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इस्मत चुगताई; जानें क्यों मिला ‘अश्लील लेखिका’ और ‘लेडी चंगेज खान’ का तमगा? मर्दों की इज्जत को लेकर कही थी ये बड़ी बात, समलैंगिक रिश्तों पर भी चलाई कलम

उनकी किताब ‘लिहाफ’ को लेकर उन पर लाहौर कोर्ट में मुकदमा चला. इस्मत ने माफी नहीं मांगी. उन्होंने मुकदमा लड़ा और जीत हासिल की.

Ismat Chughtai

फोटो-सोशल मीडिया

Ismat Chughtai: महिलाओं की समस्याओं को बेबाकी से शब्दों में पिरोकर दुनिया के सामने रखने वाली इस्मत चुगताई किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. वह साहित्य जगत में ‘लेडी चंगेज खान’ के नाम से मशहूर रहीं और उनको इस्मत आपा भी कहा जाता है. अपनी रचनाओं से उन्होंने महिलाओं के एक बड़े समूह को आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त किया. फिलहाल आज उनका जन्मदिन है. इस मौके पर उनके बारे में तमाम जानकारी सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं और लोग उनकी किताबों के तमाम अंश को शेयर कर रहे हैं.

उन्होंने अपनी किताब ‘आधी औरत आधा ख्वाब’ में लिखा था, “मां की ममता का सारी दुनिया ढोल पीटती है. बाप की बापता का रोना कोई नहीं रोता. औरत की इज्जत लुट सकती है, मर्द की नहीं लुटती. शायद मर्द की इज्जत भी नहीं होती, जो लूटी-खसोटी जा सके.” उनकी इसी बेबाकी ने उनको साहित्य जगत में इतना फेमस कर दिया कि उनका नाम उस समय के साहित्यकारों के बीच खूब प्रचलित था. तो वहीं ये भी कहा जाता है कि उनके शब्दों ने ही उनको लेडी चंगेज खान बना दिया था.

इसलिए कहा जाता था उनको इस्मत आपा

इस्मत का जन्म उत्तर प्रदेश के बदायूं में 21 अगस्त 1915 को हुआ था. वह दस भाई-बहनों में नौ नंबर पर थीं. उनको खेलने की उम्र में ही शब्दों से प्यार हो गया और छोटी उम्र में इस्मत ने अपनी लिखने की दुनिया को सजाना-संवारना शुरू कर दिया. इस्मत के पिता सरकारी मुलाज़िम थे. घर में कोई दिक्कत नहीं थी लेकिन, घरवालों को इस्मत के लड़कों के साथ खेलने से नाराजगी थी. इस्मत के भाई मिर्जा अज़ीम बेग चुगताई भी जाने-माने लेखक थे. कहा जाता है कि उनसे ही इस्मत ने शुरुआती तालीम ली.

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बीए-बीएड करने वाली पहली भारतीय मुस्लिम महिला थीं

साल 1936 में लखनऊ में प्रगतिशील लेखक संघ सम्मेलन का आयोजन हुआ था. इस मौके पर इस्मत चुगताई ने भी शिरकत की थी. उनके बारे में कहा जाता था कि वह बीए और बीएड करने वाली पहली भारतीय मुस्लिम महिला थीं. इस्मत ठेठ मुहावरों और गंगा-जमुनी भाषाओं को इस्तेमाल करती थी. जिसे हिंदी या उर्दू, किसी एक भाषा में कैद नहीं किया जा सकता था. उनकी भाषा और लेखन शैली में प्रवाह अद्भुत था. इस्मत ने उपन्यास से लेकर कहानियां और कविताएं लिखी. उन्हें ‘मॉडर्न उर्दू शॉर्ट स्टोरी’ के एक स्तंभ के रूप में भी माना जाता है.

लड़कों के साथ खेलना नहीं पसंद था अम्मी को

कई मौकों पर इस्मत इस बात का जिक्र करते हुए कहती थीं, “अम्मी को मेरा लड़कों के साथ खेलना पसंद नहीं था. वो आदमी हैं, क्या आदमी को आदमी खाता है?” कहने का मतलब है कि इस्मत को कम्र उम्र में इंसान और इंसानियत की समझ आ चुकी थीं. यही समझ उनकी लेखनी के हिस्से में भी आई, जिसने इस्मत आपा को अमर बना दिया.

