जसप्रीत बुमराह
10 साल के लंबे अंतराल के बाद आखिरकार ऑस्ट्रेलिया ने भारत को बॉर्डर-गावस्कर ट्राफी में हरा दिया और यह प्रतिष्ठित ट्रॉफी एक बार फिर ऑस्ट्रेलिया के पास लौट आई. बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी 2024-25 में भारत 1-3 से हार गया. यह सिर्फ एक हार नहीं है बल्कि भारतीय क्रिकेट टीम के लिए यह आत्ममंथन का समय है. इस हार ने भारतीय क्रिकेट के कई सवाल खड़े किए: क्या टीम का चयन सही था? क्यों बड़े नाम दबाव में फेल हुए? और क्या भारतीय क्रिकेट बुमराह पर जरूरत से ज्यादा निर्भर हो गया है? आइए इस सीरीज के हर पहलू का विश्लेषण करें और समझें कि भारत की हार का कारण क्या रहा.
जहां जसप्रीत बुमराह ने अपनी शानदार गेंदबाजी से दुनिया को हैरान किया, वहीं भारतीय बल्लेबाजों ने अपनी अस्थिरता और रणनीतिक गलतियों से निराश किया. बुमराह ने पूरी सीरीज में भारत को अकेले दम पर कई बार मुश्किलों से उबारा. यदि बुमराह इस सीरीज में न होते तो स्कोरलाइन 1-3 के बजाए भारतीय टीम के लिए और शर्मनाक हो सकती थी.
सीरीज में भारतीय तेज गेंदबाज जसप्रीत बुमराह ने शानदार प्रदर्शन किया. उन्होंने 32 विकेट चटकाए, जो किसी भी भारतीय गेंदबाज द्वारा ऑस्ट्रेलिया में सबसे ज्यादा हैं. बुमराह ने मेलबर्न में 200 विकेट का आंकड़ा पार किया और उनका औसत 20 से कम रहा. कई पूर्व ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों ने उनकी जमकर तारीफ की और उनकी तुलना वेस्टइंडीज के महान गेंदबाजों से की गई. मेलबर्न टेस्ट में जसप्रीत बुमराह की शानदार गेंदबाजी को देखकर एडम गिलक्रिस्ट उनकी तारीफ करने से खुद को नहीं रोक पाए. उन्होंने कहा, “यह एक अलग ही खेल है, एक अलग ग्रह है, जिस पर बुमराह खेल रहे हैं.” लेकिन बुमराह का ऐतिहासिक प्रदर्शन भी टीम को 1-3 की हार से बचा नहीं सका.
बल्लेबाजी में अस्थिरता बनी हार का मुख्य कारण
सीरीज में भारत की बल्लेबाजी सबसे कमजोर कड़ी साबित हुई. भारतीय बल्लेबाजों ने लगातार गलतियां कीं, खासकर अहम समय पर विकेट गंवाए. ऑस्ट्रेलिया के शीर्ष क्रम (नंबर 1 से 7) ने औसतन 28.79 रन बनाए, जबकि भारत ने 24.67. ऑस्ट्रेलिया ने चार शतक और आठ अर्धशतक लगाए, जबकि भारत के हिस्से केवल दो शतक और छह अर्धशतक आए. निचले क्रम (नंबर 9 से 11) में भी ऑस्ट्रेलिया ने भारत से बेहतर प्रदर्शन किया.
भारत के मुकाबले ऑस्ट्रेलिया ने अच्छी बल्लेबाजी की. हालांकि, ऐसा भी नहीं था कि ऑस्ट्रेलिया के बल्लेबाज बहुत कामयाब रहे. ट्रेविस हेड और स्टीव स्मिथ के अलावा बाकि के बल्लेबाज संघर्ष करते दिखाई दिए. उनके बल्लेबाजों ने भी बुमराह के सामने संघर्ष किया. लेकिन उन्होंने कम गलतियां कीं. उनके बल्लेबाजों ने अहम समय पर रन बनाए और साझेदारियां निभाईं.
यशस्वी जायसवाल भारत के सबसे सफल बल्लेबाज रहे. उन्होंने 43.44 के औसत से 391 रन बनाए. केएल राहुल और नितीश कुमार रेड्डी ने भी कुछ अच्छी पारियां खेलीं. ऋषभ पंत ने अंतिम टेस्ट में चमक दिखाई. लेकिन बाकी बल्लेबाज उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सके. विशेष रूप से रोहित शर्मा और विराट कोहली ने निराश किया. रोहित ने पांच पारियों में 6.20 का औसत से 31 रन बनाए, जबकि कोहली नौ में से आठ बार एक ही तरीके से आउट हुए. यह उनकी पुरानी कमजोरी थी जो 2014 के इंग्लैंड दौरे पर पहली बार उजागर हुई थी. पर्थ में एक शानदार शतक को छोड़कर, कोहली पूरी सीरीज में जूझते नजर आए.
