भगवान विष्णु
Shattila Ekadashi 2023: हिंदू धर्म में एकादशी के दिन का विशेष महत्व है. ऐसे में धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण आज माघ माह के कृष्ण पक्ष को पड़ने वाली एकादशी को पूजा पाठ के लिए काफी खास माना जाता है. इस पुण्यदायी एकादशी को षटतिला एकादशी कहा जाता है.
षटतिला एकादशी के नाम के अनुरुप ही इस दिन तिल का दान और इससे बनी वस्तुओं का उपयोग करना शुभ माना जाता है. आज भगवान विष्णु की कथा सुनने से घर परिवार में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. षटतिला एकादशी के व्रत से व्यक्ति के परिवार में सुख शांति बनी रहती है. वहीं भगवान विष्णु की कृपा से सभी तरह के भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है.
मान्यता है कि व्रत के पुण्य प्रभाव से इंसान को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. आज के दिन भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए पूरे श्रद्धानुसार व्रत रखने का विधान है. भगवान विष्णु की कृपा से इस एकादशी का व्रत रखने वाले को जीवन में आ रही परेशानियों और जटिल रोगों मुक्ति मिलती है. वहीं आर्थिक स्थिति में सुधार होता है.
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इस विधि से करें षटतिला एकादशी के दिन पूजा
षटतिला एकादशी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठते हुए भगवान विष्णु का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें. इस दिन की पूजा के लिए घर के मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर की स्थापना करें. गंगाजल में तिल मिलाकर भगवान विष्णु की तस्वीर या मूर्ति पर पीले रंग का पुष्प चढ़ाएं और दीप धूप से उनकी आरती करें.
इस दिन भगवान विष्णु के सहस्त्रनाम का पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है. भगवान के भोग के लिए इस दिन तिल से बनी चीजों का उपयोग करें. षटतिला एकादशी के दिन रात्रि में जागरण और हवन करने का भी धार्मिक विधान है. एकादशी के अगले दिन सुबह उठते हुए भगवान विष्णु को भोग लगाए और ब्राम्हणों को भोजन कराने के बाद व्रत का पारण करें. इस दिन तिल का दान करना उत्तम फलदायक माना गया है.
षटतिला एकादशी व्रत कथा
षटतिला एकादशी कि दिन की धार्मिक कथा के अनुसार बहुत समय पहले एक ब्राह्मणी थी. वह स्वभाव से बेहद धार्मिक थी. नित्य नियम से पूजा पाठ किया करती थी. श्रद्धापूर्वक सभी व्रत रखती थी, बावजूद इसके वह कभी कुछ दान नहीं किया करती थी. एक बार भगवान विष्णु उसकी श्रद्धा से भाव से प्रसन्न होकर एक ब्राह्मण का वेश धारण करते हुए उसके घर भिक्षा मांगने पंहुचे. अपने दर पर आए भगवान विष्णु को ब्राह्मणी ने दान में एक मिट्टी का ढेला पकड़ा दिया.
मृत्यु के बाद जब ब्राह्मणी बैकुंठ लोक पहुंची तो वहां उसे रहने के लिए एक विशाल और भव्य महल मिला. परंतु महल में खाने पीने का कोई सामान नहीं था. इस पर ब्राह्मणी ने भगवान विष्णु से पूछा कि मैंने तो जी अपनी पूरी जिंदगी इतना धर्म कर्म किया. लेकिन बदले में मुझे ऐसा फल मिल रहा है.
भगवान भगवान विष्णु ने उसे बताया कि तुम्हारे सच्चे मन से व्रत और पूजा-पाठ करने के फलस्वरूप ही तुम्हें बैकुंठ में इतना अच्छा जीवन मिला. लेकिन पूजा-पाठ के अलावा तुमने कभी भी अन्न का एक दाना तक किसी को दान में नहीं दिया. यही कारण है कि आज तुम्हारे पास खाने के लिए अन्न का एक दाना नहीं है. अगर तुम अपनी इस गलती का प्रायश्चित करना चाहती हो तो पवित्र षटतिला एकादशी का व्रत करों और उसी दिन तिल का दान करो. इसके बाद तुम्हें अनाज की कभी कमी नहीं होगी.