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“भारत की न्याय व्यवस्था में हो रहा ऐतिहासिक परिवर्तन”, लंदन स्थित SOAS में बोले CJI बीआर गवई- ज्यूडिशियल सिस्टम में तकनीक निभा रही अहम भूमिका

सीजेआई ने आगे कहा, “2000 के दशक की शुरुआत में शुरू किया गया ई-कोर्ट्स प्रोजेक्ट अदालतों की प्रक्रिया जैसे फाइलिंग, लिस्टिंग और केस ट्रैकिंग को डिजिटल बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ.

Justice B.R. Gavai, Chief Justice of India

लंदन में सीजेआई बीआर गवई.

लंदन स्थित स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज़ (SOAS) के अकादमिक मंच को संबोधित करते हुए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बीआर गवई ने कहा कि भारत की न्यायिक प्रणाली में तकनीक एक ऐतिहासिक भूमिका निभा रही है. यह न केवल अदालतों की कार्यक्षमता बढ़ा रही है बल्कि नागरिकों की न्याय तक पहुंच को भी अधिक समावेशी और सुलभ बना रही है.

सीजेआई (CJI) बीआर गवई ने कहा, भारत की न्यायिक प्रणाली विश्व की सबसे बड़ी और जटिल व्यवस्थाओं में से एक है. संविधान के अनुच्छेद 32 नागरिकों को सीधे सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का अधिकार देता है, वहीं अनुच्छेद 226 उच्च न्यायालयों को व्यापक क्षेत्राधिकार प्रदान करता है. रोज़ाना देश भर की अदालतों में हज़ारों मामले दायर होते हैं, जिससे न्याय वितरण में समयबद्धता और निष्पक्षता सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती बन गया है.

“ई-कोर्ट्स और वर्चुअल सुनवाई मील का पत्थर”

सीजेआई ने आगे कहा, “2000 के दशक की शुरुआत में शुरू किया गया ई-कोर्ट्स प्रोजेक्ट अदालतों की प्रक्रिया जैसे फाइलिंग, लिस्टिंग और केस ट्रैकिंग को डिजिटल बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ. कोविड-19 महामारी के दौरान, जब शारीरिक अदालतें बंद हो गई थीं, भारत ने तेजी से वर्चुअल कोर्ट को अपनाया. वर्ष 2020 में, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 5.5 मिलियन से अधिक मामलों की सुनवाई की गई. यह वैश्विक स्तर पर भारत को डिजिटल न्याय के अग्रणी देशों में शामिल करता है. अब कई अदालतों में हाइब्रिड सुनवाई (ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों) एक स्थायी व्यवस्था बन चुकी है. इससे वकीलों और वादियों को देश के किसी भी कोने से अदालत में पेश होने की सुविधा मिली है. इससे न केवल यात्रा और खर्च में कमी आई है बल्कि न्याय तक पहुंच भी लोकतांत्रिक हुई है.

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हालांकि, यह डिजिटल प्रगति एक नई असमानता को भी उजागर करती है. ग्रामीण क्षेत्रों, आदिवासी समुदायों और महिलाओं के बीच डिजिटल पहुंच की कमी एक गंभीर चुनौती बनी हुई है. 2023 में इंडिजिनस नेविगेटर कम्युनिटी और वीमेन एंड जेंडर रिसर्च सेंटर द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार: झारखंड के 65% आदिवासी समुदायों के पास कानूनी सहायता की पहुंच नहीं है. 88% ने सार्वजनिक प्रणालियों में भाषा और संस्कृति के अनुसार शिक्षा की अनुपलब्धता की बात कही. 77% ने राज्य पोर्टलों पर आदिवासी भाषाओं की अनुपस्थिति की शिकायत की.”

न्याय को भाषाई रूप से सुलभ बनाने की पहल- CJI

उन्होंने बताया कि इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने SUVAS (सुप्रीम कोर्ट विधिक अनुवाद सॉफ़्टवेयर) की शुरुआत की है. यह एक AI आधारित प्रणाली है जो न्यायालय के निर्णयों का अंग्रेजी से भारतीय भाषाओं में अनुवाद करती है. यह पहल अब उच्च न्यायालयों तक विस्तारित हो रही है.

सीजेआई (CJI) ने कहा, न्यायिक प्रक्रियाओं में अब AI का भी प्रयोग हो रहा है, जैसे केस प्रबंधन, दस्तावेज़ अनुवाद और पूर्वानुमान विश्लेषण. हालांकि, AI को लेकर कई नैतिक प्रश्न भी खड़े हो रहे हैं. जिसमें- एल्गोरिदम में पक्षपात, डेटा गोपनीयता का उल्लंघन, गलत जानकारी या झूठे संदर्भ. इसलिए एआई को सिर्फ सहायक उपकरण के रूप में देखा जाना चाहिए. मानव विवेक, सहानुभूति और न्यायिक व्याख्या की भूमिका को कभी नहीं बदला जा सकता.

नैतिक रूपरेखा की आवश्यकता- CJI

भारतीय न्यायपालिका ने इस दिशा में पहला कदम उठाया है. पदभार ग्रहण करने के पहले सप्ताह में ही मुख्य न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट के सेंटर फॉर रिसर्च एंड प्लानिंग के साथ मिलकर AI के नैतिक उपयोग पर एक नीति दस्तावेज तैयार करने की प्रक्रिया शुरू की. अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि तकनीक, यदि संविधानवाद और सहानुभूति से प्रेरित हो, तो यह न्याय को एक सैद्धांतिक अवधारणा से हटाकर एक सामूहिक और जीवंत अनुभव में बदल सकती है.

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि न्याय तक पहुंच केवल न्यायपालिका की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह एक साझा राष्ट्रीय प्रतिबद्धता है. कानून विद्यालयों, सिविल सोसायटी, कानूनी सहायता संस्थानों और सरकारों को मिलकर ऐसे तकनीकी मॉडल विकसित करने होंगे जो पारदर्शी, सुलभ और समावेशी हों.

-भारत एक्सप्रेस



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