13 फिल्मों में भी किया काम

इस्मत ने 13 फिल्मों में भी काम किया. इस्मत की आखिरी फिल्म ‘गर्म हवा’ थी. इस फिल्म को नेशनल अवॉर्ड और फिल्म फेयर अवॉर्ड मिला. तो वहीं 1976 में भारत सरकार ने उनको पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित किया. इसके अलावा भी साहित्य अकादमी समेत कई अवॉर्ड मिले थे. उन्होंने 24 अक्टूबर 1991 को दुनिया को अलविदा कह दिया.

दफनाया नहीं जलाया जाए

जिंदगी की तरह उनकी मौत भी खूब चर्चा में रही. कहा जाता है कि इस्मत ने अपनी वसीयत में लिखा था कि उन्हें दफनाया नहीं, जलाया जाए. उनका मुंबई में दाह संस्कार कर दिया गया था. कई लोगों ने इस दावे का खंडन भी किया था. यह सच्चाई भी ‘आपा’ के साथ हमेशा के लिए रुखसत हो गई.

तब के जमाने में समलैंगिक रिश्ते पर लिखी किताब

इस्मत बेबाक और जिंदादिल फितरत की इंसान थीं. उन्होंने कई मुद्दों पर लिखा. सबसे ज्यादा महिलाओं के अधिकारों के लिए कलम चलाई. इस्मत की साल 1942 में कहानी ‘लिहाफ’ आई. इसने साहित्य जगत में तूफान ला दिया. ‘लिहाफ’ समलैंगिक रिश्ते पर लिखी गई, जिसे ‘अश्लील साहित्य’ करार दे दिया गया था.

कोर्ट में हासिल की जीत

उनकी किताब लिहाफ को लेकर उन पर लाहौर कोर्ट में मुकदमा चला. इस्मत ने माफी नहीं मांगी. उन्होंने मुकदमा लड़ा, ‘लिहाफ’ का बचाव किया, जीत हासिल की. कहीं ना कहीं उनके दिल में ‘लिहाफ’ को लेकर हुए हंगामे की टीस रह गई, जो रह-रहकर उभरती थी. इस्मत ने कई मौकों पर कहा था, “मुझे अश्लील लेखिका का तमगा दे दिया गया था. ‘लिहाफ’ से पहले और उसके बाद मैंने काफी कुछ लिखा, किसी ने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. लोगों की नजर में ‘लिहाफ’ था. मुझे सेक्स जैसे विषय पर लिखने वाली अश्लील लेखिका कहा जाने लगा. कई सालों बाद कई युवाओं ने ‘लिहाफ’ को पसंद किया. उनका कहना था कि मैंने अश्लील साहित्य नहीं, सच्चाई लिखी. मेरे जीते जी मुझे समझा गया, मेरे लिए सुकून की बात है.”

इस किताब के जरिए महिलाओं के संघर्ष की लिखी कहानी

1986 में इस्मत की किताब ‘आधी औरत आधा ख्वाब’ आई. यह कई कहानियों का संग्रह है. इसके जरिए इस्मत ने औरत की ज़िंदगी के अनछुए पहलुओं को छुआ. इसकी नौ कहानियों में औरतों के जीवन के संघर्षों और विडंबनाओं को सामने रखा गया. उनकी रचनाओं में ‘चोटें’, ‘छुईमुई’, ‘एक बात’ से लेकर ‘टेढ़ी लकीर’, ‘जिद्दी’, ‘एक क़तरा खून’, ‘दिल की दुनिया’, ‘दोजख’, ‘मसूमा’, ‘तनहाई का ज़हर’, ‘बदन की खुशबू’, ‘अमरबेल’, ‘कागजी है पैरहन’ काफी प्रसिद्ध हैं. कई अन्य नाम भी हैं लेकिन, इस्मत की हर रचना अपने आप में बेहद खास है.

जान से मारने की भी मिली धमकी

बता दें कि इस्मत अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने वाली महिला थीं. उन्होंने अपनी जिंदगी में बेहद उतार-चढ़ाव देखें. कहा जाता है कि उन्हें अश्लील पत्र लिखे गए, जान से मारने की धमकियां मिली, उन्हें अदालतों के चक्कर तक काटने पड़े. इस्मत ने किसी बात का रोना नहीं रोया. अपनी धुन में व्यस्त रहीं. उन्होंने हिंदी फिल्मों में काम किया.

-भारत एक्सप्रेस



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