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Lady Meherbai TaTa Story: आपने मेहरबाई का नाम सुना है? वो ऐसी महिला थीं, जिन्होंने अपने पति की कंपनी को डूबने से बचाने के लिए अपने गहने बैंक में गिरवी रखकर धन जुटाया था. मेहरबाई के पास वर्ल्ड फेमस कोहिनूर (Kohinoor) हीरे से भी बड़ा हीरा था. जिसे उन्होंने 1920 में टिस्को (वर्तमान में टाटा स्टील) को बचाने के लिए गिरवी रख दिया था.
आज हम आपको मेहरबाई की जिंदगी के कुछ किस्से यहां बताएंगे. मेहरबाई का जन्म 10 अक्टूबर, 1879 को बॉम्बे में हुआ था. वे TATA समूह के दूसरे अध्यक्ष सर दोराबजी टाटा की पत्नी थीं.
मेहरबाई खुले विचारों वाली महिला थीं, जो अपने दौर में महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ीं. उन्होंने न सिर्फ बाल-विवाह के खिलाफ संघर्ष किया, बल्कि कई तरह के सामाजिक कार्य किए. उनकी खेल के प्रति भी खासी रुचि थी. वह कुशल पियानोवादक भी थीं.
मेहरबाई एक पारसी परिवार में पैदा हुई थीं. उनके पिता होरमुसजी भामा मैसूर राज्य के तत्कालीन इंस्पेक्टर जनरल ऑफ एजुकेशन थे और मां का नाम जेरबाई भामा था. ऐसा कहा जाता है कि उनके पिता, होर्मुसजी जे. भाभा, उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड जाने वाले पहले पारसियों में से एक थे. जब उनका परिवार बैंगलोर चला गया, तो उनकी शिक्षा बिशप कॉटन स्कूल में हुई.
मेहरबाई के बारे में कहा जाता है कि वे न केवल टेनिस, बल्कि वह एक अच्छी घुड़सवार और एक कुशल पियानो वादक भी थीं. उन्हें उस दौर में ‘लेडी मेहरबाई टाटा’ के तौर पर जाना जाने लगा था. वह ओलंपिक में टेनिस खेलने वाली पहली भारतीय महिला थीं.
मेहरबाई काफी खूबसूरत थीं. 14 फरवरी, 1898 को उनका विवाह जमशेदजी एन. टाटा के सबसे बड़े बेटे दोराबजी टाटा से हुआ था. तब से उन्हें ‘लेडी मेहरबाई टाटा’ कहा जाने लगा. दोराबजी जब अपने पिता की कंपनी टिस्को (वर्तमान में टाटा स्टील) के अध्यक्ष बने तो कुछ सालों बाद परिस्थिति ऐसी बदलीं कि टिस्को पर संकट के बादल मंडराने लगे. तब मेहरबाई ने पति दोराबजी का साथ दिया.
मेहरबाई ने वर्ष 1929 में ब्रिटिश भारत में चाइल्ड मैरिज एक्ट पारित कराया था. जिसे शारदा एक्ट या बाल विवाह निरोध अधिनियम—1929 कहा गया. यह एक्ट 28 सितंबर, 1929 को पारित किया गया था और यह 1 अप्रैल, 1930 को लागू हुआ था.
मेहरबाई ने भारत और विदेशों में छुआछूत और पर्दा व्यवस्था के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी थी. वे भारत में महिलाओं की शिक्षा के लिए प्रतिबद्ध थीं, और वे नेशनल काउंसिल ऑफ वीमेंस की फाउंडर भी रहीं.
दोराबजी से मेहरबाई को एक बहुत बड़ा हीरा तोहफे में मिला था. उस हीरे को देखकर लोगों की आंखें चौंधिया जाती थीं. मेहरबाई उसे विशेष आयोजनों में पहना करती थीं. उस हीरे को जुबली डायमंड (Jubilee Diamond) कहा जाता था. बताया जाता है कि साल 1895 में वो हीरा दक्षिण अफ्रीका की Jagersfontein खान से निकला था.
दोराबजी ने जुबली डायमंड को लंदन के मर्चेंट्स से 1 लाख पाउंड में खरीदा था. यह दुनिया का छठां सबसे बड़ा हीरा है.
कहते हैं कि 1920 में टिस्को (वर्तमान में टाटा स्टील) डूबने के कगार पर था तो मेहरबाई ने इसी हीरे को गिरवी रखकर टाटा स्टील (Tata Steel) को बचाया था. अपने पसंदीदा गहने को बैंक में गिरवी रख धन जुटाना, उस दौर में मेहरबाई के लिए एक बड़ा फैसला था. इस तरह उन्होंने एक सच्ची जीवनसाथी होने का धर्म निभाया.
मेहरबाई द्वारा गहनों को गिरवी रखने पर टिस्को के लिए जबरदस्त फंडिंग हुई. जल्द ही वो कंपनी मुनाफा देने लगी. हैरत की बात ये भी रही, कि उस मुश्किल समय में भी किसी कर्मचारी को नहीं निकाला गया था. अब जब कभी आप जमशेदपुर में मेहरबाई कैंसर अस्पताल जाएंगे या फिर सर दोराबजी टाटा पार्क विजिट करेंगे, तो मेहरबाई से जुड़ी कहानियों से रूबरू होंगे.
– भारत एक्सप्रेस
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