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Sikh: गोल्डन टेंपल हों या फिर बंगला साहिब का ‘लंगर’….सिखों के लिए परोपकार ही धर्म

Sikh:संसार के लगभग सभी धर्मों में मानव सेवा को प्रधान समझा गया है. लेकिन सिख समुदाय के लिए ‘नि:स्वार्थ सेवा’ और ‘सिमरन’ का पालन अनिवार्य है.

लंगर की तस्वीर

लंगर की तस्वीर

Sikh:संसार के लगभग सभी धर्मों में मानव सेवा को प्रधान समझा गया है. लेकिन सिख समुदाय के लिए ‘नि:स्वार्थ सेवा’ और ‘सिमरन’ का पालन अनिवार्य है. सिख धर्म परोपकार को दर्शाती है, या यूं कहें कि सिखों के लिए मानव सेवा ही धर्म है. सिख समुदाय की भावना सिर्फ आत्मा भर की सेवा में निहित है. कहीं न कहीं इसी विचारधारा ने दुनियाभर के गुरुद्वारों में पाए जाने वाले ‘लंगर’ या को जन्म दिया है. ‘लंगर’ में जाति, पंथ, लिंग या सामाजिक स्थिति की परवाह किए बिना सभी को मुफ्त शाकाहारी भोजन परोसते हैं. सिख लंगर के लिए अपने स्वेच्छा से काम करते हैं. ‘सेवादार’ के रूप में जाने जाने वाले ये स्वयंसेवक एकता और सेवा की भावना को बढ़ावा देते हुए लंगर के बाद सफाई भी करते हैं.

 

गोल्डन टेंपल में कभी नहीं रुकता लंगर

अमृतसर का स्वर्ण मंदिर इसका एक बेहतरीन उदाहरण है. सबसे बड़ी सामुदायिक रसोई होने के कारण, स्वर्ण मंदिर का लंगर प्रतिदिन लगभग एक लाख लोगों को भोजन कराता है. यहां भोजन का कोई निश्चित समय नहीं है; जब जो लोग यहां पहुंच जाए, उन्हें भर पेट भोजन कराया जाता है. सबसे बड़ी बात ये की यहां लंगर कभी नहीं रुकता. इस पवित्र नगरी में कोई भी भूखा नहीं सोता.

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ऐसा ही एक और ‘लंगर’ नई दिल्ली में गुरुद्वारा बंगला साहिब में परोसा जाता है. बताया जाता है कि इस मंदिर में प्रतिदिन 50-75 हजार लोग भोजन करते हैं. यह सुबह 5 बजे शुरू होता है और रात के 2 बजे तक जारी रहता है. यहां सिख समुदाय के लोग नि;स्वार्थ सेवा करते हैं. बता दें कि इन ‘लंगरों’ में परोसा जाने वाला भोजन न केवल उंगली चाटने वाला होता है, बल्कि पौष्टिक भी होता है. इन भोजनों को तैयार करने के लिए सेवादार लगे होते हैं. किचन साफ-सुथरे होते हैं. लोग चौबीसों घंटे काम करते हैं, अथक परिश्रम करते हैं, वो भी दूसरों को खिलाने के लिए. बदले में मिलता है तो धर्म और आशीर्वाद.

-भारत एक्सप्रेस

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