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Siyasi Kissa: गन…गोली और गुंडों की बदौलत देश में कब हुई थी पहली बूथ कैप्चरिंग?

आजादी के बाद देश का ये पहला ऐसा चुनाव हुआ था, जब देश की जनता को पता चला था कि बूथ कैप्चरिंग या फिर बूथ लूट क्या होती है.

Siyasi Kissa

सांकेतिक तस्वीर

लोकसभा चुनाव को लेकर देश का सियासी पारा हाई हो चुका है. हर गली-मोहल्ले से लेकर चौक-चौराहे और पान की दुकान से लेकर चाय की दुकानों पर बस चुनाव की चर्चा हो रही है. इन चर्चाओं में स्वतंत्र भारत के इतिहास में हुए अब तक चुनावों की कहानियां और किस्से अतीत से निकलकर वर्तमान की सियासी बातों का हिस्सा बन रहे हैं. कुछ ऐसी ही एक घटना देश में आजादी के बाद हुए दूसरे लोकसभा चुनाव के दौरान की है. जिसने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींच लिया था. यह चुनावी घटना बिहार की धरती पर हुई थी. जिला था बेगुसराय और साल था 1957.

देश में पहली बार बूथ कैप्चरिंग की गई

दरअसल, आजादी के बाद देश में लोकसभा के चुनाव पहली बार 1951 में हुए थे. जिसमें जीत दर्ज कर जवाहर लाल नेहरू देश के पहले पीएम बने थे. 5 साल तक चली इस सरकार के बाद दोबारा 1957 में आम चुनाव हुए. 24 फरवरी 1957 से शुरू हुआ ये चुनाव 9 जून 1957 को संपन्न हुआ. ये चुनाव देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन की निगरानी में कराया गया था. जिसमें हिंसा भी हुई और देश में पहली बार बूथ कैप्चरिंग की गई. जिसने पूरे देश की सियासत को हिलाकर रख दिया था.

पहली बार मतदान के बाद लगाई जाने वाली स्याही का इस्तेमाल

आजादी के बाद देश का ये पहला ऐसा चुनाव हुआ था, जब देश की जनता को पता चला था कि बूथ कैप्चरिंग या फिर बूथ लूट क्या होती है. इस घटना से लोगों को ये भी पता चला था कि जनमत न मिलने पर ऐसा करके भी उम्मीदवार विजयी हो सकता है. इसी चुनाव में पहली बार मतदान के बाद लगाई जाने वाली स्याही का इस्तेमाल किया गया था. इसके साथ ही कम लागत में बनाए गए किफायती बैलेट बॉक्स का इस्तेमाल भी इसी चुनाव में किया गया था.

पहला वोटर्स जागरूकता अभियान चलाया गया

आपको जानकर हैरानी होगी कि इस चुनाव से पहले वोटर्स को जागरूक करने के लिए पहला वोटर्स जागरूकता अभियान चलाया गया था. सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने ‘इट इज़ योर वोट’ नाम से एक फिल्म बनाई। जिसे 13 भारतीय भाषाओं में अनुवाद करके देश भर के 74000 स्क्रीन पर फिल्माया गया.

अब बात करते हैं इस चुनाव में हुए बूथ कैप्चरिंग की. 10 साल पहले आजाद हुए एक देश के लोगों ने पहली बार देखा और करीब से जाना कि बूथ कैप्चरिंग कैसे होती है. बिहार का बेगूसराय जिला जितना आज विख्यात है, उससे कहीं ज्यादा आजादी के बाद उस दौरान भी था. फर्क था तो अपराध, माफियाराज और गुंडागर्दी का. बेगूसराय जिला मुख्यालय से करीब 4 मील की दूरी पर स्थित रचियाही इलाका है.

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1957 में जब आम चुनाव हो रहे थे, तो इसी रचियाही में पोलिंग बूथ बनाया गया था. तब ये बूथ बेगूसराय विधानसभा के तहत आता था. अब रचियाही मटिहानी खुद विधानसभा है. उस दौरान चार गावों के लोग यहां पर वोटिंग करते थे. जिस दिन वोटिंग हो रही थी, उसी दिन मचहा, राजापुर और आकाशपुर के वोटर्स वोट देने के लिए रचियाही जा रहे थे. तभी अचानक असलहे और लाठी-डंडों के साथ करीब दो दर्जन लोग बूथ पर पहुंच गए और उन्होंने लोगों को वोट डालने से रोक दिया.

जब दूसपे पक्ष के लोगों ने इसका विरोध किया तो मारपीट शुरू हो गई. इसी दौरान मौके का फायदा उठाकर एक पक्ष पोलिंग बूथ में घुसकर फर्जी मतदान करने लगा. बताया जाता है कि ये लोग तत्कालीन कांग्रेस उम्मीदवार सरयुग प्रसाद के समर्थक थे. जब बवाल बढ़ा तो हमला करने वाले दबंगों ने बैलेट बॉक्स को उठाकर कुएं में फेंक दिया था. इस घटना की जानकारी अगले दिन लोगों को पता चली. जिसके बाद पूरे देश में इसकी चर्चा शुरू हो गई. यहीं से बूथ कैप्चरिंग की शुरुआत हुई, जो आगे जाकर एक विकट समस्या के तौर पर चुनाव आयोग के सामने खड़ी हुई.

माफिया कामदेव सिंह ने की थी बूथ कैप्चरिंग

अब सवाल उठता है कि आखिर इस बूथ कैप्चरिंग के पीछे किसका हाथ था, जिसने पूरे देश में तहलका मचा दिया था. तो स्थानीय लोगों का कहना है कि कांग्रेस नेता सरयुग प्रसाद के कार्यकर्ताओं ने बूथ पर कब्जा किया था. सरयुग प्रसाके उस दौर के माफिया कामदेव सिंह के साथ अच्छे संबंध थे और कामदेव ने ही सरयुग प्रसाद के इशारे पर बूथ कैप्चरिंग करवाई थी.

-भारत एक्सप्रेस

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