कल्पवास
Kalpwas: माघ मास के दौरान कल्पवास को सबसे खास माना जाता है. कहा जाता है कि महाभारत काल में धर्मराज युधिष्ठिर ने मार्कण्डेय ऋषि के सुझाव पर युद्ध के दौरान मारे गए अपने रिश्तेदारों को सदगति दिलाने के लिए कल्पवास किया था.
इसके अलावा इस माह की महत्ता बताते हुए यह भी कहा गया है कि गौतमऋषि द्वारा शापित स्वर्ग के अधिपति इंद्र को भी माघ स्नान करने के बाद श्राप से मुक्ति मिली थी. मान्यता है कि निष्काम भाव से माघ मास में स्नान करने पर मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.
पदम् पुराण और मनु स्मृति के अनुसार कल्पवास के नियम
पदम् पुराण में महर्षि दत्तात्रेय ने कल्पवास का महात्म्य बताते हुए इस व्यवस्था का वर्णन किया है. महर्षि दत्तात्रेय के अनुसार कल्पवासी को सत्य, अहिंसा, संयम, दया और ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए सभी तरह के व्यसनों का त्याग करना चाहिए.
इसके अलावा पिंडदान, यथाशक्ति दान करते हुए भूमि शयन जैसे नियमों का पालन करना चाहिए. मनु स्मृति के अनुसार कल्पवास में व्रत के रखने के दौरान दस बातों का पालन करना जरूरी है. यह दस बाते हैं धैर्य, क्षमा, इन्द्रियनिग्रह, बुद्धिमता, विद्या, सत्यवचन, स्वार्थपरता का त्याग, चोरी न करना, शारीरिक पवित्रता और अहिंसा.
कल्पवास में खान-पान और शयन के नियम
कल्पवास में अन्य नियमों की तरह इसके आहार और शयन के नियम भी खास हैं. नियमों के मुताबिक पूरे माघ मास में कल्पवासी को जमीन पर सोना होता है. खानपान में दिनभर फलाहार के अलावा एक समय का आहार ले सकते हैं या एक समय निराहार भी रहने का भी प्रावधान है.
कल्पवासी को नियमपूर्वक दिन में तीन बार गंगा स्नान करना चाहिए. इस दौरान दिनचर्या में भजन-कीर्तन, प्रभु चर्चा और प्रभु लीला का दर्शन करना चाहिए. हालांकि कल्पवास का जो सबसे जटिल नियम है वह यह है कि इसे एक बार शुरु करने के बाद कम से कम 12 वर्षों तक जारी रखने की परंपरा है.
वहीं श्रद्धानुसार इसे आगे भी किया जा सकता है. कल्पवास की शुरुआत में इसके पहले दिन तुलसी और शालिग्राम की स्थापना करते हुए उनकी पूजा की जाती है.
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ऐसे लोग कर सकते हैं कल्पवास
कल्पवास के लिए किसी भी तरह की उम्र की कोई बाध्यता नहीं है. इसे अपनी श्रद्धा और भक्ति के अनुसार किसी भी आयु के लोग कर सकते हैं. फिर भी संसारी मोह-माया से मुक्त और जीवन की सभी जिम्मेदारियों से निवृत्त व्यक्ति को ही कल्पवास करना चाहिए.
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