प्रतीकात्मक चित्र
रेवेनेंट (Revenant) का मतलब होता है वह जो मौत के बाद फिर लौट आए. जिसे मरा हुआ मान लिया गया हो, लेकिन कुछ समय बाद वह फिर से प्रकट हो जाए. आज हम इस तरह की बातों में ज्यादा विश्वास नहीं करते, पर सत्रहवीं सदी के एक कंकाल से मिली जानकारी कुछ और ही कहानी बयां करती है.
सत्रहवीं शताब्दी के गैलोस की खुदाई
कुछ पुरातत्वविद जर्मनी में सत्रहवीं शताब्दी के गैलोस (Gallows) के पास खुदाई कर रहे थे. गैलोस वह जगह थी जहां लोगों को फांसी दी जाती थी. जर्मनी के क्वेडलिंबर्ग कस्बे में ऐसा ही एक गैलोस मौजूद था, जहां 1660 से 19वीं सदी तक कैदियों को मौत की सजा दी जाती थी. इस जगह के आसपास 16 कब्रें मिलीं, जहां पर शवों को दफनाया गया था.
मौत के बाद वापस लौटने का खौफ
16वीं से 18वीं सदी के बीच यूरोप में रेवेनेंट्स का खौफ बढ़ने लगा था. उस समय लोगों को असमय मौत के घाट उतार दिया जाता था, और यह डर रहता था कि ये लोग मौत के बाद वापस लौट सकते हैं. पुरातत्वविद मारिता गेनेसिस, जो इस खुदाई की अगुवाई कर रही थीं, ने लाइव साइंस को बताया कि उस समय यह मान्यता थी कि जो लोग अचानक और बिना अपनी बात कहे मारे जाते थे, वे हमारी दुनिया में फिर से लौट सकते हैं.
ऐसे डर के चलते कई तरीके अपनाए जाते थे ताकि मुर्दों को मौत के बाद वापस लौटने से रोका जा सके. मसलन, शवों पर ‘पवित्र’ जल छिड़कना, लकड़ी के क्रॉस लगाना, हाथ-पैर बांधना, या फिर उन्हें लकड़ी से ढंक देना. इन उपायों का मकसद यह होता था कि मौत के बाद वे जीवित न हो सकें.
खुदाई के दौरान मिला यह कंकाल बिना ताबूत के पीठ के बल दफनाया गया था, और इसकी छाती पर बड़े पत्थर रखे गए थे. ऐसा माना जाता है कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि मृतक वापस न लौट सके. इस कंकाल में मौत की सजा के कोई स्पष्ट निशान नहीं मिले, लेकिन पुरातत्वविदों का मानना है कि फांसी या डूबने जैसी मौत के बाद शरीर पर कोई निशान नहीं बचते. गेनेसिस का कहना है कि आगे की जांच से शायद इस व्यक्ति की मौत के सही कारणों का पता चल सके.
-भारत एक्सप्रेस