देवरहा बाबा
Devraha Baba: कहते हैं कि धरती पर एक ऐसे महात्मा थे, जिनकी उम्र कोई 250 सौ साल तो कोई 500 साल बताता था. माना जाता था कि बाबा के चमत्कारों की कोई सीमा नहीं थी. बाबा खेचरी मुद्रा से लेकर तमाम सिद्धियों के ज्ञाता थे. बाबा के दर्शनों के लिए प्रधानमंत्री से लेकर आम आदमी तक प्रयासरत रहता था. बाबा का नाम देवरहवा या देवरहा बाबा था, जो कि उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के माने जाते थे.
जमीन से ऊंचाई पर रहते थे
देवरहा बाबा के बारे में कहा जाता था कि वे अपने आश्रम में एक मचान बनाकर उसके ऊपर रहते थे और अपने भक्तों को और आने वाले श्रद्धालुओं को अपने पैर द्वारा आशीर्वाद देते थे. इसके अलावा उनके पास कुछ भी प्रकट करने की शक्ति थी, जिससे वह फल बिस्कुट और तमाम तरह की चीजें प्रसाद के रूप में बांटा करते थे.
बाबा का आश्रम उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में लार कस्बे के सरयू नदी के किनारे है, जो कि देवरिया से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है. देवरिया जिले के होने के कारण उनका नाम देवरहा बाबा पड़ा या कुछ लोग कहते हैं कि उनके नाम पर देवरिया जिले का नाम पड़ा. बाबा ने 1990 में अपने प्राण त्याग दिए थे, लेकिन अगर बात करें उनके चाहने वालों की तो उसकी लिस्ट लंबी थी.
जिसमें डॉ राजेंद्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव और पंडित मदन मोहन मालवीय समेत देश-विदेश के तमाम बड़े नौकरशाहों के नाम शामिल हैं.
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जॉर्ज पंचम ने भी किए थे बाबा के दर्शन
माना जाता है कि 1911 में जॉर्ज पंचम देवरहा बाबा के दर्शनों के लिए गए थे. कहा जाता है कि एक बार राजीव गांधी बाबा के दर्शनों के लिए आने वाले थे. इस वजह से उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बाबा के मचान से कुछ ही दूर पर सुरक्षा अधिकारियों को एक पेड़ को काटने की जरूरत महसूस हुई. लेकिन बाबा ने ऐसा करने से मना कर दिया. उनका कहना था कि बस कल तक का इंतजार करो. ताज्जुब तब हुआ जब अगले दिन अचानक से ही राजीव गांधी का कार्यक्रम स्थगित हो गया.
कांग्रेस को मिला बाबा से अपना निशान !
कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि बाबा के हाथ द्वारा दिया गया इंदिरा गांधी को आशीर्वाद ही कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिह्न बन गया. 1977 की हार के बाद इंदिरा गांधी बाबा का आशीर्वाद लेने पहुंची थीं. बाबा ने अपना हाथ उठाते हुए उन्हें आशीर्वाद दिया. बाद में इंदिरा गांधी भारी बहुमत से देश की प्रधानमंत्री बनीं.
पलक छपकते ही मीलों की दूरी करते थे तय
कहा जाता है कि बाबा जहां जल पर चल लेते थे, वहीं पलक झपकते ही देवरिया से इलाहाबाद पहुंच जाते थे. उस समय बाबा को किसी ने कहीं आते-जाते नहीं देखा था. फिर भी वे अपनी इच्छा अनुसार जहां मन वहां तुरंत चले जाते थे.
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