टीम सेलेक्शन और रणनीति में भी दिखी अस्थिरता
टीम प्रबंधन के रणनीतिक फैसले भी हार के बड़े कारण बने. ऑस्ट्रेलियाई टीम ने पूरी सीरीज में लगभग एक ही टीम खिलाई. ऑस्ट्रेलियाई टीम पूरी सीरीज में अपने पारंपरिक टीम कॉम्बिनेशन के साथ उतरी. उन्होंने हर मैच में 3 तेज गेंदबाज, 1 स्पिनर और एक फास्ट बोलिंग ऑलराउंडर खिलाए. तेज गेंदबाज हेज़लवुड चोटिल हुए तो उनकी जगह तेज गेंदबाज स्कॉट बोलैंड को मौका दिया गया. पूरी सीरीज में ऑलराउंडर मिचेल मार्श फीके साबित हुए तो उनकी जगह आखिरी मैच में ऑलराउंडर ब्यू वेबस्टर को खिलाया गया. ऐसे ही ओपनिंग में नाथन मैकस्वीनी लगातार फेल हुए तो उनकी जगह सैम कोंस्टास को मौका दिया गया. इसके अलावा और कोई बदलाव ऑस्ट्रेलिया की ओर से पूरी सीरीज में देखने को नहीं मिला.
इसके उलट भारतीय टीम में लगातार बदलाव किए जा रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे भारतीय टीम प्रबंधन को पता ही नहीं की उनका बेस्ट प्लेइंग 11 क्या है. पर्थ में राहुल और जायसवाल ने ओपनिंग में अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन रोहित को मध्यक्रम में लाना और फिर मेलबर्न में उन्हें ओपनिंग के लिए भेजना गलत फैसला साबित हुआ. पहले मैच में वाशिंगटन सुन्दर को खिलाया गया जहां उन्होंने ठीक-ठाक प्रदर्शन भी किया उसके बावजूद दुसरे मैच में उनकी जगह रविचंद्रन आश्विन को खिलाया गया. हद तो तब हो गई जब तीसरे मैच में आश्विन को भी बहार का रास्ता दिखाकर रविन्द्र जडेजा को खिलाया गया. सिडनी की हरी पिच पर दो स्पिनरों और एक तेज गेंदबाजी ऑलराउंडर को खिलाना भी गलत निर्णय था. ऐसी पिच पर अतिरिक्त तेज गेंदबाज या बल्लेबाज का चयन बेहतर होता. स्पिनरों को गेंदबाजी का ज्यादा मौका नहीं मिला, और बुमराह की गैरमौजूदगी में तेज गेंदबाजी कमजोर पड़ गई.
बुमराह पर अत्यधिक निर्भरता
ऑस्ट्रेलिया ने इस सीरीज में अपनी गेंदबाजी के दम पर बढ़त बनाई. उनके तेज गेंदबाजों ने भारतीय बल्लेबाजों को लगातार दबाव में रखा. जहां ऑस्ट्रेलिया के सभी तेज गेंदबाजों ने पूरी सीरीज में अच्छा प्रदर्शन किया वहीं भारत की ओर से बुमराह के अलावा बाकी सभी गेंदबाज फीके दिखाई दिए. ऐसा लग रहा था मानो बुमराह भारत के लिए अकेले ही गेंदबाजी कर रहे थे. उन्होंने पूरी सीरीज में कुल 151 ओवर गेंदबाजी की. शायद इसी कारण आखिरी मैच में उनको इंजरी हुई.
सीरीज में जसप्रीत बुमराह ने सबसे ज्यादा विकेट लिए जिसके लिए उन्हें प्लेयर ऑफ़ द सीरीज भी चुना गया. उन्होंने 5 मैचों की 9 इनिंग्स में 32 विकेट लिए. इसके बाद दूसरे और तीसरे सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज ऑस्ट्रेलिया के कप्तान पैट कमिंस (5 मैचों में 25 विकेट) और स्कॉट बोलैंड (3 मैचों में 21 विकेट) रहे.
यह हार भारतीय टीम के लिए एक महत्वपूर्ण सबक है. बल्लेबाजी में निरंतरता की कमी और चयन में स्पष्टता का अभाव टीम को भारी पड़ा. इस सीरीज ने यह भी उजागर किया कि बुमराह जैसे खिलाड़ियों पर अत्यधिक निर्भरता टीम को कमजोर बना सकती है.
क्रिकेट एक टीम गेम है, और इसमें एक या दो खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर निर्भर रहकर बड़ी सीरीज या टूर्नामेंट नहीं जीते जा सकते. भारतीय क्रिकेट की एक पुरानी कमजोरी यह रही है कि हम अक्सर कुछ खिलाड़ियों को पूरी टीम का आधार मान लेते हैं. उनसे ही सारी उम्मीदें बांध ली जाती हैं कि वही हमें हर मैच जिताएंगे. लेकिन यह सोच न केवल टीम को कमजोर बनाती है, बल्कि अन्य खिलाड़ियों को भी दबाव में डालती है. सीरीज ने स्पष्ट किया कि जीतने के लिए हर खिलाड़ी का योगदान और सामूहिक प्रदर्शन जरूरी है.
-भारत एक्सप्रेस
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