सांकेतिक फोटो-सोशल मीडिया
सियासी किस्से: भारत में लोकसभा चुनाव-2024 का आगाज होने जा रहा है. राजनीतिक दल पूरी तैयारी कर चुके हैं तो वहीं चुनाव आने के साथ ही जिला प्रशासन मताधिकार का इस्तेमाल करने के लिए सोशल मीडिया से लेकर टीवी और समाचार पत्रों के माध्यम से लोगों से अपील करता है, लेकिन एक वो भी दौर था जब सिनेमाघर के माध्यम से लोगों को मतदान करने के लिए अपील की जाती थी. हालांकि नुक्कड़ नाटक और पंचायतें भी जागरुकता का माध्यम हुआ करती थीं लेकिन सिनेमाघर लोगों को अधिक आकर्षित करता था. तो आइए जानते हैं आखिर 1951-52 में चुनाव का माहौल किस तरह का हुआ करता था.
चुनाव आयोग के लिए पहली बार वोटर्स को जागरुक करना था बड़ा मुश्किल
ये तो सभी जानते हैं कि 21वीं सदी यानी आज के दौर में मतदान के लिए जागरुक करने के लिए बहुत से माध्यम हैं और एक बड़ी आबादी पढ़ी-लिखी है, लेकिन पहले चुनाव आयोग के लिए लोगों को मतदान के लिए जागरुक करना मुश्किल काम था. 1951 में चुनाव आयोग साल भर लोगों को फिल्म और रेडियो के माध्यम से जागरुक करता रहता था. देश भर के तीन हजार सिनेमाघरों में मतदान प्रक्रिया पर एक डॉक्युमेंट्री का प्रदर्शन भी किया गया था जिसमें न सिर्फ वोट डालने के बारे में बताया जाता था बल्कि मतदाताओं के क्या कर्तव्य हैं इसके बारे में भी जानकारी दी जाती थी. ऑल इंडिया रेडियो के द्वारा कई कार्यक्रम किए गए थे. इन संदेशों में संविधान, वयस्क मताधिकार का उद्देश्य, मतदाता सूची की तैयारी से लेकर मतदान प्रक्रिया तक की जानकारी लोगों को दी गई थी.
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फर्जी मतदान रोकने को किया गया था ये काम
मतदान से पहले जब ये बात उठी कि कैसे फर्जी मतदान को रोका जाए तो भारतीय वैज्ञानिकों ने एक स्याही का आविष्कार किया. जिसे मतदाता की उंगली पर लगाया जाता था जो कि लगने के बाद एक सप्ताह तक मिटाई नहीं जा सकती थी. आज भी इसी विशेष स्याही का इस्तेमाल होता है वोटर्स की उंगलियों पर. देश के पहले चुनाव के दौरान इस स्याही की 3,89,816 छोटी बोतलें इस्तेमाल में लाई गई थीं.
पहली बार इस तरह से पड़े थे वोट
उस वक्त देश में पहली बार चुनाव हो रहे थे तब लोकसभा के साथ सभी राज्यों की विधानसभाओं के भी चुनाव हो रहे थे. इसको देखते हुए लोकसभा की तरह ही विधानसभा सीट पर खड़े उम्मीदवारों के लिए भी मतपेटियों की एक लाइन अलग से मतदान केंद्र पर रखी गई थीं. जहां वोटर्स को अपना वोट डालना था. जैसे अगर किसी विधानसभा सीट पर 10 उम्मीदवार हैं तो उससे संबंधित लोकसभा सीट पर भी 10 उम्मीदवार होते थे तो इस सम्बंध में कुल 20-20 मतपेटियां हर मतदान केंद्र पर रखी जाती थी. इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस चुनाव में मतदान सामाग्री को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना कितना मुश्किल होता था. ऐसा इसलिए था कि उस समय देश की 85 प्रतिशत आबादी अशिक्षित थी और मतपत्र नहीं पढ़ सकती थी. मतदाता कोई गलती न कर दें इसलिए हर चुनाव चिह्न की एक मतपेटी रखी जाती थी, लेकिन आज EVM का दौर है.