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बिहार में इस घाट पर मां सीता ने किया था छठ का व्रत, आज भी मौजूद हैं निशान

मान्यताओं के अनुसार मां सीता ने मुंगेर जिले के बबुआ घाट के पश्चिमी तट पर छठ पूजा की थी, जहां उनके चरण चिन्ह आज भी मौजूद हैं.

chhath puja

छठ पूजा

Chhath Puja 2023: छठ के महापर्व की शुरुआत हो चुकी है. छठ पर्व के दूसरे दिन खरना होता है. खरना के दिन व्रत रखने वाली महिलाएं केवल एक ही समय शाम में मीठा भोजन करती है. खरना वाले दिन इस दिन मुख्य रूप से चावल और गुड़ की खीर का प्रसाद बनाया जाता है, जिसे मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी जलाकर बनाया जाता है. बता दें कि छठ पर्व के चारों दिनों का बहुत महत्व माना जाता है. इस महापर्व को बिहार के अलावा यूपी और झारखंड के साथ – साथ इन क्षेत्रों से ताल्लुक रखने वाले लोग पूरे विश्व समुदाय में मनाते हैं.

मुंगेर के घाट पर मां सीता ने किया था पहला छठ व्रत, आज भी मौजूद हैं निशान

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां सीता ने भी छठ का व्रत रखा था. कहा जाता है कि मां सीता अपनी पहली छठ पूजा बिहार के मुंगेर जिले में गंगा नदी के तट पर की थी. वाल्मीकि और आनंद रामायण के अनुसार भगवान राम जब 14 वर्ष वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध से पाप मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया. इसके लिए मुद्गल ऋषि को आमंत्रण दिया गया था, लेकिन मुद्गल ऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया, जिसके बाद मुद्गल ऋषि ने माता सीता को सूर्य की उपासना करने की सलाह दी थी. इसके बाद मां सीता ने मुंगेर जिले के बबुआ घाट से तीन किलोमीटर गंगा के बीच में पर्वत पर ऋषि मुद्गल के आश्रम में मां सीता ने छठ पूजन किया था. आज भी इस जगह मां सीता के चरण चिन्ह मौजूद हैं, जिसके दर्शन करने के लिए भक्तों की भीड़ लगी रहती है.

मां सीता के चरण चिन्ह पर बना है मन्दिर

मान्यताओं के अनुसार मां सीता ने मुंगेर जिले के बबुआ घाट के पश्चिमी तट पर छठ पूजा की थी, जहां उनके चरण चिन्ह आज भी मौजूद हैं. मां सीता के चरण बड़े से पत्थर पर अंकित हैं. यहां अब एक विशाल मंदिर बनाया गया है. ऐसा कहा जाता है किमुद्गल ऋषि के कहने पर ही माता सीता ने व्रत रखा था.

मौजूद निशान बयां करते हैं सच्चाई

लोक मान्यताओं के अनुसार, माता सीता ने कार्तिक मास की षष्ठी तिथि पर भगवान सूर्य देव की उपासना मुंगेर के बबुआ गंगा घाट के पश्चमी तट पर ही की था. यहां मौजूद पत्थरों पर आज भी मां सीता के व्रत रखने के अस्तित्व मिलते हैं. यहां सूप, डाला और लोटे के निशान भी बने हुए हैं. यहां बनाए गये मंदिर का गर्भगृह साल में छह महीने तक गंगा के गर्भ में समाया रहता है. मां सीता के चरणों के दर्शन करने के लिए यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं.

-भारत एक्सप्रेस

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