Bharat Express

घोर निराशा के सागर से भी पल भर में उबार देगी स्वामी विवेकानंद से जी से जुड़ी घटना, शिकागो से जुड़ा है किस्सा

Vivekananda Inspiring Story: 16 जुलाई, 1893 को कनाडा और फिर वहां से शिकागो पहुंचे. उस नगर में एक भी अपना नहीं था.

Swami Vivekananda

स्वामी विवेकानंद.

Vivekananda Inspiring Story: 1884 में ‘नरेंद्रनाथ दत्त’ के सर से पिता का साया उठ गया. उस समय वो बी०ए० पास करके बीo एलo की तैयारी कर रहे थे वो. बड़ा परिवार था तो उनके भरण-पोषण की जिम्मेदारी नरेंद्र के कंधों पर आ गई. उधर बकायेदार अलग परेशान करने लगे. नरेंद्र फटे हुए वस्त्र और नंगे पांव कलकत्ता की गलियों में नौकरी की तलाश में भटकने लगे. सवेरे उठ जाते और नौकरी की तलाश में निकल पड़ते.

बहुत भटकने के बाद किसी कार्यालय में एक अस्थायी नौकरी मिली पर नाकाफी थी. ऐसे में स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण देव के पास पहुंच गये. रामकृष्ण परमहंस ने उनको मां काली के पास भेजा तो तीन प्रयास के बाबजूद वो ‘मां’ से सिवाय ज्ञान और वैराग्य के कुछ मांग नहीं सके. तब परमहंस ने उनसे कहा- “अब जाओ अर्थ (धन) के लिए तुम परेशान न हो. मैंने माँ से कह दिया है कि तेरे परिवार की चिंता अब वही करेंगी.”

विषम परिस्थितियो में निखर जाता है इंसान

ऐसी ही विषम परिस्थितियों में इंसान का सर्वश्रेष्ठ निखर कर आता है. दुख ने उनकी परीक्षा ली और उस दुःख ने नरेंद्र को “स्वामी विवेकानंद” में बदल दिया. इसी बीच अवसर मिला तो शिकागो जाने का मन बना लिया. 16 जुलाई, 1893 को कनाडा और फिर वहां से शिकागो पहुंचे. उस नगर में एक भी अपना नहीं था. फिर पता चला धर्म सभा सितंबर में होगी. स्वामी विवेकानंद के पास उतने दिन का खर्च नहीं था. कई बार रेलवे स्टेशन पर सोना पड़ा. कार्यक्रम के लिए कार्यालय की खोज में निकले तो झिझकी मिलती. काला आदमी कहकर लोग दरवाजे बंद कर लेते.

विवेकानंद को मेहमान बनाने के लिए आतुर हो गए थे लोग

परंतु, जब शिकागो धर्म सभा में गरजे तो उस गर्जना ने वहां के पाषाण, संकीर्ण और मशीन हृदयों में विश्व बंधुत्व का भाव जागृत हो गया. जो लोग उन्हें देखकर गेट बंद कर लेते थे वही लोग उनको मेहमान बनाने को व्याकुल हो गए. एक समय ऐसा आया जब भारतीय संस्कृति को स्वामी विवेकानंद ने विश्व क्षितिज पर स्थापित कर दिया.

Bharat Express Live

Also Read