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नवरात्रि में इस स्त्रोत के पाठ से दूर होते हैं समस्त कष्ट, सिद्ध है इसके सभी शब्द, मां भगवती खुद करती हैं रक्षा

Chaitra Navratri 2023: इस स्तोत्र का पाठ मनुष्य के जीवन में आ रही समस्या और हर तरह की अड़चनों को दूर करने वाला है.

Navratri ashtmi navmi tithi

Chaitra Navratri 2023: 22 मार्च से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होने वाली है. ये 9 दिन पूजा-पाठ और तंत्र-मंत्र के लिए खास माने जाते हैं. 30 मार्च को इस नवरात्रि का समापन होगा. इन 9 दिनों में अलग-अलग दिन मां दुर्गा के 9 रूपों का पूजा-आराधना होती है. माना जाता है कि इन 9 दिनों में की गई पूजा पाठ का विशेष फल मिलता है.

नवरात्रि के नौ दिनों में आठवां और नौवां दिन काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. इस बार 29 मार्च को पड़ने वाली महाअष्टमी के दिन मां महागौरी की पूजा होती है. इस दिन को दुर्गाष्टमी भी कहते हैं. माना जाता है कि अगर किसी कारणवश नवरात्रि के नौ दिनों तक व्रत न कर पाएं तो पहले दिन और अष्टमी या नवमी के दिन व्रत रखें.

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र है सिद्ध

इसके अलावा नवरात्रि के अंतिम दो दिनों में इस स्त्रोत का पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है. यह है सिद्ध कुंजिका स्तोत्र. इसका पाठ जीव के लिए परम कल्याणकारी है. इस स्तोत्र का पाठ मनुष्य के जीवन में आ रही समस्या और हर तरह की अड़चनों को दूर करने वाला है. कहा जाता है कि मां दुर्गा के इस स्तोत्र का जो मनुष्य कठिन से कठिन परिस्थितियों में पाठ करता है. उसके समस्त कष्टों का अंत होता है. प्रस्तुत है श्रीरुद्रयामल के गौरीतंत्र में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र-

शिव उवाच

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजाप: भवेत्।।1।।

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।2।।

कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।3।।

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।।4।।

अथ मंत्र :-

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।”

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।।इति मंत्र:।।

नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन।।1।।

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन।।2।।

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।।3।।

क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।।4।।

विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण।।5।।

धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु।।6।।

हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।7।।

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।। 8।।

सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे।।
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।

अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।

।इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्।

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