
महाकुंभनगर: गणतंत्र दिवस पर नई दिल्ली के कर्तव्य पथ पर इस वर्ष उत्तर प्रदेश की झांकी ने महाकुंभ की दिव्यता और नव्यता को भव्य रूप में प्रस्तुत किया. संस्कृत के श्लोकों से गणतंत्र दिवस गूंज उठा. इसी के साथ संपूर्ण देश महाकुंभमय हो गया. महाकुंभ स्वर्णिम भारत विरासत और विकास थीम पर आधारित इस झांकी ने देश की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समृद्धि का अद्भुत प्रदर्शन किया है. कवि वीरेन्द्र वत्स का लिखा यह गीत संस्कृत और हिंदी का संगम है.
समुद्र मंथन की ऐतिहासिक कथा हुई जीवंत
झांकी में समुद्र मंथन की ऐतिहासिक कथा को जीवंत किया गया, जहां नागवासुकी मंदराचल पर्वत पर लिपटे हुए नजर आए. भगवान विष्णु कच्छप अवतार में मंदराचल को धारण करते हुए दिखे. देवता और राक्षस मिलकर अमृत के लिए समुद्र मंथन कर रहे थे. झांकी के अगले भाग में शंखनाद करते संत और सिर पर कलश लिए महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में झूमती-गाती दिखाई दीं. कवि वीरेन्द्र वत्स का लिखा गीत झांकी की विशेषता रही, जिसमें संस्कृत और हिंदी का सुंदर समावेश किया गया था.
गीत में संस्कृत-हिंदी समावेश
स्वर्गलोक की आभा उतरी तीर्थराज के आंगन में
झूम रहे हैं साधु-संत जन, पुलक भरा है तन-मन में
भव्योदिव्यो महाकुंभ: सर्वसिद्धिप्रदायक . प्रयागराजस्तीर्थानां प्रमुखो लोकविश्रुत.
सांस्कृतिक जड़ों और प्रगति के प्रतीक के रूप में उत्तर प्रदेश को एक नई पहचान
इस झांकी ने महाकुंभ की आध्यात्मिक महिमा को दर्शाया है. साथ ही भारत की सांस्कृतिक जड़ों और प्रगति के प्रतीक के रूप में उत्तर प्रदेश को एक नई पहचान दी है. दर्शकों ने झांकी को अद्वितीय और प्रेरणादायक बताया. उत्तर प्रदेश की झांकी कई बार राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार जीत चुकी है. इस बार भी महाकुंभ पर आधारित यह झांकी देशवासियों के लिए गर्व का प्रतीक बनी है.
-भारत एक्सप्रेस
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