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शादी-ब्याह के बाद अब Paris Olympics की रौनक बढ़ाएंगे काशी के बुनकर

पेरिस में पहली बार बनारसी साड़ी और वस्त्रों की लाइव बुनाई के लिए वाराणसी के रामनगर के बुनकर परिवार को चुना गया है.

(प्रतीकात्मक तस्वीर: olympics.com)

शादी-ब्याह और मांगलिक समारोह की रौनक बढ़ाने के लिए मशहूर बनारसी साड़ी अब पेरिस ओलंपिक्स में भी जलवा बिखेरेंगी. दुनिया भर के खिलाड़ियों के उम्दा प्रदर्शन के बीच पेरिस में बनारसी साड़ी बुनने वाले बुनकर भी अपनी कारीगरी का जौहर दिखाएंगे.

यह पहला मौका होगा जब पेरिस ओलंपिक्स में लोग बनारस के हुनर को लोग देखेंगे. पेरिस में पहली बार बनारसी साड़ी और वस्त्रों की लाइव बुनाई के लिए वाराणसी के रामनगर के बुनकर परिवार को चुना गया है. 22 जुलाई को यह परिवार पेरिस के लिए रवाना होगा. वो अपने साथ हथकरघा लेकर जाएंगे और इसी हथकरघा पर बनारसी साड़ी और वस्त्रों की ओलंपिक्स के दौरान सबके सामने बुनाई करेंगे.

ओलंपिक्स के दौरान मेला

यह पहला मौका है जब किसी ओलंपिक्स के दौरान मेला लग रहा है‌. इस बार यह मेला स्वदेश रिलायंस फाउंडेशन की ओर से पेरिस ओलंपिक्स में लग रहा है‌. इस मेले में अपनी बेहतरीन कारीगरी को पेश करने के लिए वाराणसी के रामनगर के बुनकर नीलेश मौर्य नीलू और उनकी बेटी मोनिका मौर्य को पेरिस आमंत्रित किया गया है. पेरिस जाने के लिए दूतावास से वीजा समेत अन्य प्रक्रिया भी पूरी कर ली गई है. पिता-पुत्री का एयर टिकट भी हो गया है. 22 जुलाई की शाम पांच बजे वो दिल्ली और फिर वहां से सीधे विमान से पेरिस जाएंगे.

पेरिस में बाप-बेटी रहेंगे 20 दिन

स्वदेश रिलायंस ग्रुप की ओर से लग रहे पेरिस ओलंपिक्स के मेला में रामनगर के नीलेश मौर्या और उनकी बेटी मोनिका करीब तीन हफ्ते तक पेरिस में रहेंगे. इस दौरान वह पेरिस में रहकर बनारसी हुनर दिखाएंगे.


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रामनगर के मच्छरहट्टा निवासी नीलेश ने बताया कि अब तक के जीवन में पहली बार ऐसा है कि किसी अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन ओलंपिक्स में बनारसी साड़ी की बुनाई और प्रदर्शनी का मौका मिलेगा. उन्होंने बताया कि दुनिया भर में रिलायंस ग्रुप की ओर से बनारसी साड़ी को पहचान मिल रही है. पेरिस में रहने, ठहरने व खाने आदि सभी व्यवस्था रिलायंस ग्रुप की ओर से की गई है.

पांच पीढ़ी से कर रहे बनारसी साड़ी की बुनाई

नीलेश ने बताया कि पांच पीढ़ियों से बनारसी साड़ी की बुनाई उनके परिवार में हो रही है. उन्हें यह कारीगरी विरासत में मिली है. बेटी पांचवीं पीढ़ी की है और पूरा परिवार बनारसी साड़ी की बुनाई हथकरघा पर करते आ रहे हैं. परदादा, दादा और पिता जगरनाथ मौर्य से यह हुनर विरासत में मिला है. बेटी भी बनारसी हुनर को निखार रही हैं.

जीआई टैग से बढ़ा क्रेज

बनारस की विरासत के रूप में पहचान बना चुकी बनारसी साड़ी को जीआई टैग मिल चुका है. इससे बनारसी साड़ी को ग्लोबल पहचान मिली है. आज दुनिया भर से लोग काशी आकर बनारसी साड़ी की कारीगरी देखने और खरीदने के लिए उत्सुक रहते हैं.

-भारत एक्सप्रेस

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