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आज है विश्वकर्मा पूजा, जानिए पूजन विधि एवं कथाएं

आज देश भर में विश्वकर्मा पूजा

आज देश भर में विश्वकर्मा पूजा

आज विश्वकर्मा जयंती मनाई जा रही है.भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का पहला वास्तुकार माना जाता है. हिंदू पंचांग के मुताबिक, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को विश्वकर्मा पूजा मनाई जाती है। इस दिन विशेष तौर पर औजार, निर्माण कार्य से जुड़ी मशीनों, दुकानों, कारखानों, मोटर गैराज, वर्कशॉप, लेथ यूनिट, कुटीर एवं लघु इकाईयों आदि में भगवान विश्वकर्मा की अराधना की जाती है.

विश्वकर्मा पूजा पर बन रहे ये शुभ संयोग-

विश्वकर्मा पूजा के दिन सिद्धि योग सुबह 06 बजकर 07 मिनट से दोपहर 12 बजकर 21 मिनट तक बन रहा है. इसके बाद द्विपुष्कर योग दोपहर 12 बजकर 21 मिनट से दोपहर 02 बजकर 14 मिनट तक रहने वाला है. रवि योग सुबह 06 बजकर 07 मिनट से दोपहर 12 बजकर 21 मिनट तक होगा. अमृत सिद्धि योग सुबह 06 बजकर 06 मिनट से दोपहर 12 बजकर 21 मिनट तक रहेगा.

विश्वकर्मा पूजन विधि-

इस दिन अपने रोजमर्रा के काम आने वाली मशीनों को साफ किया जाता है. फिर स्नान करके भगवान विष्णु के साथ विश्वकर्मा जी की प्रतिमा की विधिवत पूजा की जाती है.  ऋतुफल, मिष्ठान, पंचमेवा, पंचामृत का भोग लगाया जाता है. दीप-धूप आदि जलाकर दोनों देवताओं की आरती की जाती है.

पौराणिक कथाएं-

भगवान विश्वकर्मा के जन्म को लेकर शास्त्रों में अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं. वराह पुराण के मुताबिक ब्रह्माजी ने विश्वकर्मा को धरती पर उत्पन्न किया था. वहीं विश्वकर्मा  पुराण के मुताबिक, आदि नारायण ने सर्वप्रथम ब्रह्माजी और फिर विश्वकर्मा जी की रचना की थी. भगवान विश्वकर्मा के जन्म को देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन से भी जोड़ा जाता है.

इस तरह भगवान विश्वकर्मा के जन्म को लेकर शास्त्रों में जो कथाएं मिलती हैं, उससे यह पता चलता है कि विश्वकर्मा एक नहीं, कई हैं और समय-समय पर अपने कार्यों और ज्ञान से वो सृष्टि के विकास में सहायक हुए हैं. शास्त्रों में भगवान विश्वकर्मा के इस वर्णन से यह संकेत मिलता है कि विश्वकर्मा एक प्रकार का पद और उपाधि है, जो शिल्पशास्त्र का श्रेष्ठ ज्ञान रखने वाले को दिया गया है. सबसे पहले हुए विराट विश्वकर्मा, उसके बाद धर्मवंशी विश्वकर्मा, अंगिरावंशी, तब सुधान्वा विश्वकर्माव उत्पन्न हुए. फिर शुक्राचार्य के पौत्र भृगुवंशी विश्वकर्मा हुए थे. मान्यता यह भी है कि देवताओं की विनती पर विश्वकर्मा ने महर्षि दधीचि की हड्डियों से स्वर्गाधिपति इंद्र के लिए एक शक्तिशाली वज्र बनाया था.

प्राचीनकाल में जितने भी प्रसिद्ध नगर और राजधानियां थीं, उनका सृजन भी विश्वकर्मा ने ही किया था, जैसे सतयुग का स्वर्ग लोक, त्रेतायुग की लंका और द्वापर की द्वारिका. महादेव का त्रिशूल, श्रीहरि का सुदर्शन चक्र, हनुमान जी की गदा, यमराज का कालदंड, कर्ण के कुंडल और  कुबेर के पुष्पक विमान का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था. उन्हें शिल्पकला में इतनी महारत हासिल थी कि वह पानी में चल सकने योग्य खड़ाऊ बनाने की क्षमता रखते थे.

-भारत एक्सप्रेस

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