियां ऐसी अदावतों से भरी होती हैं.