यज्ञ
Magh Mela 2023: माघ मास में प्रयागराज में लगने वाला माघ मेले की महत्ता इस बात से बता चलती है कि इस पूरे महीनें देश दुनिया से लाखों की संख्या में लोग पवित्र संगम तट पर आस्था की डुबकी लगाने चले आते हैं. कहा जाता है कि इस अवधि में देवता भी ब्रह्मा द्वारा ब्रह्मांड के निर्माण का जश्न मनाने संगम के तट पर आते हैं.
लगभग डेढ़ माह तक चलने वाले इस उत्सव में स्नान, ध्यान, यज्ञ, प्रार्थना और अनेक धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं. यही कारण है कि प्रयागराज के मेला स्थल त्रिवेणी संगम को तीर्थ स्थलों के राजा तीर्थराज के नाम से भी जाना जाता है.
मेला काल में सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग चारो युग
माघ मेले के डेढ़ माह की अवधि को 4 युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग के बराबर माना जाता है. माघ मेले का उल्लेख महाभारत और कई धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है. संगम में स्नान को लेकर मान्यता है कि यह लोगों को पुनर्जन्म के चक्र से निकालते हुए मोक्ष प्राप्त कराने में मदद करता है.
माघ स्नान में मकर सक्रांति और अमावस्या के दिन को बहुत पवित्र माना जाता है. माघ मास में स्नान के अलावा कुछ अन्य चीजों की भी काफी धार्मिक मान्यता है.
शैय्या दान समारोह
कल्पवास करने वाले लोगों के लिए शैय्या दान समारोह बेहद ही खास होता है. मान्यता है कि इस दिन दैवीय शक्तियों की कृपा प्राप्त करने के लिए शैय्या दान नाम के एक समारोह में अन्य सामानों के साथ अपना बिस्तर भी दान करना होता है.
हवन से चले आते हैं देवता
माघ मास में सूर्य देव की पूजा और यज्ञ की विशेष मान्यता है. इस माह में संत और भिक्षु, देवताओं को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ या हवन करते हैं. इस दौरान किए जाने वाले मंत्रोच्चारण बेहद ही खास होते हैं. इसके अलावा माघ माह में देवताओं के धरती पर संगम स्नान के लिए आने की मान्यता के चलते उन्हें फल, मिठाई और फूल आदि सामाग्रियों से प्रसन्न किया जाता है. गंगा किनारे यज्ञ करने की भी विशेष मान्यता है.
इसे भी पढ़ें: Makar Sankranti: मकर संक्रांति के दिन तिल के महत्व की है पौराणिक कथा, सूर्यदेव ने दिया था शनिदेव को यह वरदान
भगवान सूर्य के आशीर्वाद की कामना
मकर राशि में सूर्यदेव के होने के कारण माघ मास में उगते सूर्य को अर्घ्य देने की विशेष मान्यता है. इस माह गंगा नदी में डुबकी लगाने के बाद सूर्य भगवान की प्रार्थना की जाती है.
अन्नदान से बनेगी किस्मत
इस माह जरूरतमंद लोगों को अन्न का दान और उन्हें भोजन कराने के अलावा गरीबों को उनके भार के अनुसार तिल और अनाज देने की रस्म भी होती है.