Jitiya Vrat Katha: हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका (जितिया व्रत) व्रत पड़ता है. वहीं इस व्रत को जिउतिया भी कहा जाता है. यह त्योहार उत्तर प्रदेश खास तौर पर पूर्वी उत्तर प्रदेश और राज्य के कुछ अन्य हिस्सों में तो बिहार, झारखंड के अलावा देश के कुछ और भाग में मनाया जाता है. साल 2023 में जीवित्पुत्रिका व्रत 6 अक्टूबर को पड़ रहा है. संतान की दीर्घायु के लिए इस व्रत को रखा जाता है. इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं गंधर्व राजा जीमूतवाहन की पूजा के साथ जितिया व्रत की कथा सुनती हैं.
जितिया व्रत कथा
जितिया व्रत कथा के मुताबिक गंधर्वों के राजकुमार जीमूतवाहन जो अपने परोपकार और पराक्रम के लिए जाने जाते थे. जीमूतवाहन के पिता युवाकाल में ही उन्हें राजसिंहासन पर बिठाकर तपस्या करने के लिए वन में चले गए. लेकिन उनका मन भी मन सत्ता में नहीं लगा. ऐसे में अपने भाइयों को राज्य की जिम्मेदारी सौंप कर वे युवाकाल में ही राजपाट छोड़कर वन में चले गए. जीमूतवाहन का विवाह मलयवती नाम की कन्या से हुआ.
एक दिन जंगल में जब वे घूम रहे थे तभी उनकी मुलाकात एक वृद्ध महिला (नागमाता) से हुई. उनको परेशान और डरा हुआ देखकर जीमूतवाहन ने इसका कारण पूछा तो उस वृद्धा ने बताया कि नागों ने पक्षीराज गरुड़ को इस बात का वचन दिया है कि वे प्रत्येक दिन एक नाग को उनके आहार के रूप में उन्हें देंगे. नाग माता ने विलाप करते हुए बताया कि उसका एक बेटा है, जिसका नाम शंखचूड़ है. आज उसकी बारी है पक्षीराज गरुड़ के पास आहार के रूप में जाने की.
वृद्धा की हालत देख कर जैसे जीमूतवाहन ने जीमूतवाहन ने नागमाता को वचन दिया कि वे उनके पुत्र के प्राणों की रक्षा करेंगे. जीमूतवाहन खुद को नाग के बेटे की जगह कपड़े में लिपटकर उस शिला पर जाकर लेट गए, जहां से गरुड़ नागों को उठाता है. गरुड़ के पंजें में दबोचने पर उसने जीमूतवाहन के कराहने की आवाज सुनी गरुड़ एक पहाड़ पर रुक गए, जहां जीमूतवाहन ने उन्हें पूरी सच्चाई बताई. जिसके बाद गरुड़ ने जीमूतवाहन के परोपकार भाव को देखकर उन्हें छोड़ दिया. वहीं उसने नागों को न खाने का भी वचन भी दिया. इस तरह से जीमूतवाहन ने नागों की रक्षा की. माना जाता है कि तभी से तभी से संतान की सुरक्षा और उन्नति के अलावा जितिया व्रत में जीमूतवाहन की पूजा शुभ फलदायी मानी गई है.
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पक्षीराज गरुड़ जीमूतवाहन के साहस और परोपकार भाव को देखकर प्रसन्न हो गए, जिस वजह से उन्होंने जीमूतवाहन को प्राणदान दे दिया। साथ ही उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि वे अब किसी नाग को अपना आहार नहीं बनाएंगे। जानकारी के लिए बता दें कि तभी से संतान की सुरक्षा और उन्नति के लिए जीमूतवाहन की पूजा का विधान है, जिसे लोग आज जितिया व्रत के नाम से भी जानते हैं.