बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर
Haridwar: उत्तराखंड के हरिद्वार में बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर को आदिकाल से ही महाकाल भोलेनाथ धाम के रूप में जाना जाता है. बताया जाता है कि इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग हैं. मंदिर की मान्यता के चलते यहां दूर-दूर से श्रद्धालु पूजा अर्चना के लिए आते हैं.
प्राचीन बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर से जुड़ी कहानियों के अनुसार यहां भोले नाथ को पति रूप में पाने के लिए माता गौरी ने कई हजार साल तपस्या की थी. मंदिर में कई ऐसे साक्ष्य मौजूद हैं, जो इसकी प्राचीनता और इससे जुड़ी मान्यताओं को बल देते हैं. माना जाता है कि यहां आने वाले की हर मुराद पूरी होती है. इसके अलावा विवाह न होने या विवाह में विलंब होने पर भी लोग इस मंदिर में अपनी कामना लेकर आते हैं.
इन उपायों से पूरी होती है मन्नत
मंदिर के प्रांगण में एक प्राचीन पेड़ के पास स्वयंभू शिवलिंग स्थित है. इस प्राचीन शिवलिंग की पूजा करने से सभी तरह की मनोकामना पूरी होती है. इसके लिए शिवलिंग पर दूध, दही, गंगा जल, फूल और बेलपत्र चढ़ाने से भगवान भोलेनाथ की कृपा प्राप्त होती है. कहा जाता है कि भगवान शंकर की पूरी श्रद्धा से पूजा करने पर वह बिना मांगे ही अपने भक्त की हर मनोकामना पूरी कर देते हैं.
कई धार्मिक ग्रंथों में भी इस प्राचीन स्थान का जिक्र किया गया है. मंदिर में हिमाचल प्रदेश से लेकर कई दूर दराज के इलाकों से भक्त अपनी मनोकामना लेकर आते हैं. चूंकि इस स्थान पर माता गौरी ने भगवान शिव से विवाह करने के लिए बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर में तपस्या की थी, इसलिए विवाह से संबंधित समस्याओं के लिए भी लोग मंदिर में आते हैं और भगवान भोलोनाथ उनकी कामना पूरी करते हैं.
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माता पार्वती ने मांगा था शिव जी से यह वरदान
एक मान्यता के अनुसार भगवान शिव और पार्वती का मिलन यहीं हुआ था. पुराणों में बताई गई कथा के अनुसार पहले शिव ने दक्षेश्वर के राजा दक्ष की पुत्री सती को पत्नी के रूप में पाया. राजा दक्ष से अपमानित होने के बाद जब माता सती ने यज्ञ कुंड में भस्म होकर हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया तो उनकी कामना फिर भगवान शिव को पति के रूप में पाने की रही.
देव ऋषि नारद ने पार्वती की सलाह पर माता पार्वती ने हरिद्वार में स्थित बिल्व पर्वत पर आकर शिव जी को आराध्य मानते हुए कठोर तपस्या की और भोलेनाथ के प्रसन्न होने पर दोबारा उनकीं पत्नी बनने का वरदान मांगा.