रक्षा बंधन 2024 (सांकेतिक तस्वीर).
Raksha Bandhan 2024 Tilak Niyam: रक्षा बंधन का त्योहार भाई-बहन के लिए अत्यंत खास होता है. यह त्योहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को दर्शाता है. सावन की पूर्णिमा के दिन रक्षा बंधन का त्योहार मनाने की परंपरा है. पंचांग के अनुसार, इस साल रक्षा बंधन का त्योहार सोमवार 19 अगस्त को यानी आज मनाया जा रहा है. राखी बांधने के लिए दोपहर 1 बजकर 30 मिनट से लेकर 4 बजकर 31 तक उत्तम मुहूर्त है. इसके बाद प्रदोष काल में भी राखी बांधी जा सकती है.
प्रदोष काल में राखी बांधने के लिए शुभ समय 7 बजकर 3 मिनट से लेकर रात 9 बजकर 19 मिनट तक है. शास्त्रों में मध्याह्न (दोपहर) से लेकर सूर्यास्त से पहले तक भद्रा रहित शुभ मुहूर्त में राखी बांधना शुभ फलदायी माना गया है. रक्षा बंधन के दिन राखी बांधने के दौरान तिलक लगाना जरूरी रस्म माना गया है. सनातन धर्म में तिलक को शुभता का प्रतीक माना गया है. ऐसे में आइए जानते हैं कि किन तीन चीजों से भाई के माथे पर तिलक लगाना शुभ रहेगा.
केसर
धार्मिक कार्यों और पूजा-पाठ के दौरान तिलक लगाने के लिए केसर का प्रयोग किया जाता है. हिंदू धर्म में केसर को शुद्धता का प्रतीक माना गया है. इसलिए, रक्षा बंधन के दिन भाई के माथे पर केसर का तिलक लगाना शुभ रहेगा. माना जाता है कि केसर का तिलक लगाने से सुख-शांति और समृद्धि आती है. इसके अलावा केसर का संबध गुरु ग्रह से भी है. ऐसे में केसर का तिलक लगाने से बृहस्पति देव की विशेष कृपा प्राप्त होती है.
कुमकुम
कुमकुम को विजय का प्रकीक माना जाता है. कहा जाता है कि कुमकुम का तिलक लगाने से जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती है. इसके साथ ही हर कार्यों में तरक्की भी होती है. ऐसे में रक्षा बंधन के दिन भाई के माथे पर कुमकुम का तिलक लगाना हर प्रकार से शुभ रहेगा.
हल्दी
ज्योतिष शास्त्र में हल्दी को सुख-समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक माना गया है. रक्षा बंधन के दिन भाई के माथे पर हल्दी का तिलक लगाने से उनके जीवन में सृख-समृद्धि आएगी.
केसर का तिलक लगाने के लिए मंत्र
केसर का तिलक लगाने के लिए ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ मत्र का उच्चारण करना शुभ माना गया है. इस मंत्र से केसर का तिलक लगाने से विशेष लाभ होता है.
कुमकुम और हल्दी का तिलक लगाने के लिए मंत्र
केशवानन्न्त गोविन्द बाराह पुरुषोत्तम
पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु
कांति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम्
ददातु चंदनं नित्यं सततं धारयाम्यहम्
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