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Navratri: चैत्र नवरात्रि में क्यों है विंध्याचल की महिमा, जानें यहां की जाने वाली त्रिकोण यात्रा से जुड़ी विशेष मान्यता

Navratri: पुराणों में विंध्य क्षेत्र का महत्व तपोभूमि के रूप में वर्णित है, यहां तीन महाशक्तियां एक साथ विराजमान हैं.

Ma vindyawasini devi

Navratri: भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म के लिए विशेष महत्व रखने वाले वाराणसी के ही बगल में मिर्जापुर जनपद में एक बेहद ही प्रसिद्ध तथा पौराणिक मान्यता वाला मां विंध्यवासिनी का मंदिर है. यह मन्दिर भारत के प्रमुख 51 शक्तिपीठों में से एक है और यहां देश के हर हिस्से से श्रद्धालु दर्शन पूजन करने आते हैं. प्रयागराज और काशी के मध्य विन्ध्य पर्वत श्रृंखला पर स्थित इस मन्दिर की मान्यता है कि यहां से कोई भी खाली हाथ नहीं जाता है.

विंध्य क्षेत्र में विराजमान हैं तीनों शक्तियां

पुराणों में विंध्य क्षेत्र का महत्व तपोभूमि के रूप में वर्णित है, यहां तीन महाशक्तियां एक साथ विराजमान हैं. इन्हें महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती कहा जाता है. ये तीनों देवियां ईशान कोण पर विराजमान हैं, जिसे त्रिकोण भी कहा जाता है. मान्यताओं के अनुसार यह इस धरा का इकलौता स्थान है, जहां पर तीनों देवियां एक साथ अपने भक्तों का कल्याण करती हैं. यहां महाकाली के रूप में काली खोह, महालक्ष्मी के रूप में विंध्यवासिनी, महासरस्वती के रूप में मां अष्टभुजा विराजमान हैं.

मां के इस धाम में त्रिकोण यात्रा का विशेष महत्व होता है, जिसमें लघु और बृहद त्रिकोण यात्रा की जाती है. लघु त्रिकोण यात्रा में एक मंदिर परिसर में मां के तीन रूपों के दर्शन होते हैं. वहीं दूसरी ओर बृहद त्रिकोण यात्रा में तीन अलग – अलग रूपों में मां विंध्यवासिनी, मां महाकाली व मां अष्टभुजी के दर्शन होते हैं. 12 किलोमीटर में फैले दुर्गम पहाड़ियों के रास्तों से परिक्रमा करना भक्तों के लिए एक महान अनुभूति है. लोग नंगे पांव त्रिकोण यात्रा करते हैं. ऐसी मान्यता है की कालांतर में सभी देवी देवताओं ने भी त्रिकोण परिक्रमा की थी.

शास्त्रों में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि आदिशक्ति देवी कहीं भी पूर्णरूप में विराजमान नहीं हैं. शास्त्रों के अनुसार, अन्य शक्तिपीठों में देवी के अलग – अलग अंगों की पूजा होती है जबकि विंध्याचल ही एकमात्र ऐसा स्थान है जहां देवी के पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं.

नवरात्रि में मां यहां करती हैं वास

मान्यता है कि नवरात्र के दिनों में मां मन्दिर की पताका पर वास करती हैं ताकि किसी वजह से मंदिर में न पहुंच पाने वालों को भी मां के सूक्ष्म रूप के दर्शन हो जाएं. नवरात्र के दिनों में इतनी भीड़ होती है कि अधिसंख्य लोग मां की पताका के दर्शन करके ही खुद को धन्य मानते हैं.

9 दिनों तक चलने वाले इस पर्व में भक्तजन मां के अलग – अलग नौ स्वरूपों की पूजा – अर्चना करते हैं. इन दिनों भक्त माता के लिए व्रत रखते हैं और घर पर कलश स्थापना करते हैं. नवरात्र में मां के विशेष श्रृंगार के लिए मंदिर के कपाट दिन में चार बार बंद किए जाते हैं. सामान्य दिनों में मंदिर के कपाट रात 12 बजे से भोर 4 बजे तक बंद रहते हैं. मां विंध्यवासिनी अपने अलौकिक प्रकाश के साथ यहां नित्य विराजमान रहती हैं.

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अलग-अलग काल में मां विंध्यवासिनी का जिक्र

मां विंध्यवासिनी का उल्लेख भारत के कई प्राचीन शास्त्रों में किया गया है. जिनमें महाभारत, वामन पुराण, मार्कंडेय पुराण, मत्स्य पुराण, देवी भागवत, हरिवंश पुराण, स्कंद पुराण और राजा तरंगिनी इत्यादि शामिल हैं. देवी दुर्गा और महिषासुर युद्ध विंध्याचल में ही हुआ माना जाता है. यही कारण है कि देवी विंध्यवासिनी का एक और नाम महिषासुर मर्दिनी भी है. यह भी कहा जाता है कि भगवान राम अपने वनवास अवधि के दौरान मां सीता और भाई लक्ष्मण के साथ विंध्याचल और आसपास के क्षेत्रों में आए थे और उन्होंने मां विंध्यवासिनी की गुप्त साधना भी की थी. महाभारत के विराट पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर देवी की स्तुति करते हुए कहते हैं ‘विन्ध्येचैवनग-श्रेष्ठे तवस्थानंहि शाश्वतम्.’ हे माता! पर्वतों में श्रेष्ठ विंध्याचलपर आप सदैव विराजमान रहती हैं. पद्मपुराण में विंध्याचल-निवासिनी इन महाशक्ति को विंध्यवासिनी के नाम से संबंधित किया गया है.

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